अपनी बात

झारखण्ड विधानसभा के बजट सत्र की समाप्ति के बाद, सदन को लेकर क्या सोचते हैं CPI ML MLA विनोद सिंह

दिनांक – 22 मार्च, झारखण्ड विधानसभा। पहली घटना – मंत्री जोबा मांझी के एक जवाब से असंतुष्ट होकर, केवल विपक्ष ही नहीं, बल्कि सत्तापक्ष के लोग भी हंगामा करते हैं, वेल में आ धमकते हैं। मामला एचइसी की खाली जमीन रैयतों को लौटाने के बजाय, ऊंची कीमत पर बाहरी लोगों को बेचने से संबंधित था।

दूसरी घटना – आलोक चौरसिया के तारांकित प्रश्न कि पलामू स्थित आयुक्त कार्यालय में सचिव-कर्मचारी के खाली पदों को कब भरा जायेगा? राज्य का एक भी मंत्री खड़ा होकर जवाब तक नहीं दिया, विपक्ष – शेम, शेम कहकर चिल्लाता है, पर मंत्रियों को इससे क्या मतलब। उधर स्पीकर इसे सामान्य घटना बताते हैं।

तीसरी घटना – सरकार खुद कहती है कि 22 मार्च को कृषि बिल व महंगाई पर विशेष चर्चा होगी, विपक्ष कहता है कि कृषि बिल कहा हैं, लीजिये हंगामा खड़ा होता हैं और बिना कृषि बिल व महंगाई की चर्चा के ही सदन 23 मार्च तक के लिए स्थगित हो जाता है। पूर्व विधानसभाध्यक्ष सीपी सिंह इस दिन को संसदीय इतिहास की काला दिन कहने से खुद को नहीं रोक पाते।

चौथी घटना – वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव, मंत्री चंपई सोरेन और बन्ना गुप्ता तीन-तीन विधेयक सदन में लाते हैं, बिना राज्यपाल की अनुमति के विधेयक लाना, उसे पारित कराना असंवैधानिक हैं, सरयू राय और प्रदीप यादव उन्हें याद दिलाते हैं।

पांचवी घटना – झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम तो इतने खफा है कि सरकार को दो दिनों का अल्टीमेटम तक दे देते हैं, सरकार से उनकी नाराजगी एक नहीं, कई बार देखने को मिली है, वे खुलकर कहते हैं कि सरकार पर नौकरशाही हावी है।

छठी घटना – महगामा विधायक दीपिका पांडेय स्पीकर को पत्र लिखती है, कि विधानसभा की यूट्यूब चैनल से उनके बयान ही गायब कर दिये गये हैं, वह भी तब जब विधानसभा के चैनल का आज विशेष उद्घाटन हुआ है।

यानी ये छह घटना, वह भी एक दिन की, बताने के लिए काफी है कि सदन को सत्तापक्ष और विपक्ष ने कैसे चलाया? कितना महत्व दिया? या सदन इनके लिए कितना महत्वपूर्ण है? आम तौर पर सदन को ठीक से चलाने की पहली जिम्मेवारी सत्तापक्ष की हैं, जबकि दूसरी ओर रचनात्मक विपक्ष की जिम्मेदारी लेते हुए सदन को चलाने की जिम्मेवारी विपक्ष की है, पर ध्यान से देखा जाये, तो यहां सत्तापक्ष सदन की शुरुआत से लेकर खत्म होने तक कटघरे में नजर आया।

आज विधानसभा का बजट सत्र समाप्त हो चुका है। विद्रोही24 ने इसी संबंध में भाकपा माले विधायक दल के नेता विनोद कुमार सिंह से खुलकर बातचीत की। हम आपको बता दें कि सदन में विनोद कुमार सिंह एक ऐसे विधायक है, जो सर्वमान्य विधायक के रुप में हैं, उनके प्रश्नों को लेकर या उनके विचारों तथा स्वभाव पर भी किसी की हिम्मत नहीं कि अंगूली उठा दें, इसलिए ऐसे माहौल में विनोद कुमार सिंह ने क्या देखा, क्या महसूस किया, ये सभी को जानना जरुरी है।

भाकपा माले विधायक दल के नेता विनोद कुमार सिंह कहते है कि सदन की शुरुआत से लेकर अंत तक यही देखने को मिला कि सरकार के मंत्री सदन के प्रति जिम्मेवार नहीं दिखे। चाहे प्रश्न सत्तापक्ष की ओर से हो या विपक्ष की ओर से। मंत्रियों ने प्रश्नकर्ता माननीयों को अपने जवाब से संतुष्ट नहीं किया।

जिसका प्रमाण है – झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम का उत्तेजित होना। सरयू राय जैसे विधायक का सदन में ये कहना कि गले में अंगूली डालकर जवाब निकालने की अब कोशिश करनी होगी। दरअसल यह पूरा मामला, इस बात पर केन्द्रित है कि मंत्रियों ने होमवर्क नहीं किया, मंत्रियों ने उन प्रशासनिक अधिकारियों से जवाब तलब नहीं किया और न ही प्रश्न देखने की कोशिश की, कि माननीयों के सवाल क्या हैं और जवाब क्या दिया जा रहा है, जिसको लेकर यह स्थिति बनी।

विनोद कुमार सिंह ने विद्रोही24 को बताया कि अगर उनसे पूछा जाये तो हम यही कहेंगे कि सवालों को लेकर केवल जगन्नाथ महतो को उन्होंने पूर्व में सजग देखा, ये अलग बात है कि फिलहाल वे स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं, बाकी मंत्रियो में वो गंभीरता नहीं दिखी। जो संसदीय कार्य मंत्री थे, उन्होंने भी यह देखने की कोशिश नहीं की, कि संसदीय परम्पराओं का पालन हो रहा है या नहीं, और यही बात विपक्ष के लिए कि हर बात में हंगामा खड़ा करना अगर आप उद्देश्य बना लेंगे तो फिर जो जरुरी बातें हैं, जो जरुरी प्रश्न हैं, उसका जवाब सदन से नहीं मिल पायेगा, तो फिर जवाब के लिए हमारे पास विकल्प क्या है?

विनोद कुमार सिंह ने कहा कि सवालों की गुणवत्ता, उसके जवाब, उसके निष्कर्ष और मंत्रियों द्वारा मिले आश्वासन से यही उन्हें पता चला कि सरकार में शामिल मंत्री सदन के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, इस पर सरकार को, सदन को गंभीर होना पड़ेगा। विनोद कुमार सिंह का यह भी कहना था कि कुछ मुद्दों पर सरकार संजीदगी दिखाई, जैसे वह चाहती थी कि नियोजन, बेरोजगारी, अनुबंध आदि पर हो रही नियुक्तियों पर एक बेहतर माहौल बनें, पर ठीक इसके विपरीत विपक्ष में इन मुद्दों पर संजीदगी का अभाव दिखा।

उन्होंने सरयू राय, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की की तारीफ करते हुए कहा कि सदन के प्रति ये लोग गंभीर दिखे, नये युवा विधायकों में राजेश कच्छप और दीपक बिरुआ का उन्होंने नाम लिया कि आप इनसे भविष्य में बेहतरी की आशा रख सकते हैं, क्योंकि सदन में इन्होंने अपनी बातों से सभी का ध्यान आकृष्ट कराया। इस बार महिलाओं की टीम में दीपिका, पुष्पा और ममता छाई रही, ज्यादातर महिला विधायकों ने खुलकर शुन्यकाल का फायदा उठाया।

अंततः कुल मिलाकर उन्होंने यही कहा कि आनेवाले समय में सरकार में शामिल मंत्रियों ने अगर संजीदगी नहीं दिखाई, सदन में बैठे माननीयों के सवालों का जवाब, सही-सही नहीं दिया तथा उसे निष्कर्ष तक नहीं पहुंचाया, तो फिर सदन की गरिमा ही प्रभावित होगी, इसका भान सभी को होना चाहिए।