अपनी बात

अभी चुनाव आयुक्त टी एन शेषण होते तो देश में हो रहे राज्यों के विधानसभा चुनाव कब के रद्द हो गये होते

अगर आज मुख्य चुनाव आयुक्त के रुप में टी एन शेषण होते, तो निश्चित मान कर चलिये, आज बंगाल, केरल, तमिलनाडू आदि राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव कब के स्थगित/रद्द कर दिये गये होते, और ये वोटों के सौदागर हाथ मलकर रह गये होते। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि मैंने टी एन शेषण के टेम्परामेंन्ट को देखा है, अब चूंकि आज वे इस दुनिया में नहीं हैं, ऐसे हालात में निश्चय ही भारत की जनता उन्हें अवश्य याद कर रही होगी, हमारा ऐसा मानना है।

सच्चाई यह है कि पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर ने आम लोगों के जन-जीवन को तहस-नहस कर दिया हैं, पर इन नेताओं को इन आम लोगों के जीवन पर तरस नहीं आ रहा। चाहे सत्तापक्ष हो या विपक्ष सभी मौतों के सौदागर बनकर चुनावी रैलियां कर रहे हैं, कोरोना की वीभिषिका को और बढ़ा रहे हैं, पर क्या मजाल कि भारत का चुनाव आयोग एक्शन ले लें।

क्या चुनाव आयोग को नहीं पता कि कभी चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषण ने प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में हुए मध्यावधि चुनाव के दौरान, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी, तब उन्होंने पूरे देश में तत्काल प्रभाव से लोकसभा चुनाव पर रोक लगा दी थी। क्या चुनाव आयोग को पता नहीं कि कभी टी एन शेषण ने पटना और पूर्णिया में लोकसभा चुनाव के दौरान जब गुंडागर्दी हुई तो उन्होंने पटना और पूर्णिया का चुनाव ही रद्द करवा दिया और पटना से चुनाव लड़ रहे तत्कालीन जनता दल के कद्दावर नेता व पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल लोकसभा पहुंचते-पहुंचते रह गये थे।

क्या चुनाव आयोग के वर्तमान आयुक्तों को पता नहीं कि कभी भाजपा के चुनाव चिह्न पर भी टी एन शेषण की टेढ़ी नजर पड़ गई थी और भाजपा वाले की स्थिति उस वक्त देखते बन रही थी, जब लाल कृष्ण आडवाणी ने कमल चुनाव चिह्न का प्रयोग अपनी राम रथयात्रा में कर दिया था।

आखिर इतिहास कौन बनाता है, इतिहास टीएन शेषण जैसे लोग बनाते हैं, आज भी टी एन शेषण के बाद कितने चुनाव आयुक्त आये और गये कितने लोगों को लोग जानते हैं, अरे जानेंगे भी कैसे, आप वैसा काम करेंगे तब न, यहां तो कोरोना की दूसरी लहर है, लोग मर रहे हैं, गाजर-मूली की तरह कोरोना ने काटना शुरु कर दिया है, पर चुनाव आयोग को विधानसभा चुनाव की पड़ी है, यहीं नहीं बंगाल में तो आठ चरणों में इन्होंने चुनाव करवा रखा है, आखिर क्या वजह थी, किसके इशारे पर आठ चरणों में चुनाव हो रहे हैं, पहले तो ऐसा कभी नहीं था, चलो पहले आठ कर भी दिया तो बाद में स्थिति की भयावहता को देखते हुए कुछ एक्शन तो ले सकते हो।

चुनावी रैलियों पर रोक लगाकर डिजिटल माध्यम से नेताओं को अपनी बात रखने को तो कह सकते हो, लेकिन नहीं, जनता मरे तो मरे, हमें उससे क्या मतलब? अगर ये सोच चुनाव आयुक्तों की हैं तो भाई देश भगवान भरोसे चल रहा है। नेताओं को क्या हैं? विधायकों/सांसदों/मंत्रियों/राज्यपालों/मुख्यमंत्रियों यहां तक की प्रधानमंत्रियों तक को क्या हैं, उन्हें कोरोना होने पर तो विशेष देशों या विशेष नगरों के विशेष अस्पताल के विशेष बेड, विशेष सुविधा जनता के पैसों से मिले करों के आधार पर प्राप्त हो ही जायेगी, और जनता बस वो भगवान-भगवान का रट लगाती रहे, मरती रहे, क्योंकि नेता और चुनाव आयोग ने जिस प्रकार से हालात बिगाड़े हैं, वो तो जनता महसूस कर ही रही हैं। बंटाधार कर दिया है, नेताओं व चुनाव आयोग ने। इन सब की जितनी आलोचना की जाय, फिलहाल कम है।