सोनू सूद इसलिए आगे आएं क्योंकि उन्हें सच्चाई नहीं मालूम और अबुआ नेताओं का दिल इसलिए नहीं पिघला क्योंकि वे भास्कर और बिरसा के वंशजों की सच्चाई से वाकिफ हैं…
दैनिक भास्कर के एक पत्रकार का कहना है कि झारखण्ड के किसी अबुआ नेता का दिल नहीं पिघला, लेकिन दूर मुंबई के अभिनेता सोनू सूद बिरसा के परिजनों के लिए मदद को आगे आए, तो भाई मेरे झारखण्ड का बच्चा-बच्चा को पता है और जानता है कि भगवान बिरसा के वंशजों को जो मिलना चाहिए, वो सरकार और समाज दोनों ने दिया है, उनके दोनों पड़पोते सरकारी सेवा में हैं।
खुद उनके पोते को वृद्धावस्था पेंशन भी सरकार देती है, लाल कार्ड भी मुहैया कराया गया है। उन्हें घर भी सरकार ने उपलब्ध करा दी है, अगर इसके बावजूद भी उन्हें दिक्कत हैं तो इसका मतलब है कि उनके पास दिक्कतें कभी खत्म नहीं होंगी, हर साल उन्हें कुछ न कुछ चाहिए, और ये काम करेंगे, वे अखबार जो इस प्रकार की चीजों को बढ़ावा देंगे, और इतना मिलने के बावजूद भी उन्हें दबा-कुचला बतायेंगे।
इसी राज्य में टाना भगत रहते हैं, गांधीवादी है, पर आज तक मैंनें उन्हें कभी किसी चीज के लिए रोते नहीं देखा, बल्कि गांधीवादी सिद्धांतों के साथ आज भी उसी प्रकार चल रहे हैं, जैसे पूर्व में चला करते थे, अभाव तो उन्हें भी हैं, पर कभी अभावों का रोना नहीं रोया। इस राज्य में बहुत सारे भगवान बिरसा जैसे अनेक वीर-योद्धा हुए, पर उनके परिवारों को उन महान सपूतों के नाम पर कुछ राज्य सरकार द्वारा मिल जाये, इसका रोना रोते नहीं देखा और न ही किसी पत्रकार को या अखबार को उनके घर पर जाते देखा, जितना वे उलिहातू का दौरा लगाते हैं।
कमाल की बात है, ये अखबार वाले, सुप्रसिद्ध क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धौनी के रांची स्थित कृषि फार्म जाकर, उनकी खेती की तो जमकर प्रशंसा करते हैं, लेकिन जैसे ही कोई वीर या महान आत्मा के वंशज कृषि कार्य से जुड़े होते हैं तो उन्हें हीन भावना से ग्रसित हुआ दिखाते हैं, उन्हें दबा-कुचला बताते हैं। आखिर एक ही आंखों पर एक ही कार्य के लिए दो-दो चश्में कब और कहां से खरीद लाते हैं, आज तक समझ नहीं आया।
सोनु सूद को क्या है? वो तो बेचारा अखबार देखा, और उसे लगा कि फलां जरुरतमंद हैं, वो उसे सेवा के लिए निकल पड़ा, क्योंकि वे सेवा के लिए फाउंडेशन चलाते हैं, इसका मतलब ये तो नहीं कि उन्हें झारखण्ड और यहां के लोगों के बारे में ढेर सारी जानकारी हैं। हाल ही में उन्होंने झारखण्ड के एक बहुत बड़े पदाधिकारी की प्रशंसा कर दी थी, इसका मतलब ये थोड़े ही न हो गया कि वो बहुत ही बड़ा प्रशंसनीय अधिकारी है, क्योंकि अगर वो प्रशंसनीय होता तो राज्य की जनता भी उसे प्रशंसनीय कहती, पत्रकारिता करते तो मुझे भी पैतीस वर्ष हो गये, लेकिन कभी नहीं देखा उसे कि वो प्रशंसनीय हो।
अरे भाई, दूर के ढोल सोहावन होता हैं, ये कौन नहीं जानता। जिस अखबार ने ऋष्यमूक पर्वत को झारखण्ड में बता दिया हो, उसकी बुद्धिमता पर तो मूर्ख ही बलिहारी होंगे, शिक्षित तो नहीं ही होगा। इसलिए दैनिक भास्करवालों ज्यादा कूदो नहीं, दिमाग पर जोर दो, कि सोनू सूद बिरसा के वंशजों के लिए आगे बढ़ा हैं, पर झारखण्ड के लोग नहीं, हालांकि झारखण्डियों को खुब आपने न्यूज के आधार पर हुरपेठने की कोशिश की, पर वे नहीं मानें।
ऐसे भी बिरसा के पड़पोती की पढ़ाई का जिम्मा जो सोनू सूद ने लिया हैं, जिसको लेकर आप खूब उछल रहे हो, प्रथम पृष्ठ पर फिर दिये हो, उतना तो तुम भी कर सकते थे, उतना करने में कौन सा तुम्हारा जहाज डूब रहा था, आप तो किसी भी नेता को बोल देते, तैयार हो जाता, क्योंकि हमें याद है कि आपके ही अखबार में कार्यरत एक पत्रकार की बेटी को मदद करने के लिए रांची के ही सांसद आ खड़े हुए थे, थोड़ा दिमाग पर जोर डालियेगा तो समझ आयेगा, नहीं तो फूदकने की बीमारी हैं तो फूदकते रहिये। मेरा तो मानना है कि इस प्रकार के न्यूज झारखण्ड को दोयम दर्जे का बनाते हैं, न कि प्रथम अथवा श्रेष्ठता के।