मीडिया संस्थानों के मालिकों/संपादकों के खिलाफ भूख हड़ताल भी करियेगा और उनसे ये आशा भी रखियेगा कि वे आपकी समाचारों को अपने यहां स्थान भी दें, ऐसा कभी हुआ हैं क्या?
ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ोगे और ये चाहत भी रखोगे कि वो तुम्हे ‘सर’ या ‘राय बहादुर’ की उपाधि दे दें, तुम्हें दौलत से मालामाल कर दें, तुम्हें हर प्रकार की विशेष व्यवस्था कर दें, तो ये नहीं न होगा भाई। इस सब के लिए आपको ब्रिटिश हुकूमत का जासूस या एक शब्द में कह दें तो आपको उसका ‘पिछलग्गू’ या ‘चाटूकार’ बनना पड़ेगा, और जब इनके खिलाफ आप सड़क पर उतरियेगा तो फिर आपको भगत सिंह बनना पड़ेगा और भगत सिंह के साथ क्या होता हैं, हमें नहीं लगता है कि आपको इसके बारे में भी बताना पड़ेगा।
ठीक उसी प्रकार अखबार व चैनलों के मालिकों/संपादकों व बड़े-बड़े निर्लज्ज पत्रकारों के खिलाफ सड़कों पर उतरोगे/भूख हड़ताल करोगे तो फिर इनके पास भी जितनी ताकत हैं, उतनी ताकत तो वे आपके खिलाफ लगायेंगे ही और जब वे ताकत लगायेंगे तो हो सकता है कि आपका नुकसान भी हो या उनका खुद का नुकसान हो जाये, इसलिए इन सब पर चिन्ता करना या चर्चा करना भी बेमानी है।
अगर आपके आंदोलन को किसी अखबार अथवा चैनल ने अपने यहां जगह नहीं दी, तो उसने वही किया, जो उसे करना चाहिए था, क्योंकि वो महात्मा गांधी की औलाद तो हैं नहीं, कि कोई उनके गाल पर एक चाटा मारेगा तो वे तुरन्त दुसरी गाल आपके सामने कर देंगे, ये तो वहीं करेंगे, जो एक बिजनेसमैन अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए करता है। इस बाउंसर रखने के युग में, इस बॉडीगार्ड रखने के युग में, आप ऐसे लोगों से सत्य व ईमानदारी की आशा रखते हैं, तो आप निहायत शुद्ध शत् प्रतिशत महामूर्ख है।
कल हमने जो भूख हड़ताल की थी, वो इसलिए थोड़े ही की थी, कि ये अखबार वाले/चैनलवाले अपने यहां जगह दें, अरे वे कैसे देंगे, इस समाचार को जगह, हमारा आंदोलन तो इन्हीं के खिलाफ था। रही बात उन पत्रकारों के लिए जिसके लिए हम संघर्ष कर रहे थे, उन्होंने भी इसे जगह नहीं दी, तो भाई मेरे, रोटी, कपड़ा और मकान के लिए सिर्फ संघर्ष करनेवालों से ऐसे प्रश्न पूछना ही बेमानी है।
आपने या हमने उनके लिए लड़ा तो सिर्फ हमने अपना धर्म निभाया, और धर्म बहुत ही क्रूर होता है, हो सकता है कि जिसके लिए आप लड़ रहे हैं, वहीं आपकी छाती में गोली ठोक दें, क्योंकि इतिहास है, दुनिया के लोग मरणोपरांत आपको अच्छा इन्सान क्या भगवान का दर्जा दे देंगे, पर आपके जीवित रहने तक आपकी अच्छाइयों के लिए न तो बधाई देंगे और न ही सहयोग क्योंकि मैंने कहा न, कि वे सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान के आगे सोचे ही नहीं, अगर इससे ज्यादा सोचा तो फिर उन्हें मस्ती की दूसरी चीजें याद आ जायेंगी, और कुछ नहीं।
इसलिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी संस्थान, अखबार या चैनल के प्रति गंदी भावना नहीं रखना चाहिए, सिर्फ ये देखना चाहिए कि इस बेइमानी के युग में अगर एक दो लोगों ने भी आपका समर्थन किया तो यह आपकी जीत हैं, आपके उन साथियों की जीत हैं, जो दिवंगत हो चुके या उनके परिवारों की जीत हैं, जो फिलहाल अभावों में जी रहे हैं।
साथ ही राज्य के मुखिया द्वारा आपके संघर्ष का संज्ञान लिया जाना ही काफी हैं। जिस प्रकार राज्य के मुखिया यानी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से मेरी बातचीत हुई हैं, उस बातचीत से ही पता चल जाता है कि जल्द ही निकट भविष्य में राज्य के गरीब, छोटे व मझौले पत्रकारों को उनका खोया सम्मान अवश्य प्राप्त हो जायेगा, अब बस थोड़ा इन्तजार करिये।