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रोहित की मौत पर रांची में बैठे गिद्ध टाइप के नेताओं/पत्रकारों ने मनाई खुशियां, बिहार-झारखण्ड में कोरोना से दर्जनों पत्रकारों की मौत, AISMJWA शनिवार को मनायेगी काला दिवस

बिहार-झारखण्ड में कोरोना से अब तक दर्जनों पत्रकारों की मौत हो चुकी हैं। कई पत्रकार अभी भी विभिन्न अस्पतालों में जीवन और मौत से जूझ रहे हैं। कई अपने घरों में आइसोलेटेड हैं। कई ऐसे भी पत्रकार हैं, जिनका पूरा परिवार ही कोविड पोजिटिव हो चुका हैं, चूंकि वे आर्थिक रुप से बहुत ही कमजोर हैं, छोटे व मझौले पत्रकार हैं, उनकी तो उनका प्रबंधन भी नहीं सुनता, ऐसे में उन्हें इस बात की चिन्ता ज्यादा सता रही हैं कि उनकी मौत के बाद उनके परिवार को कौन देखेगा?

सच्चाई यह भी है कि राज्य सरकारों को भी इन पर ध्यान नहीं हैं, हालांकि वैसे पत्रकार जो आर्थिक रुप से मजबूत हैं अथवा विभिन्न शक्तिशाली पदों पर विराजमान हैं, उनके लिए फिलहाल इस कोरोना में भी कोई दिक्कत नहीं हैं, क्योंकि उन्हें वो हर प्रकार की सुविधा मिल जा रही हैं, जो किसी को उपलब्ध नहीं हैं, ये अलग बात है कि इतना होने के बावजूद कोरोना उनको भी नहीं छोड़ रहा।

इधर प्रख्यात पत्रकार रोहित सरदाना की मौत ने पत्रकार जगत को झकझोर कर रख दिया हैं, क्योंकि जो कल तक कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए हाथ बढ़ा रहे थे, आज सुबह-सुबह खबर मिली कि वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। शर्मनाक बात यह भी रही कि झारखण्ड में कई ऐसे राजनीतिक दलों के नेता-कार्यकर्ता के संग वैसे गिद्ध टाइप के पत्रकार भी दिखाई पड़े, जो रोहित सरदाना की मौत पर सोशल साइट पर अपनी खुशियां प्रकट कर रहे थे, उन्हें ताना मार रहे थे।

इन दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं तथा उन घटियास्तर के पत्रकारों को इतना भी ज्ञान नहीं था कि किसी की मौत पर ताना नहीं मारा जाता, किसी की मौत पर खुशियां नहीं मनाई जाती, यहां पर तो मृतकों की अंतिम यात्रा को देख लोग सर झूका देते हैं, पर जिस प्रकार इन लोगों ने रोहित सरदाना को लेकर नंगा नाच किया, उन्हें ताने मारे तथा एक समुदाय के लोगों ने जमकर यहां खुशियां मनाई, वो बताने के लिए काफी हैं कि किस प्रकार हमारा समाज शैतानी सोच रखकर मानवीय मूल्यों को समाप्त करने पर तूला है।

हम आपको बता दें कि इसमें वो भी पत्रकार शामिल हैं, जो भाजपा शासनकाल में खुद को उपकृत कर चुका हैं, भाजपा के कई नेता उसे काफी मदद किये हैं, करते रहते भी हैं, लेकिन वो स्वभाव से कभी भाजपाई नहीं रहा, वो विशुद्ध रूप से खुद को वामपंथी बताता है, पर वो वामपंथी नहीं, बल्कि विशुद्ध मतलबी धर्म से है, मतलबी धर्म मतलब समझते है न, कहने का मतलब, जब जैसा, तब तैसा। हालांकि इस पत्रकार की कड़ी आलोचना भी हो रही हैं, जिस आलोचना से घबराकर उसने अपनी पोस्ट डिलीट कर दी हैं, लेकिन उसके डिलीट करने के पूर्व ही रांची के एक पत्रकार मनोज कुमार ने उसकी स्क्रीन शॉट लेकर, उसकी सारी कलाबाजी जनता के सामने रखी दी हैं, प्रमाण आपके सामने हैं, देखिये…

इसी बीच यह भी खबर है कि बिहार-झारखण्ड के प्रख्यात पत्रकार सुकान्त व पुष्पवंत अब इस दुनिया में नहीं रहे, कोरोना ने इन दोनों को लील लिया। आज रांची से प्रभात खबर ने पृष्ठ संख्या दो पर एक खबर छापी। खबर है – कोरोना का कहर, राज्य भर में आधा दर्जन से ज्यादा पत्रकारों की मौत। लेकिन इस खबर में पत्रकारों के नाम हैं, पत्रकारों के फोटो हैं, पर ये पत्रकार किस अखबार या चैनल से जुड़े थे, इस अखबार ने दिया ही नहीं।

अब आप इसी बात से समझ लीजिये, कि इन छोटे पत्रकारों को अखबारों में कितना सम्मान दिया जाता हैं, या इनकी क्या हैसियत होती हैं। खैर ये सभी दिवंगत हो चुके हैं, हो सकता है कि इनमें से कई के खेवनहार हो, पर सच्चाई तो यह भी है कि इनमें से कई हैं, जिनका कोई खेवनहार ही नहीं। ऐसे में इनकी पीड़ा कौन समझेगा?

इधर पत्रकारों के लिए संघर्ष कर रही AISMJWA इन्हीं सभी बातों को लेकर कल यानी एक मई को काला दिवस दिवस मनायेगी, तथा राज्य सरकार व केन्द्र सरकार से पत्रकारों के लिए कुछ करने को कहेगी। प्रीतम सिंह भाटिया का कहना है कि आखिर पत्रकारों ने कौन सा गुनाह किया है कि न तो प्रबंधन और न ही सरकार ही इनके किये सेवाओं व योगदान का ख्याल रखते हुए, उन्हें आर्थिक मदद पहुंचा रही हैं।

प्रीतम सिंह भाटिया ये भी कहते है कि पत्रकारों के नाम पर कई संगठन बने हुए हैं, वे बताए कि इस मुश्किल घड़ी में कहां हैं, अभी तो सभी को मिलकर पत्रकारों के लिए कुछ करना चाहिए, सरकार पर दबाव बनाना चाहिए, ताकि इन पत्रकारों के घरों में फैली अंधियारी में कोई दीपक जल सकें, उनके घर में भी रोजी-रोटी का प्रबंध हो सकें। प्रीतम सिंह भाटिया ने कहा कि भले ही कोई पत्रकारों के साथ इस मुश्किल घड़ी में रहे या न रहें, लेकिन वे तथा उनका संगठन इस मुद्दे पर साथ हैं, और इसको लेकर संघर्ष करता रहेगा।