वो राम से कम नहीं, जो अपने पिता के वचन को पालन करने के लिए स्वयं को अर्पित कर दें
मैंने अपने माता-पिता से कहानियों में सुना हैं और रामायण में पढ़ा भी है कि भगवान राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए हंसी-खुशी 14 वर्ष वनवास को ग्रहण किया, लेकिन कभी राम को देखा नहीं, पर कुछ महीने पहले जो हमने महसूस किया, उससे यही पता चला कि भगवान राम अगर होंगे तो बिल्कुल वैसे ही होंगे, डा. अमिताभ कुमार की तरह, जिन्होंने अपने पिता डा. हरिहर पांडेय द्वारा किसी को दिये गये वचन का अक्षरशः पालन करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ा, बल्कि उसे अंत तक निभा दिया, यह कहकर कि उनके पिता ने वचन दिया है, इसलिए उनका वचन व्यर्थ वे जाने नहीं देंगे।
दरअसल कहानी यह है कि कोरोना काल में, जब सब कुछ बंद था। आने-जाने से लेकर, होटल, वैंकेट हॉल आदि सब बंद, साथ ही राज्य व केन्द्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे कानून से जनता अलग त्रस्त थी। ऐसे में एक परिवार के घर में शादी थी। शादी कैसे संपन्न हो। इसको लेकर, परिवार के लोग काफी चिन्तित थे। कही कुछ मिल नहीं रहा था, अगर मिल भी रहा था, तो उसके दाम आकाश को छू रहे थे।
तभी जिसके घर में शादी थी। हरिहर पांडेय जी के यहां किसी काम को लेकर पहुंचे। अचानक बातों ही बातों में शादी की बात आ गई और ले-देकर उन समस्याओं पर भी चर्चा हो गई कि शादी को लेकर स्थल कहां तलाश की जाये। हरिहर पांडेय ने बिना किसी लाग-लपेट के कह दिया कि उनके पास बहुत सारे स्थल है, जहां शादी संपन्न कराया जा सकता है, इसलिए शादी के स्थल के बारे में संबंधित व्यक्ति ज्यादा न सोंचे। उन्होंने अपने तरफ से शादी के लिए स्थल दिया।
इसी बीच जिसके घर शादी थी, उसने वैवाहिक कार्ड छपवा लिये और हरिहर पांडेय के कहने पर उसने शादी का स्थल भी शादी के कार्ड में स्थान दे दिया। अचानक जब कुछ ही दिन शादी के शेष बचे, तो पता चला कि पिता-पुत्र में कुछ बातों को लेकर तनाव चल रहा है। जिसके घर में शादी थी, वह सोच में पड़ गया कि कही ऐसा नहीं कि इस तनाव का असर शादी स्थल पर पड़ जाये। वह इस संबंध में डा. अमिताभ कुमार से मिला। डा. अमिताभ कुमार ने कहा कि उनके पिता ने वचन दिया है और उस वचन को निभाने में वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने शादी की सारी व्यवस्था करने की ठानी।
कमाल की बात है कि वे और उनका पूरा परिवार, साथ ही उनके साथ रहनेवाले सभी लोगों ने शादी को धूम-धाम से संपन्न कराया, कुछ जगहों पर तो देखा कि उन्होंने बिना परिजनों से पूछे ही शादी पर हजारों रुपये खर्च करते चले गये। ये अलग बात थी कि जिनके यहां शादी थी, उन्होंने शादी के दूसरे दिन ही, अमिताभ कुमार से शादी में उनके द्वारा किये गये खर्च से लेकर, अन्य सारी खर्चों का भुगतान बिना देर, वह भी बिना किसी लाग-लपेट के कर दिया।
लेकिन बात यहां ये आती है कि, आज कितने लोग है, जो दूसरों के लिए या अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए अपना समय, अपना स्थल तथा अपना पूरा संस्थान और उन संस्थानों में काम करनेवाले सभी लोगों को लगा देते हैं? आज डा. अमिताभ के प्रयास से शादी संपन्न हो चुकी है, दोनों परिवार बहुत ही प्रसन्न है। डा. अमिताभ कुमार के इस प्रयास और उनकी सोच की हमेशा सराहना भी कर रहे हैं। काश हमारे समाज में डा. अमिताभ कुमार जैसे सोचवाले लोगों की बाहुल्यता हो जाये, तो निश्चय ही हमारे हर घर में एक दशरथ और एक राम नजर आयेंगे, जिसका लाभ समाज को भी प्राप्त होगा।