अपनी बात

प्रभात खबर के एक समाचार संपादक के अनुसार, झारखण्ड में सरकार नाम की कोई चीज नहीं, जब झारखण्ड में सरकार ही नहीं तो प्रभात खबर को सरकारी विज्ञापन देता कौन है, भूत-प्रेत या कोई और?

हे क्रांतिवीर, प्रभात खबर के समाचार संपादक साकेत पुरी जी, जब आप इतने ही परम ज्ञानी हैं, तो हेमन्त सरकार के खिलाफ लिखी अपनी इस सम्पादकीय को, फेसबुक के बजाय अपने अखबार के प्रथम पृष्ठ पर इसे क्यों नहीं स्थान दे देते, ताकि पूरे राज्य में क्रांति हो जाये और उस क्रांति की आग में जलकर हेमन्त सरकार पूरी तरह खाक हो जाये।

ताकि लोगों को कोरोना की दुसरी लहर से सदा के लिए मुक्ति भी मिल जाये, या खुद ही सिस्टम को सुधारने के लिए पांचजन्य शंख क्यों नहीं फूंक देते, क्योंकि आपका संपादकीय पढ़ने के बाद तो हमें लग रहा है कि आपके दिलों में जो जज्बा है, वह बहुत ही सुंदर है, आपके जैसा सोच तो किसी का अब तक हुआ ही नहीं, तभी तो आपने फेसबुक पर लिखा – “पोस्ट लंबा है, पर जरूर पढ़ियेगा और प्रतिक्रिया भी दीजियेगा, क्योंकि अब कुछ गंभीर चर्चा भी जरुरी है। ये हैं झारखण्ड सरकार और उसकी व्यवस्था।”

हे महाभाग, चूंकि आपने प्रतिक्रिया मांगा, मेरा प्रतिक्रिया कुछ लंबा-चौड़ा होता है, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न अलग से आपके इस संपादकीय पर मैं अपना पक्ष भी लिख दूं, हालांकि मेरा पक्ष भी वहीं है, जो आप ही के संपादकीय पोस्ट के नीचे लिखे एक कमेन्ट्स कर्ता का है कि “इस पोस्ट की खबर की शक्ल में फ्रंट पेज दे पाते तो शायद बात कुछ और हो…, पर अफसोस ये महज पोस्ट है।”

साकेत पुरी ने इस पोस्ट में चार टिप्पणियां की है, जिन टिप्पणियों को पढ़कर आप को लगेगा कि सचमुच जो भी गड़बड़ियां हो रही हैं, उसके मूल में सरकार है, दरअसल पत्रकारों का क्या है? उन्हें तो कुछ करना है नहीं, जो भी करना है, सरकार या सरकार के मुलाजिमों को, वे कर भी रहे हैं, लेकिन जिस प्रकार से कोरोना पोजिटिव की संख्या बढ़ रही हैं, वो बढ़ना ही, सरकार द्वारा की जा रही सारी व्यवस्थाओं पर भारी पड़ जा रहा है, शायद इसी को महामारी कहते हैं, जिन लोगों ने पूर्व में महामारियों को झेला है, अथवा इसी महामारी को विदेश में देखा है, वे जानते है कि कोरोना को झेलना इतना आसान नहीं हैं।

हम महसूस कर रहे हैं कि अगर राज्य में कामचोरों व मौके का फायदा उठानेवाले दुष्ट अधिकारी हैं तो इसी में ईमानदारी से लोगों की सेवा करनेवाले अधिकारियों का भी दल हैं, जो अपनी बेहतरी दे रहा हैं, और इसका श्रेय भी लेना नहीं चाहता, पर हरसंभव मदद कर रहा है, कई तो पिछले बीस दिनों से ठीक से सो भी नहीं पाये, और जब उनके द्वारा की जा रही सेवाओं पर कोरोना भारी पड़ जा रहा हैं तो वे रो भी नहीं पा रहे, लेकिन कोशिश किये जा रहे हैं और हमें लगता है कि उनकी यह सेवा एक न एक दिन कोरोना पर भारी पड़ेगी।

सच्चाई यह भी है कि इस कोरोना से हर वर्ग प्रभावित है। ऐसा नहीं कि नेता व अधिकारियों को इसकी विशेष सुविधा मिल रही है, नेता अधिकारी भी त्रस्त है। वे भी कोरोना से मर रहे हैं, क्योंकि कोरोना ने सभी को लाचार कर दिया है। पहले चरण में कोरोना ने इतना उत्पात नहीं मचाया और लोगों को लगा कि अब कोरोना अगर दुबारा आयेगा भी तो उतना हानि नहीं करेगा, पर जो स्थितियां हैं, वो भयंकर है, कोरोना ने गजब ढाया है, लेकिन विश्व के कई देशों ने जिस प्रकार से भारत और भारत सरकार को मदद करने के लिए कदम बढ़ाया, भारत सरकार राज्य सरकार के साथ मिलकर कोरोना से लड़ने के लिए काम कर रही है, वो काबिले तारीफ है, ये ठीक है कि उसका प्रभाव अभी सीधा देखने को नहीं मिल रहा, पर कुछ दिनों में इसका असर दिखेगा।

हम भारतीयों की एक और गंदी आदत है, हम किसी भी चीज को तभी स्वीकार करते हैं, जब वो चीजें हमें बुरी तरह प्रभावित करने लगती है और इस गलती को हम स्वीकार करने के बजाय, सरकार पर उन गलतियो को मढ़ देते हैं, क्या ये सच्चाई नहीं कि जब 16 जनवरी से देश में कोरोना टीका लगाने का अभियान चला तो कई नेताओं व जनता ने इस टीके को लेने में रुचि नहीं दिखाई, और इसका प्रभाव यह पड़ा कि महाराष्ट्र व आंधप्रदेश ही नहीं, बल्कि कई राज्यों में वैक्सीनेशन प्रभावित हुआ, कई जगह लाखों टीके बर्बाद हो गये, तब जिस देश में इस प्रकार की हालत होगी, तो भोगेगा कौन?

अब लीजिये, इन बातो का जिक्र साकेत पुरी ने तो नहीं किया, लेकिन अपने पोस्ट में चार प्वाइंट्स उठाए, वो चारों प्वाइंट्स सही हैं, पर सवाल तो बनता है कि ये फेसबुक पर क्यों? अखबार में क्यों नहीं, क्या अखबारवालों ने मना किया था? क्या साकेत पुरी जानते है कि ये सब अखबारों में छपने को नहीं मिलेगा, इसलिए अपनी दिल की भड़ास, दिल खोलकर निकाली, झारखण्ड सरकार को बदनाम किया और लोगों से कमेन्ट्स भी दिल खोलकर मंगाये, और उस पोस्ट में अंत में यह भी लिख दिया – “अब इसके बाद भी कोई कहता है कि झारखण्ड में सरकार है तो ऐसे लोगों की बलिहारी।”

अब सवाल यह भी उठता है कि प्रभात खबर के समाचार संपादक साकेत पुरी के अनुसार झारखण्ड में सरकार है ही नहीं, तो फिर प्रभात खबर को भर-भर पेज का सरकारी विज्ञापन कौन दे आता है – भूत-प्रेत या झारखण्ड सरकार के आलाधिकारी अथवा रांची के सूचना भवन में विज्ञापन के लिए जो उनके विज्ञापन लेनेवाले अधिकारी-कर्मचारी किससे मिलने के लिए जाते हैं, अगर इस पर भी साकेत पुरी सम्पादकीय लिखते तो अच्छा होता। भाई, विज्ञापन लेने के लिए झारखण्ड सरकार है, हेमन्त सरकार हैं, खुद अखबार में हेमन्त सरकार मौजूद हैं, पर फेसबुक में सरकार साफ हो जाती हैं, भाई ये दिमाग कहां से लोग लाते हैं?