नेताओं याद रखो, यह समय टिव्टरबाजी का नहीं, पत्रकारों को मदद करने का हैं, मीडिया संस्थानों पर दबाब डलवाओ और उन्हें उनका हक दिलवाओ
इधर पत्रकारों का कोरोना संक्रमण से मरना जारी है। संख्या 20 को पार कर गई है, लेकिन क्या मजाल कि कोई भी राज्य का नेता या पत्रकार से नेता बना, नेता पत्रकारों के लिए कुछ कर जाये, सभी घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। कोई पत्रकारों के मरने के बाद, उसके बारे में झूठी श्रद्धाजंलि देकर अपना पिंड छुड़ा ले रहा हैं, तो कोई दो मिनट का मौन धारण कर, स्वयं को इस प्रकार जनता के समक्ष पेश आ रहा हैं, जैसे लगता है कि उसने गजब कर डाला है।
एक जनाब को तो लगा कि चलो उपवास की राजनीति ही क्यों न शुरु कर दी जाये, अखबारों में नाम भी छप जायेगा, और हम चर्चित भी हो जायेंगे, जनाब ने अपने घर में एक ओर भगवान बिरसा मुंडा का फोटो रखा और दुसरी ओर भीम राव अम्बेडकर का चित्र, फिर दोनों पर माला पहनाया, उसके बाद चार घंटे तक बैठकर इसे एक दिवसीय उपवास बता दिया और लीजिये पत्रकारों के हित के लिए संघर्ष करनेवाला खुद को नेता घोषित कर दिया, उसके बाद कुछ अखबार वाले और पत्रकार यूनियनों के नेता उन्हें इसके लिए बधाई भी दे दिये।
इधर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय को देख लीजिये, जनाब कांग्रेस के बहुत बड़े नेता, उन्हीं की कृपा से राज्य में सरकार चल रही हैं, पर वे कर क्या रहे हैं, ये भी बयान दे रहे हैं, बयान क्या है, तो राज्य सरकार को चाहिए कि पत्रकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करें।
अरे भाई आप ये क्यों नहीं कह रहे कि जिन संस्थानों में ये पत्रकार काम कर रहे थे, वे संस्थान सबसे पहले आगे निकले तथा उनके द्वारा किये गये कार्यों का सम्मान करते हुए, उन्हें विशेष पैकेज देने की व्यवस्था करें, या राज्य सरकार पर दबाव क्यों नहीं बनाते कि राज्य सरकार उन अखबारों-चैनलों पर शिकंजा कसें, जो इन गरीब पत्रकारों को उनका हक दबाकर बैठे हैं। दरअसल आप इसलिए ऐसा नहीं करते, क्योंकि आप नहीं चाहते कि अखबारों/चैनलों के मालिक या संपादक आपके इस प्रकार के बयान से नाराज हो जाये।
सच्चाई यह है कि केन्द्र/राज्य सरकार की इस कोरोना महामारी में हिम्मत नहीं कि इस विशेष परिस्थितियों में किसी के लिए भी कुछ विशेष पैकेज की व्यवस्था कर दें, क्योंकि देश व राज्य फिलहाल आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं, और इस आर्थिक संकट में सरकार किसी की भी हो, वो आवश्यक सेवाओं पर ही ज्यादा ध्यान दे रही हैं, जैसे कोरोना का टीका लगवाना, कोरोना पीड़ितों के लिए आक्सीजन, वेंटिलेटर, वैक्सीन, इंजेक्शन, दवा आदि की व्यवस्था करना, और इतना ही करने में किसी भी सरकार के पसीने छूट रहे हैं।
कही भी ईमानदारी दिख नहीं रही है, अगर सही में पत्रकारों के हित की बात करनी हैं तो कम से कम ईमानदारी तो दिखाइये, ये क्या हर बात के लिए सरकार पर थोप दे रहे हैं और बेचारी सरकार न तो उसे बोलते बन रहा हैं और न ही इस पर कुछ करते बन रहा है। ऐसे में दायित्व किसका बनता है?
अरे इसी राज्य में 14 लोकसभा के तथा छः राज्यसभा के सांसद व 82 विधायक है और ऐसा भी नहीं कि ये सारे भिखमंगे हैं। ये कितना विकास करते हैं, और सांसद-विधायक फंड का किस प्रकार उपयोग करते हैं, कौन नहीं जानता? क्या ये इतने गये-गुजरे हैं, अरे जब चुनाव होता है तो वे पत्रकारों के लिए चुपके से तो बहुत कुछ व्यवस्था कर देते हैं, पर आज क्या कर रहे हैं, जब सच में इनकी जरुरत हैं तो बयानबाजी से काम चला रहे हैं।
मैं तो कहता हूं कि क्या समाज में अरबपतियों की कमी है। धन्ना सेठों की कमी हैं, वे क्यों नहीं आगे आ रहे हैं और इन पत्रकारों के लिए कुछ करने की घोषणा करते हैं, और कुछ नहीं तो कम से उनके परिवार के बच्चों की पढ़ाई का ही जिम्मा ले लें, पर ये तो नहीं कर रहे, कर क्या रहे हैं, तो टिव्टरबाजी, फेसबुकबाजी?
आज ही सुनने को मिला है कि कई पत्रकार अभी भी सदर अस्पताल में अपना इलाज कर रहे हैं, कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है, वे सैम्फोर्ड तो कोई पल्स में अपना इलाज करा रहे हैं, जो आर्थिक रुप से मजबूत है, उनके लिए तो कोई बात ही नहीं, पर जो गरीब है, जो आर्थिक रुप से सक्षम नहीं हैं, उनके लिए तो कुछ करना ही होगा।
साथ ही यह भी ध्यान देना होगा, नहीं तो कही ऐसा नहीं कि आनेवाले समय में कोई समाजसेवी आगे बढ़े, आर्थिक मदद देने की बात करें तो वे लोग इसका फायदा उठा ले जाये, जिनको धन की कोई कमी ही नहीं, क्योंकि पत्रकार भी इसी जमात से आते हैं, जिस जमात में हम रहते हैं। चलिए इसी बीच खुशी की बात है कि कोरोना से पीड़ित रोगियों की संख्या धीरे-धीरे घटनी शुरु हुई है, यानी पीक अब खत्म होने लगा है। दुसरी ओर कोरोना की भारतीय दवा भी जल्द ही बाजार में दिखेगी, जिसका लाभ सभी कोरोना पीड़ितों को प्राप्त होगा और एक दिन ऐसा भी होगा कि देश खुले वातावरण में सांस लेगा। चारों ओर खुशियां ही खुशियां होंगी।