एकदिवसीय भूख हड़ताल का देशव्यापी समर्थन, CM हेमन्त ने विद्रोही24 को दिलाया भरोसा, पत्रकारों के हक में होंगे जल्द फैसले
आज मैं बहुत खुश हूं। मुझे पता नहीं था कि मेरे द्वारा आज किये गये भूख हड़ताल का इतना समर्थन मिलेगा। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन स्वयं फोन कर पत्रकारों की दुर्दशा पर हमसे बात करेंगे और भरोसा दिलायेंगे कि वे इस पूरे प्रकरण को देखेंगे और कोशिश करेंगे कि सारे पत्रकारों के साथ न्याय हो, उनका हक मिले, जो उनका अधिकार है।
चूंकि मैंने इस बात की घोषणा पूर्व में ही कर दी थी कि मैं 19 मई को पत्रकार हित में भूख हड़ताल करुंगा और तीन प्रमुख मांगें जो पत्रकार हित में अत्यंत आवश्यक हैं, सरकार के समीप रखुंगा, इसलिए मैंने बिना देर किये, प्रातः उठा और नित्यक्रिया कर अपने आवास में भूख हड़ताल पर बैठ गया और इसकी जानकारी सोशल साइट के माध्यम से लोगों को दे दी। मुझे इसका पूरा विश्वास था कि भूख हड़ताल का प्रभाव अवश्य पड़ेगा, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन तक बातें जरुर पहुंचेंगी, वे ध्यान पूर्वक हम पत्रकारों की बातें जरुर सुनेंगे, और हुआ भी ऐसा ही।
खुशी इस बात की है कि ये आंदोलन जैसे-जैसे दिन बीतता गया, पहले जिला, फिर राज्य और उसके बाद देशव्यापी हो गया। देश के कोने-कोने से पत्रकारों ने हमें व्हाटसएप, फेसबुक तथा फोन से जुड़ने लगे और बातों को जानने में दिलचस्पी दिखाई, मैंने भी उनकी बातों को ध्यान पूर्वक सुनता और उनका सही जवाब देता, सभी ने यह बात माना भी कि राज्य ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में जो छोटे-मझौले या अवैतनिक रुप के काम करनेवाले पत्रकार हैं, उनके साथ अन्याय होता हैं, और इनके हिस्से का हक वे बड़े पत्रकार उठा लेते हैं, जिनके पास पैसों और धन की कोई कमी नहीं होती। सभी ने यह भी माना कि इन छोटे-मझौले पत्रकारों को मरने के बाद ये सम्मान भी नहीं देते तो परिवारों की क्या सुध लेंगे?
सर्वप्रथम जैसे ही हमने ये घोषणा की कि मैं इन बातों को लेकर आंदोलन करुंगा, भूख हड़ताल करुंगा, तब उसी समय AISMJWA के प्रीतम सिंह भाटिया ने खुलकर कहा कि मेरे इस भूख हड़ताल रुपी आंदोलन का उनका संगठन भी समर्थन करेगा और लीजिये, उनसे जुड़े पत्रकारों ने खुलकर समर्थन किया और कई घंटों तक वे विभिन्न स्थानों पर भूख हड़ताल पर बैठे भी।
रांची के वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र सोरन ने तो अपने सोशल साइट फेसबुक पर खुलकर यह घोषणा कर दी थी कि वे मेरे इस आंदोलन का समर्थन करेंगे, वे खुद भी भूख हड़ताल पर बैठे और अपने मित्रों को प्रेरित भी किया, यहां दिये गये चित्र ये बताने के लिए काफी हैं, कि उन्होंने किस प्रकार इस आंदोलन को तेज करने में भूमिका निभाई।
अपने प्रिय मित्र विनय मुर्मू का कोरोना से इलाज कराते हुए, भी इस आंदोलन में कूद पड़ना बताने के लिए काफी है कि दर्द कितना गहरा है। प्यारा सा पत्रकार परवेज कुरैशी ने भी कहा था कि सर हम भी आपके इस आंदोलन के साथ है। कितने लोगों का नाम लिखू, बहुत छोटा पड़ जायेगा। पत्रकार सुभाष शेखर महतो ने भी इस आंदोलन में अपनी ओर से समिधा डाली। बेंगलुरु से नेहाल किदवई और दिल्ली से अमरेन्द्र सिंह ने भी सुध ले ली।
जमशेदपुर व धनबाद के पत्रकारों की भी भूमिका गजब रही। जमशेदपुर का मोर्चा वरिष्ठ महिला पत्रकार अन्नी अमृता ने संभाला। अन्नी ने जमशेदपुर प्रेस क्लब के मित्रों के साथ आंदोलन में भाग ली और मेरे भूख हड़ताल का खुलकर समर्थन किया। अन्नी अमृता का कहना था कि आपका आंदोलन पत्रकार हित में है।
वरिष्ठ पत्रकार सुनील तिवारी तो कई बार विडियो कॉल करके हमारे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली, वो सबसे ज्यादा हमारे स्वास्थ्य को लेकर चिन्तित थे, क्योंकि एक तो भूख हड़ताल और उपर से मैं डायबिटीज का पेशेन्ट, उन्हें हमारी चिन्ता ज्यादा सता रही थी। उधर जिनसे हमने पत्रकारिता सीखी, मतलब पटना के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ ने भी हमारे आंदोलन का समर्थन किया। बिहार से ही खबर मिली कि इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट बिहार इकाई ने भी मेरे इस आंदोलन को समर्थन दिया।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हम पत्रकार चाहे कितना भी आपस में लड़े, वैचारिक मेल न हो, पर ऐसे बिन्दु जहां पत्रकारों की बेहतरी की बातें हो रही हैं, उनके कल्याण की बात हो रही हैं, इसी प्रकार एकता बनाकर आंदोलन करेंगे तो आज नहीं तो कल सफलता अवश्य मिलेगी। पत्रकारों को उनका हक मिलेगा और ये आंदोलन राज्यव्यापी न होकर देशव्यापी हो जायेगा।
मैं फिर बता देना चाहता हूं कि मेरा मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से इन्ही तीन बिंदुओं पर बातचीत हुई, जिनको लेकर मैं धरने पर था। पहला – जिन अखबारों/चैनलों में जो भी पत्रकार काम करते हैं, कम से कम वे संस्थान इन पत्रकारों का सम्मान करना सीखें, मरणोपरांत खुलकर कहें, ये फलां पत्रकार, मेरे यहां काम करता था, जो आज तक नहीं करते रहे हैं। दूसरा – बहुत सारे छोटे/मझौले ऐसे पत्रकार जो अवैतनिक रुप से काम करते हैं, कम से कम ये बड़े संस्थान उनके लिए अपने यहां एक फंड बनाएं, जिस फंड से ऐसे पत्रकारों को राशि उपलब्ध कराकर उन्हें आकस्मिक संकटों से बचाया जा सकें, जो बहुत ही जरुरी है।
तीसरा – राज्य सरकार, अखबारों व चैनलों को दिये जानेवाले विज्ञापनों से दस प्रतिशत का सेस लगाए, और इस दस प्रतिशत सेस को पत्रकारों के कल्याण पर खर्च करें, वह भी पत्रकार कल्याण कोष बनाकर, जिस पर राज्य सरकार का वर्चस्व हो और इस राशि से पत्रकारों का निरन्तर कल्याण होता रहे। एक बार पुनः उन तमाम लोगों को बधाई, जो इस आंदोलन में मेरे साथ रहे, क्योंकि बिना आप सभी के समर्थन के यह संभव नहीं था। विश्वास रखिये, इसका परिणाम सुखद निकलेगा, क्योंकि मुझे अपने मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन पर पूर्ण विश्वास है।