धर्म

जय हो धनतेरस को धरतेरस बनानेवाले महान आत्माओं की…

धनत्रयोदशी सुना था, धनतेरस सुना था, अब लीजिये प्रभात खबरने एक नया शब्द खोज निकाला है – धरतेरसयानी धरते रहिये तेरस को, मिल जाये या पकड़ा जाये तो हमें भी बताइयेगा… कैसे धरा और कैसे पकड़ा और कैसे इसका उपयोग किया? जय हो धनतेरस को धरतेरस बनानेवाले महान आत्माओं की…

जब हम धन को ही प्रमुख मान लेते है, और इसी में भविष्य ढूंढने लगते हैं तो धनतेरस, धरतेरस बन जाता है। हम धर्म के मूल स्वरुप को बिगाड़कर रख देते हैं। धर्म का जब मूल स्वरुप बिगड़ जाता हैं तो वहीं होता है, जो हम देख रहे हैं। लोग अपने धन को वणिकों के घर पर स्थानान्तरण करने लगते हैं और उन्हें लगता है कि धनतेरस का यहीं महत्व हैं।

मूर्ख पंडितों और अखबारों-चैनलों के संपादकों के नापाक गठबंधन, आग में घी का काम करते हैं और नाना प्रकार के हथकंडे अपना कर स्थानीय नागरिकों के दिमाग का वे दही बना डालते हैं, घरों में युद्ध होने लगते हैं कि धनतेरस, जो अब धरतेरस बन गया है, इस अवसर पर तेरस को धरने के लिए क्या खरीदा जाय? और अपने पैसों को, अपने धन को फूंकने का कैसे इंतजाम किया जाय? जो संग्रहित घर में धन हैं, उसे कैसे वणिकों-व्यापारियों के घर स्थानांतरित किया जाय?  लोग इसी पर ज्यादा माथापच्ची करने लगते हैं।

और फिर इसी चक्कर में लोग, अपनी झूठी शान को दिखाने में, अपने घर का सुख-चैन गवां देते हैं और न ही धनतेरस मना पाते हैं. न तेरस को पकड़ ही पाते हैं। अब चूंकि अखबार नें नया शब्द इजाद किया धरतेरस, तो देखना है कि रांची के लोग तेरस को कैसे धरते हैं या धर पाते भी है या नहीं?