अपनी बात

ये क्या मजाक है, पत्रकारों के खिलाफ ये पुलिसिया गुंडागर्दी आखिर कब जाकर रुकेगी?

पूरे देश में चाहे सरकार किसी की हो, पत्रकारों के खिलाफ गुंडागर्दी सामान्य सी बात हो गई है। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि हमेशा की तरह अन्य जगहों की तरह इस बार भी एक पत्रकार के खिलाफ शर्मनाक घटना घटी है। झारखण्ड के चतरा में एक डीएसपी ने ईटीवी भारत के पत्रकार मो. अरबाज के उपर हाथ छोड़ दिया, यही नहीं, उससे उसके कैमरे, डिजिटल वाच, तीन मोबाइल फोन भी छिन लिये, जब उक्त पत्रकार ने इस घटना के खिलाफ सदर थाना में प्राथमिकी दर्ज करानी चाही, तो वहां के थाना प्रभारी लव कुमार ने पीआर बांड भरवाने पर उसे मजबूर कर दिया।

बेचारा वो पत्रकार क्या करता, उसने सार्वजनिक रुप से आत्महत्या करने की धमकी दे डाली, लेकिन यहां सुनता कौन है? हाल ही में हजारीबाग के पत्रकार राजेश मिश्रा का समाचार तो मालूम ही होगा कि कैसे पुलिसवालों ने उन्हें फंसाकर उसकी इज्जत से खेलकर, उसे जेल में डलवा दिया और आज तक वो मामला यह जानते हुए कि दोषी कोई दुसरा हैं, राजेश मिश्रा के साथ न्याय नहीं हुआ।

झारखण्ड तो पूरे देश में शायद एक मात्र ऐसा राज्य है, जहां सीएमओ में बैठे टूच्चे टाइप के लोगों के इशारों पर रांची के विभिन्न थानों में बैठे थाना प्रभारियों का समूह प्रतिष्ठित पत्रकारों के खिलाफ झूठे केस दर्ज करता हैं, तथा उस झूठे केस को पुलिस महानिदेशक, एसएसपी, एसपी तथा क्राइम ब्रांच के प्रमुख अधिकारियों के इशारे पर उक्त थाने का थाना प्रभारी, उसे ट्रू भी करार दे देते हैं। जिसका भुक्तभोगी तो मैं खुद ही हूं। अगर किसी को इसका सबूत चाहिए तो मेरे पास आये, मैं उसको पूरा सबूत दे देता हूं।

आश्चर्य यह भी है कि वैसे-वैसे लोग जो झूठों के सरदार हैं, उन्हें मुझसे बात करने में शर्म तक नहीं आती, पर मैं ऐसे लोगों से बात करना भी उचित नहीं समझता, फिर भी करना क्या है, कानून का सम्मान करना है, इसलिए कानून का सम्मान करने के कारण, ऐसे लोगों से बात करता हूं। आश्चर्य यह भी है कि उक्त झूठे केस को स्थानीय अखबार भी प्रश्रय देते हैं। उसे लंबा-चौड़ा समाचार बनाकर छापते हैं, क्योंकि मामला विज्ञापन से जुड़ा होता हैं, सीएमओ के लोगों को खुश करना पड़ता है, छापते हैं, पर ये नहीं सोचते कि वे ऐसा करके कितना बड़ा पाप का भागी बन रहे हैं, और इसका जब ईश्वर दंड देगा तो क्या होगा? फिलहाल केस चल रहा हैं, मैं लड़ रहा हूं, लड़ूंगा, कुछ झूठे-मक्कार पुलिस वाले तो मेरे सामने भोगने भी शुरु कर दिये हैं, जो बचे हैं, वे भी भोगेंगे, क्योंकि इस इन्सान से बच कर जाओगे कहां? पाताल में भी रहोगे तो ईश्वर तुम्हें खोज कर दंड देगा।

नया मामला तो 19 फरवरी 2021 का है, कोतवाली थाना से जुड़ा है, जिसे लेकर, एक बहुत बड़े पत्रकार (नाम लेना अच्छा नहीं लग रहा) डायरेक्ट डीजीपी से बात की, एक पत्रकार संगठन ने डीजीपी से गुहार लगाई और जब मैंने आइओ से बात की तो पता चला कि अनुसंधान ही चल रहा है, ये अनुसंधान कब तक चलेगा, हमें पता है, क्योंकि मामला सीएमओ से जो जुड़ा है, वहां से जो आदेश आयेगा, वो होगा? यानी पूर्व के मामले धुर्वा थाने की तरह इसका भी होगा, क्योंकि यहां कौन थाना प्रभारी कितना ईमानदार व जीवनमूल्यों वाला हैं, वो मैं जानता हूं, क्योंकि 30 सालों की पत्रकारिता का अनुभव मेरे पास है, मेरे से बच कौन सकता है?

सवाल उठता है कि कुछ लोग दुखी है कि पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं, पत्रकारों के साथ गलत हो रहा है, ये तो होगा, इसे कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि उसका मूल कारण, हर जगह स्वार्थी, बेईमानों और टूच्चे टाइप के लोगों को पदार्पण हो चुका है। जीवन मूल्यवाले लोग तो कब के सिधार चुके, और जो बचे हैं, उनके पांव कब्र में लटके हुए है। जो नये-नये थाना प्रभारी या सब-इंस्पेक्टर बने हैं, वे देखते ही देखते औरों की तरह खरबपति बन जाना चाहते हैं, गोवा-स्विटजरलैंड का ख्वाब देखने लगे हैं, ऐसे में जो सत्यनिष्ठ हैं, वे तो पिसाने के लिए ही बने हैं। आप किसी को पुलिस महानिदेशक बना दीजिये, आप किसी थाने में कोई थाना प्रभारी बना दीजिये, या एसपी-एसएसपी को बैठा दिजिये, वो आपको न्याय दिलाने की बात करता हैं तो या तो आप बेवकूफ हैं, या बेवकूफ बनने जा रहे हैं।

रही बात, अगर आप किसी अरेस क्लब या प्रेस क्लब के पत्रकारों पर भरोसा करते हैं, तो यह समझ लीजिये कि आप कोई अर्णब गोस्वामी नहीं हैं, कि आपके लिए ये झोला उठाकर आंदोलन करेंगे। याद रखिये, आप सामान्य पत्रकार है, आपको कोई भी थाना प्रभारी, एसपी-डीएसपी किसी के भी इशारे पर आपका थूथन फोड़ देगा और फिर आप अपनी इज्जत का फलूदा बनाकर, इधर से उधर कागज ढोते रहिये, मिलते रहिये। सब का डायलॉग होगा, मामले को देख रहे हैं, लेकिन ये मामला तब तक दिखता रहेगा, जब तक आपका सर्वनाश न हो जाये। इसलिए मैं कभी भी किसी पुलिस पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि मैं जानता हूं कि ये सत्य से कोसो दूर है, ये मूल्यहीन जीवन में विश्वास रखते हैं, ये नेताओं और उनके चमचों के टूकड़ों पर पलकर, उन्हीं के इशारों पर नाचकर, ईमानदार पत्रकारों का टेटूआ दबाते हैं, सबूत चाहिए तो मेरे घर आइये।

हां एक बात सुनकर खुशी हुई कि एक नये पत्रकार यूनियन का जन्म हुआ हैं, जो निस्वार्थ भाव से किसी भी पत्रकार के लिए लड़ रहा हैं, ऐसे पत्रकार यूनियन में शामिल प्रीतम सिंह भाटिया और नवल किशोर सिंह को साधुवाद। ऑल इंडिया स्मॉल एंड मीडियम जर्नलिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन को बधाई। बाकी जो झारखण्ड पुलिस है, तो हइये है। किसी भी पुलिस को फोन लगाइये, आपको 30 सेंकेंड का शौर्य प्रदर्शित करता, झारखण्ड पुलिस का गाना सुनाई पड़ेगा, और उस गाना का यही पुलिस कितनी बार मान-मर्दन करती हैं, जब इसे देखियेगा तो सर शर्म से झूक जायेगा।

2 thoughts on “ये क्या मजाक है, पत्रकारों के खिलाफ ये पुलिसिया गुंडागर्दी आखिर कब जाकर रुकेगी?

  • abhay mishra

    its because of big news paper house this is happing

  • परमारथ जिन्हके मन मांहि
    तिन्हके कछु जग सुरलभ नाँहिं ।।
    सलाम✍️विद्रोही.🙏

Comments are closed.