बर्बाद कर दिया झारखण्ड के राजनीतिज्ञों ने रांची रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय और यहां पढ़ाई कर रहे छात्रों के भविष्य का
देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को मजबूत करने व कानून प्रवर्तन एजेंसी को ठोस आधार देने के लिए 2016 में भारतीय रक्षा मंत्रालय ने झारखण्ड सरकार की मांग पर रांची में रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय की स्थापना को मंजूरी दी। यह देश का ऐसा तीसरा विश्वविद्यालय है। इसमें नामांकन के लिये देशभर और खासकर पूर्वी भारत के प्रतिभावान छात्रों को प्रतियोगिता परीक्षा से गुजरना पड़ता है।
यहां फॉरेंसिक साइंस, मास्टर इन फॉरेंसिक साइंस, साइबर सिक्युरिटी, क्रिमिनोलॉजी, पीजी – डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल सिक्युरिटी, बीबीए इन सिक्युरिटी मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन पुलिस साइंस, सर्टिफिकेट कोर्स इन पुलिस साइंस, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन रोड ट्रैफिक मैनेजमेंट की पढ़ाई की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के अगुवाई में इसका उस वक्त खुब प्रचार – प्रसार हुआ।
राज्य सरकार ने रांची राजधानी से महज तीस किलोमीटर दूर खूंटी में पचहत्तर एकड़ जमीन कैम्पस के लिये आवंटित किया। फिलहाल यह विश्वविद्यालय राजभवन के पास और एटीआई के बगल में सरकारी स्किपा कैम्पस में चल रहा है या घिसट रहा है। सरकार बदली, निजाम बदला, पर इसकी सूरत नहीं बदली और न ही इसके सेहत में कोई सुधार हुआ। हालांकि वर्तमान में झामुमो के युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हैं, फिर भी देश और राज्य की सुरक्षा को बल देने वाले इस संस्थान पर ग्रहण लग गया।
आज संस्थान से पासआउट हुए और वर्तमान में अध्ययनरत छात्रों को अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। अब तक फॉरेंसिक के 250, साइबर सिक्योरिटी 250, बीबीए इनसिक्योरिटी मैनेजमेंट 50, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी 90, क्रिमिलॉजी 90, सर्टिफिकेट कोर्स इन पुलिस साइंस 150 के छात्र (प्रशिक्षित हो चुके हैं और प्रशिक्षण ले रहे छात्रों का डेटा है।)
हद तो यह है कि सर्टिफिकेट कोर्स इन पुलिस साइंस विशेष तौर पर आदिवासी जनजाति के छात्रों के लिये विशेष रूप से आरक्षित है। अवधारणा यह कि आदिवासी जनजाति के बच्चों को निःशुल्क तौर पर पढाई – प्रशिक्षण, भोजन सहित ड्रेस और आवासीय व्यवस्था सुनिश्चित किया गया था। आज राज्य में आज झारखंडी अस्मिता की परचम लहराने व प्रोझारखण्ड का दावा करने वाले झामुमो की सरकार है। जो राज्य के अपने मेधावी पीढ़ी की व्यथा से अनजान बनने का स्वांग कर रही है।
बतौर उदाहरण फॉरेंसिक फेकल्टी की पड़ताल करें तो सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। निर्धारित था कि छात्रों को प्रत्येक सेमेस्टर में प्रायोगिक अध्ययन के लिये फील्ड ट्रिप, फॉरेंसिक स्टेट लैबोटरी, रिनपास लेकर विशेष प्रशिक्षण के लिये ले जाना था, सत्र दर सत्र समाप्त हुआ पर वगैर भौतिक अध्ययन के बंचित रखा गया। इंटर्नशिप की भी व्यवस्था सुनिश्चित नहीं हो सका। स्पोर्टस इक्यूपमेंट, सेल्फडिफेंस ट्रेनिंग, विश्वविद्यालय में लैब इक्यूपमेंट का भी घोर अभाव है। इतना ही नहीं, अभी तक प्रायः सभी फैकेल्टी में यहां स्थाई प्रोफेसर तक का टोटा है।
चिंतनीय यह कि जो सरकार राजनीतिक वैमनश्यता या फिर दृष्टिहीनता के कारण सद्संकल्प को ही डूबोने पर तूल आये तो फिर क्या होगा? अभी भी वक्त है। राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, शिक्षा मंत्री, मुख्य सचिव और डीजीपी एक बार इसकी सुधि लें, पर किसे फुर्सत? क्या कोई गहराई से इसका मूल्यांकन करेगा? काश ऐसा हो पाता तो देश और राज्य के आंतरिक और वाह्य सुरक्षा को पुष्ट करने की क्षमता रखने वाले छात्रों की उम्मीदों को उड़ान मिल पाता ।