अपनी बात

क्या सचमुच बिरसा के वंशज आज भी दबे-कुचले हैं, जैसा कि दैनिक भास्करवालों ने कहा या माजरा कुछ और है?

सवाल न. 1 – सबसे पहले “दैनिक भास्कर” के प्रथम पृष्ठ के सबसे उपर लिखी दो पंक्तियों पर नजर डालें, क्या लिखा है? –“एक गरीब आदिवासी बच्चा। एक युवा बागी किसान। जिसने आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ने-मारने के विरोध में अंग्रेजों और सामंतों से लड़ाई शुरु की, आजाद भारत का सपना देखा। बिरसा को अंग्रेजों ने छल से पकड़ा, जेल में ही जहर देकर मार डाला। उसी भगवान के बच्चे आज भी दबे-कुचले हैं…”

जवाब – “उसी भगवान के बच्चे आज भी दबे-कुचले हैं…” ये वाक्य अतिरंजित कर दैनिक भास्कर वालों द्वारा लिखे गये हैं, क्योंकि किसी की हिम्मत नहीं कि कोई उन्हें दबा कर या कुचलकर उस क्षेत्र से जिंदा निकल जाये, भगवान बिरसा का परिवार स्वाभिमानी है, उन्हें राज्य सरकार ने आवास बनाकर दिये है। उनके दो पड़पोते सरकारी सेवा में हैं। बिरसा के पोते को 1000 रुपये वृद्धावस्था पेंशन भी प्रतिमाह मिलता हैं। उन्हें सरकार ने लाल कार्ड भी उपलब्ध कराया है। लाल कार्ड तो समझते ही होंगे।

सवाल नं. 2 – अखबार लिखता है, बिरसा को इंसाफ चाहिए। इसका उत्तर है – भगवान बिरसा को इन्साफ मिला है। उन्हें राज्य ही नहीं, केन्द्र सरकार भी सम्मान देती है। पूरा समाज उनके लिए जीने-मरने की कसमें खाता है, आज भी जब उनकी जन्मतिथि या पुण्यतिथि आती है, उसे बड़ी श्रद्धा से मनाई जाती है, जिसमें हर धर्म व समुदाय के लोग भाग लेते हैं, सम्मान करते हैं,6++

इसलिए दैनिक भास्कर का यह कहना कि बिरसा को इन्साफ चाहिए, बेतुका है। अगर दैनिक भास्कर ये समझता है कि उनके यानी बिरसा के परिवार को इंसाफ मिल जायेगा तो भगवान बिरसा को इन्साफ मिल गया, तो भाई, ये दोनों अलग-अलग बाते हैं। शायद इतनी सी बात दैनिक भास्कर के संपादक को भी समझ में आती होगी।

ऐसे भी दुनिया का कोई देश व राज्य देश के लिए मर-मिटने वालों के लिए श्रद्धा रखता ही है, अगर वो जिन्दा देश व राज्य हैं तो, नहीं तो मरा हुआ हैं तो उसकी बात ही क्या करना। देश के लिए मर मिटनेवाले देशभक्तों के परिवारों के प्रति संवेदना रखना भारतीयों के खुन में भी है, इसलिए जब भी कभी देश के लिए मर-मिटनेवालों के परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करने की बात आई, तो लोग उनके प्रति सहानुभूति दिखाई हैं।

सवाल नं. 3 – पड़पोती को तीन बार आवेदन के बाद भी नहीं मिली छात्रवृत्ति, पड़पोते को आश्वासन के 12 साल बाद भी प्रमोशन नहीं।

जवाब – ये दोनों मामले तकनीकी हैं। पड़पोती को छात्रवृत्ति क्यों नहीं मिली, ये सीधा तकनीक का मामला है, ऐसा नहीं कि उस बच्ची के साथ जान-बूझकर ऐसा कर दिया गया है, ऐसे भी खूंटी आदिवासी बहुल इलाका है, ये मामले अगर सही तरीके से, सही जगह वो बच्ची उठाती हैं तो ये तो कब का समस्या सुलझ जाता, ये इतना बड़ा मसला भी नहीं।

रही बात बिरसा के दोनों पोते की प्रमोशन की, तो पूरे राज्य में प्रमोशन एक ऐसा मामला है कि कई विभाग के कर्मचारी और पदाधिकारी इस मामले में दुखी है, कई तो अवकाश प्राप्त कर गये लेकिन उन्हें प्रमोशन नहीं मिला, कई तो आज भी बड़े-बड़े विभागों में पदाधिकारी बन कर बैठे हैं, किसी का दो-दो प्रमोशन बकाया हैं तो किसी को एक भी प्रमोशन उसके ज्वाइनिंग से नहीं मिला है, जाकर दैनिक भास्कर के शोधार्थी संपादकों/संवाददाताओं को पता लगाना चाहिए कि ये सही है या गलत?

सवाल नं. 4 – सब्जी बेच रही बिरसा की पड़पोती कहती है – शर्म आती हैं बताने में कि मैं कौन हूं?

जवाब – हमें नहीं लगता कि वो ये बात कह सकती है, एक देशभक्त, क्रांतिकारी के परिवार के मुख से ये भाषा शोभा नहीं देती और सवाल दैनिक भास्कर के लोगों से, कि क्या सब्जी बेचना या सब्जी उगाना शर्म की बात है। अगर शर्म की बात हैं तो इसी झारखण्ड में भाजपा के बड़कागांव से विधायक थे – लोकनाथ महतो, जो विधानसभा में बैठते थे और उनकी पत्नी सब्जी भी बेचती थी।

इसी झारखण्ड में लोकसभा के उपाध्यक्ष रहे करिया मुंडा, जो उपाध्यक्ष रहते हुए भी समय निकालकर खेती-बाड़ी में खुद को झोंक दिया करते, मैंने तो उन्हें कई बार देखा कि अपनी राजनैतिक कैरियर और ओहदों पर ध्यान ही नहीं दिया, सादगी की प्रतिमूर्ति आज भी है, इसलिए सब्जी बेचने से कोई हीन भावना रख लें, ये ठीक नहीं लगता। आज भी झारखण्ड के कई महानगरों में एक से एक लड़के-लड़कियां मिलेंगे जो मजदूरी करते हैं और अपने सपनों को गति भी दे रहे हैं, पर उन्हें इन सभी कामों में शर्म नहीं दिखता, पता नहीं इतने सुंदर गुणों को देखने में दैनिक भास्कर के लोग कैसे अब तक वंचित रहे?

दैनिक भास्कर ने प्रथम पृष्ठ पर तीन फोटो छापे हैं। एक फोटो बिरसा की पड़पोती सब्जी बेच रही है, दूसरा फोटो बिरसा के एक पड़पोते को ऑफिस में पानी पिलाते दिखाया गया है, और तीसरे फोटो में बिरसा के पोते को हाथों में कुदाल लिये दिखाया गया है और कहा गया है कि 82 की उम्र, हाथों में कुदाल। अब सवाल दैनिक भास्करवालों से कि क्या जिसकी उम्र 82 हो जाये, उसे कुदाल या खेती-बाड़ी छोड़ देनी चाहिए, या मेहनत करना छोड़ देना चाहिए।

अरे महाशय यहां तो बड़े-बड़े महानगरों में लोग अपनी हेल्थ को ठीक करने, और पेट को अंदर करने के लिए लाखों खर्च कर रहे हैं, कहां आप खोये हुए है। मेरे विचार से तो आदमी को तब तक काम करना चाहिए, जब तक शरीर साथ दें, पं. नेहरु ने तो इसीलिए कहा था – “आराम हराम है।” आप क्या चाहते है कि एक निश्चित उम्र आने पर लोग आराम करना शुरु कर दें और अपने जीवन को बोझ बना लें।

अखबार ने लिखा है कि गंभीर पहल हो तो इन योजनाओं का लाभ तत्काल संभव…

  • बिरसा आवास योजना – अरे भाई उनको आवास दे ही दिया गया हैं तो फिर बिरसा आवास योजना की दुहाई देते हुए आवास देने की बात फिर कहां से उठती है, आपका मतलब है कि उन्हें एक और आवास दे दिया जाये। ये तो गलत हो जायेगा न। भगवान बिरसा के नाम पर आपको सब कुछ बेवजह दे दिया जाय और बाकी को… ये योजना तो सभी आदिवासी बंधुओं के लिए है। वे कहते है कि छोटा घर है, ठीक हैं तो आप उसे अपने प्रयास से बड़ा करिये, कौन मना कर रहा है? बिरसा के दोनों पड़पोते चतुर्थवर्गीय कर्मचारी है, तो उन्हें सरकार की ओर से वेतन तो मिल ही रहे होंगे, और वे वेतन इतने भी कम नहीं कि आप उससे घर नहीं चला सकते, अपनी जरुरते नहीं पूरी कर सकते, अपने सपनों का घर नहीं बना सकते, लेकिन आपके मन में ये बात हो गई है कि मैं बिरसा का वंशज हूं, सब कुछ मुझे मुफ्त में सरकार से चाहिए और इसके लिए दैनिक भास्कर जैसे अखबार रोना रोओंगे तो फिर झारखण्ड का कल्याण हो गया। क्या भगवान बिरसा इसके लिए अपने प्राणों की आहुति दिये थे? कि आनेवाले समय में उनके वंशज, उनकी दुहाई देते हुए, मुफ्त का सब कुछ लेने की कोशिश करेंगे और अखबारवाले अपने से न्यूज प्लांट कर, हर जन्मतिथि व पुण्यतिथि को बकवास करेंगे।
  • सच्चाई यह है कि भगवान बिरसा के इन वंशजों के पास जमीन की कोई कमी नहीं है, आराम से गुजर-बसर कर सकते हैं, इनको सरकार ने लाल कार्ड भी उपलब्ध करा दिये है, ताकि राशन की कोई कमी नहीं हो। अब सवाल फिर भी है कि जब आपको लाल राशन कार्ड मिल चुका है, वृद्धावस्था पेंशन भी मिल रहा है, आपको दोनों बेटों को सरकारी नौकरी भी मिल गई है, और उसके बाद भी आपको संतोष नहीं हो रहा हैं तो भगवान ही मालिक है।
  • ऐसे में, तो मैं कहूंगा दैनिक भास्कर वालों से कि भाई आपको भी झारखण्ड में आये दशक से ज्यादा हो गया, आपका भी तो कोई फर्ज बनता है, आप अपने फर्ज को निभाइये, केवल अखबार में लिखियेगा, सरकार को नीचा दिखाइयेगा, आप भी तो अखबार चला रहे हैं, क्यों नहीं बिरसा के वंशजों की भलाई के लिए आगे आते हैं? क्यों नहीं आप अपना सामाजिक दायित्व निभाते हैं, आप ऐसा करें आज ही रांची में उनके लिए एक एकड़ में मकान बनवाकर उन सब को शिफ्ट कराये, क्योंकि आप खुद कह रहे है  कि उनके पास कुछ भी नहीं है।
  • जब दैनिक भास्कर खुलकर लिख रहा है कि बिरसा के वंशज दबे-कुचले हैं तो वो क्यों नहीं, अपने संस्थान में बुलाकर लाखों की नौकरियां दे देता, उसके लिए तो ये सब बाएं हाथ का खेल हैं, इससे बिरसा के वंशजों को भलाई भी हो जायेगी और दैनिक भास्कर को बोलने का मौका भी हो जायेगा कि उसने अपने कारपोरेट दायित्व का पालन किया, चलिए दैनिक भास्कर ये सब कब शुरु करने जा रहा है? जल्द बताएं।

अब अपील समाचार पाठकों से, इन अखबारों को पढ़कर, आप अपना ब्लडप्रेशर मत बढ़ाइये, इनका काम है, जब भी किसी झारखण्ड से जुड़े महान विभूतियों का जन्म आयेगा, ये नकारात्मक खबरें लेकर, उसमें तेल-मसाले डालकर, आपका दिमाग खराब करेंगे। ठीक उसी प्रकार, याद है न इस बार रामनवमी के दिन दैनिक भास्कर ने ऋष्यमूक पर्वत के बारे में क्या लिख दिया था? कि गुमला में हैं, पर सच्चाई क्या है? सभी लोग जानते है कि ऋष्यमूक पर्वत कहां हैं? ये पर्वत दक्षिण भारत में हैं और उसका मूल-आधार भी है। अधिक जानकारी के लिए आप इसी साल का 21 अप्रैल का रामनवमी के दिन का दैनिक भास्कर द्वारा प्रकाशित अखबार का प्रथम पृष्ठ देख लीजिये। सब पता लग जायेगा। ऐसे आपके सुविधा के लिए मैं यहां डाल भी दिया हूं, देख लीजिये।