डाक्टरों/पत्रकारों के लिए काल बने हेमन्त सरकार के मंत्री व पुलिस पदाधिकारी, सरयू राय ने सरकार की साख पर उठाए सवाल
जमशेदपुर पूर्व से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने कल यानी 24 मई 2021 को एक ट्विट किया, उनके द्वारा किया गया यह ट्विट सारे मामले की पोल खोल देता है। वो ट्विट है – “बंद कांतिलाल अस्पताल में चल रहे एडवांस डायग्नोस्टिक सेंटर के मालिक कौन है? क्या ये सरायकेला जिला के एक शीर्ष पुलिस अधिकारी के साले हैं, जहां फर्जी मुकदमा कर डा. आनन्द को जेल भेजा गया? क्या इस सेंटर के सत्तापक्ष के एक रसूखदार नेता परिवार का पार्टनरशिप है? ये सवाल जवाब मांगते हैं।”
इस ट्विट का ईमानदारी से सरकार में शामिल भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को जवाब देना चाहिए, पर जवाब नहीं आयेगा, ये शत प्रतिशत सत्य है। जमशेदपुर के आदित्यपुर में 111 सेव लाइफ हास्पिटल चलानेवाले डा. ओ पी आनन्द इन दिनों जेल में बंद है। जेल में बंद होने की पटकथा उसी दिन लिख दी गई थी, जब उन्होंने कुछ सत्य बातें डंके की चोट पर कह दी, ऐसे भी डंके की चोट पर सत्य बात कहेंगे, तो भाई दिक्कत तो होगी ही, क्योंकि जो सत्य को स्वीकार ही नहीं करते, वे आपको अपना पावर दिखायेंगे ही।
डा. ओ पी आनन्द ने क्या कहा था उस दिन एक बार फिर ध्यान से पढ़िये – “जो सरकार अपने विधायक मंत्री के उपर कई करोड़ खर्च करती है और गरीबों का रेट छः हजार तय करती है, तो यह जनता को व मुझे भी जानने का हक है उसकी रेट का आधार क्या है? क्या झारखण्ड की जनता के लिए अलग इलाज होगा और विधायक मंत्री के लिए अलग? सरकार बताएं कि उसका पैकेज रेट क्या है? दरअसल पैकेज रेट और उसके डिटेल्स मांगने पर जांच टीम ने दिखाया ही नहीं।
आखिर किसी भी पैकेज का निर्धारण कैसे होगा? किस सामान के आधार पर होगा? कितना ऑक्सीजन लेवल पर उसने पैकेज रेट तय किया, क्योंकि किसी भी पैकेज रेट का निर्धारण उसके वास्तविक मूल्य के आधार पर होता है, उस पैकेज रेट में बेड चार्ज, संबंधित डाक्टरों के चार्ज, यानी उसमें ऑल इन ऑल होता है। लेकिन इस संबंध में राज्य सरकार की ओर से कोई दिशा-निर्देश ही नहीं हैं।”
और इसी क्रम में डा. ओ पी आनन्द ने गुस्से में आपत्तिजनक बातें भी कह दी, जो उन्हें नहीं कहना चाहिए था, डा. ओ पी आनन्द ने उस दिन पत्रकारों से यह कहा भी था कि आप उनके द्वारा कहे गये आपत्तिजनक बातों को हटा देंगे, लेकिन पत्रकारों ने उसे भी वायरल कर दिया। चलिये वायरल कर दिया तो कर दिया, बाद में अपने द्वारा कहे गये आपत्तिजनक बातों के लिए डा. ओ पी आनन्द ने सार्वजनिक रुप से माफी भी मांग ली।
उसके बाद भी डा. ओ पी आनन्द को जलील करना, उनके घरों पर छापामारी करवाना, उनके परिवार से पुलिसिया स्टाइल में बात करना, उन्हें जेल भेजना, सब कुछ बता देता है कि ये सत्ता का घमंड बोल रहा हैं, और सरयू राय के शब्दों में ठीक वहीं पर एक शीर्ष पुलिस पदाधिकारी का साला हर प्रकार के कुकर्म कर रहा हैं, उसे कोई बोलनेवाला नहीं हैं। सरयू राय तो इस पूरे विवाद पर कहते है कि इससे सरकार की साख पर ही बट्टा लग रहा हैं, डा. ओ पी आनन्द को क्या हैं, वे आज जेल में हैं, और वे जल्द ही जेल से छूटेंगे।
इधर ऐसा ही हाल रांची में हैं, राज्य औषधि नियंत्रण निदेशालय में कार्यरत औषधि निदेशक, एक चैनल के मालिक का रिम्स रांची में दवा प्रतिष्ठान खुलवाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी है, उसके लिए लिखित पैरवी पत्र लिख रही हैं, पर न तो उस औषधि निदेशक और न ही उक्त चैनल के मालिक से कोई पूछताछ हो रही हैं या पुलिसिया कार्रवाई हो रही हैं कि भाई ये सब क्या है?
जो साफ बता रहा हैं, कि अगर आप उच्च कोटि के अपराध करनेवाले हैं, तो आपको सत्ता का संरक्षण/पुलिस का संरक्षण अवश्य मिलेगा, यहीं नहीं आपको एके 47 के साथ तीन-तीन, चार-चार बॉडीगार्ड भी मिलेंगे, पर जैसे ही कोई एक ईमानदार पत्रकार इस मामले को उजागर करता है, तो उसे थाने में बुलाकर, उसे डराने-धमकाने का प्रयास किया जा रहा है, वह भी बिना किसी कारण के।
कमाल देखिये, आज के अखबारों में एक खबर छपी है, पुलिस महानिदेशक नीरज सिन्हा का फर्जी सोशल मीडिया एकाउंट बनाकर उनके परिचितों से रुपये मांगनेवाला लियाकत उत्तर प्रदेश के मथुरा से गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन ऐसी ही हरकत रांची के पूर्व डीसी महिमापत रे, वर्तमान डीसी छवि रंजन और झामुमो नेता विनोद पांडे के साथ भी हुआ, इन सभी के फर्जी सोशल मीडिया एकाउंट बनानेवाले कहां हैं? वे किस जेल में बंद हैं?
क्या यह लोगों को जानने का हक नहीं है, और मुझे भी ये जानने का हक नहीं है कि इसी साल फरवरी में न्यूज 11 भारत के द्वारा रांची के कोतवाली थाने में कांड संख्या 49/2021 दर्ज हुआ, जो शत प्रतिशत झूठा केस है। उस मामले में जांच कहां तक पहुंची? क्या घटना स्थल के सीसीटीवी व केस करनेवालों के सीडीआर स्थानीय पुलिस ने जब्त किये, या रांची के टॉप के राजनीतिज्ञों/पत्रकारों/ईमानदार भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों/पुलिस सेवा के पदाधिकारियों/टॉप के संपादकों से मेरे चरित्र के बारे में बातचीत की।
अगर नहीं तो क्या ये अन्याय नहीं, धीरे-धीरे समय बीताना, झूठे मुकदमों के साक्ष्यों तक को नष्ट करने का इरादा क्या बताता है? मतलब आप के खिलाफ किसी ने गलत किया तो आपने आसमां सर पर उठा लिया और बाकी के उपर गलत हुआ तो कुछ भी नहीं, क्या पुलिस सेवा में आने के पूर्व जो शपथ दिलाई जाती हैं, उस शपथ में यह सब भी लिखा होता है क्या, कि किसी के इशारे पर काम करके किसी सत्यनिष्ठ की कलम को ही ऐसा मजबूर कर दो कि उसे सत्य दिखाई भी दें, तो वो लिख नहीं सकें। आखिर ये पद का दुरुपयोग नहीं।
सुना है, जनाब छह महीने बाद अवकाश प्राप्त कर लेंगे, पर जरा चिन्तन अभी से ही करना शुरु करिये, कि आप इतने दिनों तक पुलिस सेवा में रहे, इस पुलिस सेवा से आपने कितना फायदा उठाया और दुसरों (न्यायप्रिय लोगों) को आपसे क्या फायदा हुआ? अगर दुसरों (न्यायप्रिय लोगों) को कोई फायदा हुआ ही नहीं, तो फिर आप पद पर रहें अथवा न रहे, क्या मतलब?
एक डीजीपी पांडे जी भी थे, उन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर 50.9 डिसिमल जमीन खरीदी और उनकी कृपा से अन्य पुलिसकर्मियों ने भी अपना जय-जय किया, आज उनकी क्या स्थिति हैं? जमीन भी गया, और सम्मान भी गया? इसलिए मैं सुझाव दुंगा कि आप कानून का सम्मान करिये और साथ ही न्यायप्रिय लोगों को न्याय दिलाइये और गलत लोगों को उनकी औकात बताइये, नहीं तो ईश्वरीय दंड से कोई किसी को आज तक नहीं बचा सका, जैसे पूर्व डीजीपी पांडे भी नहीं बच सकें और अंत में डीजीपी नीरज सिन्हा जी, ये पंक्तियां आपके लिए, जो कबीर ने लिखी हैं…