शाबाश बिहार के माननीयों, अब बस सदन में चाकूबाजी और गोलियां ही चलाना शेष रह गया हैं, उसे भी पूरा कर बिहारवासियों का मनोबल बढ़ा ही दीजिये
सीधा सा सवाल है बिहार के विपक्षी माननीयों से, अगर सदन में आपकी बातें नहीं मानी जायेगी, तो क्या आप सदन और सदन के बाहर गुंडागर्दी का सहारा लेंगे? आप तय करेंगे कि सरकार क्या करें या न करें? आप सदन को अपनी गुंडागर्दी के बल पर बंधक बनाने का प्रयास करेंगे?
यह सोच आपके अंदर कहां से आ गई? और जब आ ही गई, आपने वो सब कर ही डाला तो जरा, पटना से प्रकाशित आज का अखबार देख लीजिये और उन अखबारों से हो सकें तो अपना-अपना चेहरा ढंकने का प्रयास कीजिये, अगर चेहरा ढंक जाये तो जनता के पास जाइयेगा, नहीं तो जनता ने जो कल की आपकी हरकत सदन और सदन के बाहर देखी हैं, वो बताने के लिए काफी है कि सत्ता से कई सालों की दूरी होने के बावजूद भी आपने अपनी हरकतें नहीं छोड़ी हैं।
आपने जो सोच रखा है कि “गुंडागर्दी नाम केवलम्” मंत्र से आप वो सब कर लेंगे, तो समझ लीजिये, आप आज भी मुगालते में हैं। ऐसे भी जो लालू प्रसाद को जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि उनके बेटे तेजस्वी व तेज प्रताप में कितना तेज दिख रहा है। कोई ज्यादा दिन की बात नहीं, मात्र एक दिन पहले यानी 22 मार्च को प्रत्येक बिहारी “बिहार दिवस” मनाकर स्वयं पर गर्व महसूस कर रहा था और ठीक इसके दूसरे दिन यानी 23 मार्च को विपक्षियों ने बिहार विधानसभा के अंदर और बाहर जो हरकतें की, उससे पूरे बिहार की इज्जत का फलूदा निकल गया।
अब बिहार या बिहारवासियों का सम्मान रहें या सम्मान जायें, इन विपक्षी दलों को इससे क्या फर्क पड़ता है? आज पूरा देश बिहार विधानसभा के अंदर हुई इस हरकत को लेकर भोजन के टेबल पर हंस रहा है, बिहारियों को कह रहा हैं कि देखों ये बिहारी है, ये अभी भी इसी प्रकार की हरकतें करने में अपनी शान समझ रहे हैं, ये अभी भी “जंगल के शासन” में विश्वास करते हैं, यानी इन्हें अभी भी अपने बाहुबल पर ही विश्वास है, लोकतंत्र या सम्मानपूर्वक सदन चलने/चलाने में या अपनी बात रखनें इन्हें आता ही नहीं।
विपक्षी दलों ने सदन में क्या-क्या किया, जरा नजर दौड़ाइये। इन्होंने कुर्सियां तोड़ी, नारेबाजी और हंगामे के बीच मार्शल सदस्यों का हाथ खींचकर निकालने की कोशिश करते रहे, विधानसभाध्यक्ष को उनके कमरे से निकलने नहीं दिया। बंधक बनाकर रखा। विधानसभा में जमकर उत्पात किया। हाथापाई की। लालू के दोनों महान पुत्रों ने आसन को घेरे रखा। ऐसे में पुलिस क्या करती? उसने भी अपना तेज दिखाया। और विधायकों को टांगकर अपने साथ बाहर लेती चली गई और ये सारा मामला पुलिस विधेयक को लेकर था।
इधर विधानसभा घेराव कार्यक्रम के तहत इन विपक्षी दलों के इशारों पर इनके कार्यकर्ताओं ने भी जमकर उत्पात मचाया। राजद के कार्यकर्ता जो झोला भर-भरकर ईट-पत्थर अपने साथ लाये थे, उन ईट-पत्थरों का इन सब ने पुलिस पर जमकर प्रयोग किया। ऐसे में पुलिस मूकदर्शक तो बनी नहीं रहती, जमकर लाठी चार्ज किया, तब जाकर इनका नशा फटा।
अब सवाल उठता है कि क्या इससे लोकतंत्र का गला नहीं घुंटता है। अब जब इतना सब हो ही गया तो अब बचा क्या? अब तो बस गोली ही चलना शेष रह गया हैं। अब जब इस प्रकार की हरकतें हो ही गई तो किसी दिन यह भी हो जायेगा, इसमें किसी को आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए।
हमें तो लगता है कि जिन्हें लोकतंत्र पर विश्वास है, उन्हें कल की घटना के बाद, आगे आना चाहिए। साथ ही जनता को जागरुक करना चाहिए कि ऐसे लोग जो लोकतंत्र के लिए खतरा है, जो सदन को अखाड़ा बनाने पर तूले हैं, उसे चिह्मित करें, तथा उन्हें सदन में किसी भी हालत में प्रवेश न करने दें, अगर ऐसा हुआ तो फिर कोई भी विधायक या माननीय इस प्रकार की हरकतें करने पर दस बार सोचेंगे, क्योंकि इसके लिए केवल विपक्ष ही नहीं, सत्तापक्ष भी दोषी हैं।
वो इसलिए कि कुछ दिन पहले ही इसी सदन ने देखा कि एक मंत्री ने स्वयं आसन को अंगूली दिखाकर ज्ञान देने की कोशिश की, जिसको लेकर बावेला भी मचा था, बाद में उक्त मंत्री ने माफी भी मांगी थी। सच्चाई को स्वीकार करिये कि अब सदन में बैठनेवाले कथित माननीय, वो बिहार की इज्जत का फलुदा बनाने में लगे हैं, अगर आज नहीं संभले तो आनेवाली पीढ़ी भी हमें माफ नहीं करेगी, इसे गिरह पार लीजिये। पटना में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर अपने फेसबुक पर ठीक ही लिखते हैं कि “ क्या अब सदन में चाकूबाजी होगी और गोलियां चलेंगी? क्या लोग उस दिन की प्रतीक्षा करें?”