अपनी बात

द रांची प्रेस क्लब प्रकरणः जब भैंस पूंछ उठाएगी तो गोबर ही करेगी, ज्ञान की गंगा नहीं बहायेगी

किसी ने ठीक ही कहा है कि जब भैंस पूंछ उठाएगी तो गोबर ही करेगी, ज्ञान की गंगा नहीं बहायेगी। द रांची प्रेस क्लब की अनुशासन समिति ने उन लोगों पर आरोप लगाया है, जिन्हें कारण बताओ नोटिस जारी की थी, कारण बताओ नोटिस का जवाब 09 मार्च को संध्या पांच बजे तक द रांची प्रेस क्लब में जमा कर देना था, कुछ सदस्यों ने उनके कारण बताओं नोटिस का जवाब दिया तो कुछ ने जवाब नहीं दिया।

जिन्होंने जवाब नहीं दिया, उन्हें कुछ और समय दिया गया है, इसी बीच जिन चार सदस्यों को कारण बताओ नोटिस जारी कर विभिन्न आरोप लगाये गये है, उन्होंने कल यानी गुरुवार से द रांची प्रेस क्लब परिसर में सांकेतिक क्रमिक धरना शुरु कर दिया है। इसका परिणाम क्या निकलेगा, इसका जवाब भविष्य के गर्भ में हैं, पर जिन्हें भी द रांची प्रेस क्लब के सम्मान व भविष्य की चिन्ता है, वे इस सांकेतिक क्रमिक धरने को सुखद संकेत मान रहे हैं, उनका मानना है कि यह जरुर ही रांची प्रेस क्लब के लिए बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करेगा।

इधर रांची प्रेस क्लब ने कारण बताओ नोटिस को प्राप्त करनेवाले सदस्यों पर आरोप लगाया है कि उन्होंने द रांची प्रेस क्लब को दिये गये जवाबों को व्हाट्सएप के माध्यम से सार्वजनिक किया, जबकि कारण बताओ नोटिस प्राप्त करनेवाले सदस्यों का कहना है कि जब उन्होंने कारण बताओ नोटिस व्हाट्सएप के माध्यम से जारी किया था तो क्या उनका कारण बताओं नोटिस को सार्वजनिक करना, उसे वायरल करना सही था। जब वे सही है, तो हमलोग भी सही, अगर वे सही नहीं तभी हमलोग सही नहीं होंगे।

इधर वरिष्ठ खेल पत्रकार सुशील कुमार सिंह मंटू ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दे दिया है, और जो उन्होंने जवाब दिये है, उस जवाब से स्वयं रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों का दिमाग चकरा गया है, सुशील कुमार सिंह मंटू ने जो क्रमवार अपने जवाब रखे हैं, उसपर ध्यान दें, तो यह बात क्लियर हो जाता है कि द रांची प्रेस क्लब के अधिकारी ही असल गुनहगार है, जो द रांची प्रेस क्लब के संविधान से खेलने का गुनाह कर रहे हैं।

वे चाहते है कि उनके इस खेल में ये चारों सदस्य उनका साथ दें, पर इन चारों सदस्यों ने इनका खेल ही बिगाड़ दिया है, जिससे द रांची प्रेस क्लब के अधिकारी क्रुद्ध है, आखिर वरिष्ठ खेल पत्रकार सुशील कुमार सिंह मंटू ने कारण बताओ नोटिस का जवाब देते हुए क्या लिखा है, उसे देखे, तो आपको सब कुछ पता चल जायेगा कि आखिर खेल क्या है?

सुशील कुमार सिंह मंटू ने साफ कहा कि “अनुशासन समिति के संयोजक ने व्हाट्सएप्प ग्रुप पर इस संदर्भ में संदेश सार्वजनिक कर कौन सी “अनुशासन परायणता” की है? कैसे ये संदेश क्लब के 1000 लोगों के बीच सर्कुलेट हो गया? क्या ये अनुशासनहीनता नहीं है? शर्म हया का अंश मात्र भी बचा हो तो मंथन करना चाहिए।” सबसे पहले द रांची प्रेस क्लब के संविधान का आर्टिकल 11 देखिये, क्या कहता है…

Article 11:

  1. The Managing Committee, by a resolution passed by a majority of not less than two-thirds of its members present and voting, shall take appropriate disciplinary action as detailed below against any member/s for bringing the Club into disrepute or for any act, including violence, which endangers the harmony of the Club.
  2. Such disciplinary action may, as the case warrants, consist of suspension for a period of not less than four months, or expulsion for a period of not more than six years but not less than three years. The procedure to be followed in this regard shall be as stated below.
  3. The Secretary, after making preliminary inquiries into the alleged incident of misconduct on the part of a member, may, in consultation with the President or the Vice-President, suspend the member concerned for a period of 15 days initially.
  4. In the notice of suspension the member will be called upon to explain his/her conduct within 7 (seven) days. After this period of Notice and before the expiry of the 15 days’ period of suspension, the Managing Committee shall meet and consider the member’s explanation, if any. If the explanation is considered satisfactory, there will be no further action. If, however, the explanation is considered not satisfactory, the committee shall hold a further detailed enquiry into the alleged incident before determining further action, which may be (a) treating the incident as closed or (b) issue a reprimand or warning or (c) suspension or (d) expulsion, provided that any decision for suspension or expulsion shall be taken by a majority of not less than two-thirds of the members of the Managing Committee present and voting, the result of voting being recorded in the minutes of the meeting of the committee at which the decision is taken.
  5. The decision of the Managing Committee, so taken, shall be final and binding.
  6. In taking action under any of the above sub-clauses of Article 11, every member of the Managing Committee is required to act, and shall be deemed to be acting, in good faith and in the best interests of the Club, and every member of the Club affected by the decisions of the committee is deemed to have absolved the members of the committee of any legal or any other liability arising from the decisions.

और अब कारण बताओ नोटिस के बिंदुवार जवाब, जो सुशील कुमार सिंह मंटू ने द रांची प्रेस क्लब को जारी किये। सुशील साफ कहते है कि नोटिस तो जवाब देने योग्य नहीं है, लेकिन उन्हें इस बात की खुशी है कि रांची प्रेस क्लब ने अपनी अकर्मण्यता व अज्ञानता का भोड़ा प्रदर्शन करने के लिए उन्हें चुना है। आइना अगर क्लब के अधिकारियों की बदसूरती दिखा रहा है तो गलती आइने की नहीं है।

पिछले एक पखवाड़े के दौरान मैनेजिंग कमिटी के कई फैसले द रांची प्रेस क्लब के संविधान की मर्यादा के अनुकूल नहीं रहे और ऐसा लगता है कि फैसले लेते वक्त मैनेजिंग कमिटी एक आंख में काजल, एक आंख में सूरमा की कहावत को आत्मसात व चरितार्थ कर रही थी, कुछ बिंदु क्लब के सभी अधिकारियों के लिए दृष्टव्य। जिसपर व्यापक रूप से आत्मावलोकन की जरूरत है….

  1. 28 फरवरी को अलोकतांत्रिक तरीके से संविधान में संशोधन का प्रस्ताव लाने और पारित कराने की कोशिश की गयी। सदस्यों के भारी विरोध के बाद मैनेजिंग कमिटी ने पहले वोटिंग कराने की घोषणा की गई। बाद में जब गलती का एहसास हुआ और संविधान में संशोधन का प्रस्ताव वापस ले लिया गया। क्या मैनेजिंग कमिटी का ये व्यवहार प्रेस क्लब के संविधान की मर्यादा के अनुकूल था? क्या एजीएम में वाद-विवाद की शुरूआत यहीं से हुई या कहीं और से? फिर दोषी कौन?
  1. प्रेस क्लब के संवैधानिक प्रावधानों से व्याभिचार करते हुए संविधान संशोधन थोपने की साजिश करते वक्त आप सभी ने क्लब की मर्यादाएं कहां गिरवी रखी थी? स्वार्थ के पास? लोभ के पास? लालच के पास? या सत्ता में बने रहने के दुष्चरित्र के पास?
  1. बुड़मू में 14 फरवरी से पहले हुई बैठक में मैनेजिंग कमिटी ने फैसला लिया की बैठक कि मिनट्स सार्वजनिक की जाएगी, फिर 26 फरवरी को हुई बैठक, जिसमें संविधान संशोधन का प्रस्ताव लाने पर सहमति बनी थी, इसकी मिनट्स क्यों सार्वजनिक नहीं की गयी? अपने ही फैसलों से परे क्यों गई कमिटी? क्या डर था? किससे भय था? क्या पाप कर रहे थे, जिसे छुपाना जरूरी था? 26 फरवरी की मिनट्स आज तक जारी नहीं हुई है, जबकि 26 फरवरी के बाद हुई सभी बैठकों की मिनट्स सार्वजनिक की गई है, ठीक उसी दिन, जिस दिन बैठक हुई।
  1. 2 मार्च को अध्यक्ष जी के काबिल नेतृत्व में मैनेजमेंट कमिटी ने 28 फरवरी को एजीएम की विडियो फुटेज देखी और चार लोग चिन्हित किए गए। सुशील कुमार सिंह मंटू, संजय रंजन, बीपिन सिंह व चंद्रशेखर सिंह। बहुत अच्छा, लेकिन उसी विडियो में आपको अपने दो पदाधिकारी व एक सदस्य धक्का-मुक्की, गाली-गलौच करते हुए नहीं दिखे? आंखों पर कौन सा चश्मा लगाए हुए थे आप सभी? अपनो पे करम, गैरों पे सितम सिर्फ इसलिए तो नहीं की, उनमें से एक आप सभी की मर्यादाएं समय-समय पर तार-तार करता रहता है? क्या आप सभी अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए के लिए कार्रवाई से डर रहे हैं?
  1. 2 मार्च की रात व्हाट्सएप्प पर प्रेस क्लब ने जो विज्ञप्ति जारी की है, उसमें साफ-साफ लिखा है कि अध्यक्ष जी पीड़ित नजर आ रहे हैं। फिर एक पीड़ित अपने ही मामले से जुड़ी बैठक की अध्यक्षता कैसे कर सकता है? आप सभी को पता हो कि पीड़ित या आरोपी अपने ही मामले का जज नहीं हो सकता। नैसर्गिक न्याय का एक सिद्धांत है नो वन कैन बी ए जज पद हिज ओर केस। इसका ख्याल क्यों नहीं रखा गया?
  1. एजीएम के दौरान प्रेस क्लब का एक सदस्य चंद्रशेखर सिंह के साथ मारपीट करता हुआ दिख रहा है। मैनेजिंग कमिटी ने सदस्यों ने फिरायालाल से खरीदा कौन सा थ्री डी चश्मा पहना था कि उन्हें ये दिखाई ही नहीं दिया? एक आंख में काजल और एक आंख में सूरमा लगाकर निर्णय लेने के पीछे की मंशा क्या है?
  1. क्या यह सही नहीं है कि एक व्हाट्सएप्प ग्रुप में 27 फरवरी को मैनेजिंग कमिटी के एक वरिष्ठतम सदस्य ने मुझे अपनी सदस्यता बचाने की चुनौती नहीं दी थी। उस ग्रुप में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष जी की गरिमामयी उपस्थिति भी है। क्या आप पहले से ही मुझे येन-केन-प्रकारेण निकालने का बहाने पर रणनीति बना रहे थे, बहाना ढूंढ रहे थे? क्योंकि आधे दर्जन से ज्यादा बार मैनेजिंग कमिटी की बैठकों में मुझे निकालने के संदर्भ में विस्तृत चर्चा हुई है। कुछ मामले तो मिनट्स में दर्ज हैं।
  1. अध्यक्ष जी लगभग 15 माह पहले जब एक महिला सदस्य मैनेजिंग कमिटी के एक पदाधिकारी के खिलाफ आपके पास लिखित शिकायत लेकर गई थी तो आपको ये कहते हुए शर्म नहीं आई थी कि अब हम लोग यही जांच करते रहेंगे? इमानदारी से सोचिएगा की पिछले दो वर्षों से 8 मार्च को महिला पत्रकारों-कर्मियों का सम्मान कार्यक्रम का आयोजन और उस महिला सदस्य के साथ आपका व्यवहार आपको स्वयं आपकी मर्यादा के बारे कहां खड़ा करता है?
  1. अध्यक्ष जी लगभग एक वर्ष पहले मैनेजिंग कमिटी के व्हाट्सअप ग्रुप में एक पदाधिकारी द्वारा की गई अभद्रता के बाद जब छह सदस्यों ने ग्रुप छोड़ दिया था तो मर्यादा की रक्षा के लिए आपने कौन सा कदम उठाया था ? मर्यादा की रक्षा के लिए आपने क्या कार्रवाई की थी ?
  1. अध्यक्ष जी क्लब के एक पदाधिकारी ने जब दूसरे पदाधिकारी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए तो सभी का आचरण आपको मर्यादा के अनुकूल लगा? क्या जांच में दोनो सही पाए गए? या कोई दोषी भी पाया गया? अमर्यादित आचरण करनेवाले के खिलाफ आपने क्या कार्रवाई की?
  1. अध्यक्ष जी 21 फरवरी को मैंने आपसे एजीएम के दौरान 12 बिंदुओं पर सवाल पूछे थे। उसका एक अहस्ताक्षरित जवाब मुझे मिला है, बार-बार आग्रह के बावजूद अभी तक हस्ताक्षरित जवाब नहीं मिल पाया है। सभी पदाधिकारियों व सदस्यों से भी आग्रह किया लेकिन ढाक के तीन पात। क्या आपका ये आचरण/व्यवहार क्लब के संविधान की मर्यादा के अनुरूप है? आत्ममंथन जरूर करियेगा।

आप सभी ये बात गांठ बांध लीजिए की अगर संवैधानिक प्रावधानों से परे जाकर मैनेजिंग कमिटी या अन्य कोई भी कमिटी-सब कमिटी कार्य करेगी तो सुशील सिंह मंटू हर पल और हर क्षण लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करेगा।