अपनी बात

याद रखियेगा हेमन्त बाबू, बड़े-बड़े महानगरों में स्टेकहोल्डर्स मीट करा लेने से निवेशक नहीं आते

बड़े-बड़े महानगरों के बड़े-बड़े होटलों में स्टेकहोलर्डस मीट करा लेने से किसी राज्य में औद्योगीकरण का विस्तार नहीं होता हेमन्त बाबू। इस बात को, आपको खासकर गांठ बांध लेना चाहिए, क्योंकि आप उस राज्य से आते है, जहां की जनता बहुत ही निर्धन है, और उसकी पहली मांग औद्योगीकरण नहीं है, और न ही आपको औद्योगीकरण का जाल फैलाने के लिए राज्य की गरीब, शोषित, उपेक्षित जनता ने सत्ता सौंपा है।

यहां की जनता की मांग कुछ और हैं, जिसे आप जानकर भी, न जानने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि आपको कनफूंकवों ने पूरी तरह से किडनैप कर लिया है, जैसा कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को किडनैप कर लिया था, हालांकि कनफूंकवों द्वारा किडनैप कर लिये जाने के बाद जब कनफूंकवों द्वारा सब्जबाग दिखाया जाता है, तो वह सब्जबाग सचमुच सुन्दर दिखाई देता है, लेकिन उससे लाभ सिर्फ कनफूंकवों को होता है, न कि राज्य के मुख्यमंत्री को और राज्य की जनता को।

अगर ऐसा होता तो राज्य के मुख्यमंत्री वर्तमान में आप न होकर, पुनः रघुवर दास होते। मैंने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी आइना दिखाने की कोशिश की थी, पर वे कनफूंकवों के ज्ञान पर इतने फिदा थे कि आज उनकी हालत क्या है, जरा उन्हीं से पूछ लीजिये, ठीक यहीं हाल अब आपका है, हालांकि एक व्यक्ति है, जिसने सपना देखा है कि आप अगली बार पूर्ण बहुमत में आये, पर जैसा कि आपने कनफूंकवों की बातों में आकर कदम शुरुआत में ही लड़खड़ा दिया, तो होना है, वहीं जो होगा, यानी आपकी सत्ता पर ग्रहण लग चुका है, कभी भी आप सत्ता से विमुख हो सकते हैं, और इसके लिए मैं कनफूंकवों को जिम्मेवार नहीं ठहराउंगा, क्योंकि कनफूंकवें तो कनफूंकवें हैं, उन्होंने वहीं किया, जो उन्हें करना था, पर आप संभले क्यों नहीं?

इस राज्य में आप कोई पहले मुख्यमंत्री नहीं, कि कनफूंकवों की झांसे में आकर, निवेशकों को बुलाने का प्लान बनाने लगे, कई मुख्यमंत्री आये, गये और हुआ वहीं, ढाक के तीन पात। अरे भाई आपसे ज्यादा इन मामलों में मजबूत रघुवर दास थे, उन पर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कृपा थी, आखिर क्या हुआ? आपसे ज्यादा मजबूत और लोकप्रिय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के योगीजी है, वहां क्या हुआ? कभी राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी इसी प्रकार का आयोजन किया था, क्या हुआ? उसी प्रकार कुछ भी आप कर लें, कुछ नहीं होगा, उलटे आपको नुकसान होना तय है, मेरे हिसाब से आप नुकसान का बीजारोपण कर चुके हैं।

कभी इसी राज्य के मुख्य सचिव पद पर रह चुके दिवंगत पीपी शर्मा ने कहा था कि अगर सरकार हिमालय की उच्च शिखर से लेकर कन्याकुमारी की समुद्र तट पर बड़े-बड़े चोंगे लगाकर भी निवेशकों को अपने राज्य में बुलाने की कोशिश करें, वे नहीं आयेंगे। निवेशक या उद्योगपति वहीं जाते हैं, जहां उन्हें संभावनाएं अथवा लाभ नजर आती है, जहां उन्हें राजनीतिक स्थिरता तथा वहां की कानून-व्यवस्था सही लगती है, पर आपके यहां क्या है?

आपके आने के बाद नक्सलियों ने गजब कर डाला है। एक से एक करिश्में कर रहे हैं और आपके वरीय पुलिस अधिकारी हाथ पर हाथ धर कर बैठे हैं, क्योंकि उन्हें तो कोई नुकसान नहीं हो रहा, वे तो सुरक्षित है, तथा समय पर लाखों रुपये वेतन के रुप में भुगतान हो ही जा रहा है, मर तो रहा है, हजारों रुपये के वेतन में अपनी जिंदगी कुर्बान कर देनेवाला भूख से बिलबिलाता जवान। जिसे एक साल की वर्दी भी ठीक से नहीं मिलती। ऐसे में आपने कैसे सोच लिया कि निवेशक आ जायेंगे।

अरे हेमन्त जी, उद्योगपति या निवेशक, खुद अपनी  जमीन तलाशता है और फिर राज्य के उदयोग मंत्री अथवा मुख्यमंत्री से संपर्क करता है, पर यहां तो माजरा ही कुछ और है। पहले आप खुद को मजबूत करिये, कैसा मजबूत, तो नरेन्द्र मोदी की तरह, जिसने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए, जब सीपीएम की सरकार के समय टाटा की नैनो जो बंगाल के नंदीग्राम में लगनेवाली थी, ममता बनर्जी के लोगों ने बवाल कर दिया और लगने नहीं दिया, उसी वक्त टाटा वालों ने नैनो उद्योग झारखण्ड में लगाने की सोची, आपके लोगों ने उसे यहां भी लगने नहीं दिया, जल-जंगल-जमीन की बातें करने लगे।

ऐसे में नरेन्द्र मोदी ने खुद टाटा से संपर्क किया और गुजरात में जगह दी। नतीजा देश के प्रमुख उद्योगपतियों/निवेशकों को लगा कि गुजरात उनके लिए मुफीद जगह है, और फिर आज गुजरात, गुजरात है। बुरा मत मानियेगा, उस गुजरात ने आज कई झारखण्डियों के भुख को भी शांत किया है, ऐसे गुजरात को गाली देना हो, तो देते रहिये, गुजरात को क्या फर्क पड़ता है, गुजराती तो जानता है कि देश का कोई भी नेता क्यों न हो, अगर वह किसी राज्य का मुख्यमंत्री हैं, उसके पास गुजराती संयंत्र न हो, तो वो एक पल आगे नहीं बढ़ सकता, अगर आपको विश्वास न हो, तो आप अपने मोबाइल से बात करियेगा, वो बतायेगा कि बिना गुजरात के तो वो हिलता-डूलता नहीं है।

अभी तो आपको चाहिए था कि आपको एक ऐसा सलाहकार मिलता, जो आपका मार्गदर्शन करता, झारखण्ड हित में आपको बताता कि क्या करना है और क्या नहीं करना है, साथ ही बताता कि आप कैसे मजबूत होंगे, लेकिन आपने तो अपना सब कुछ चौपट करने का लगता है कि संकल्प कर लिया, ऐसे में आपको कौन बतायेगा? जाइये, कनफूंकवें आपको बुला रहे हैं और उन कनफूंकवों से अपना भविष्य सुरक्षित कराइये, अरे आपका भविष्य तो सुरक्षित है ही नहीं, आप राज्य में औद्योगीकरण क्या खाक लाइयेगा? अंत में, एक शेर आपके लिए, समझने की कोशिश करियेगा, तो समझ में आ जायेगा, नहीं तो जो हैं सो है ही…

“खुद ही को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले,

  खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है?”

कहने का तात्पर्य है, जरुरत था खुद को मजबूत करने की, जरुरत था अपनी पार्टी को बेहतर करते हुए, राज्य की जनता को विश्वास में लेकर काम करने की और आप कनफूंकवों को विश्वास में लेकर काम करने लगे, वाह ऐसे में तो आपका जाना तय है। भला वो निवेशक, मूर्ख है क्या? कि आप पर विश्वास कर लेगा, अरे ढंग का पत्रकार तो आपके प्रेस कांफ्रेस में था ही नहीं, निवेशक कहां से आ जायेंगे, और किस निवेशक की हिम्मत है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नाराज कर, आपके राज्य में, आपके रहते हुए निवेश कर डाले। इतना समझ नहीं आ रहा, हद है भाई।