पैसों के अभाव में रुकी थी पढ़ाई, जमशेदपुर के एक भाजपा नेता ने बच्चों तक पहुंचाई किताबें
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून वाले इस देश में एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि काफ़ी तादाद में बच्चें अर्थाभाव में पढ़ाई से वंचित हो रहे हैं। कोरोना ने निम्न मध्यम वर्गीय परिवार की मुश्किलें और बढ़ा दी है। कई होनहार नौनिहाल पैसों के अभाव में पढ़ाई से वंचित हो गये हैं। शिक्षा का अधिकार के तहत पात्र लाभुक श्रेणी के बच्चों के लिए पढ़ाई का तो प्रावधान है, किंतु निज़ी स्कूलों में उन्हें किताबों की मदद नहीं मिलती।
इस अव्यवस्था को बदलने की पहल जमशेदपुर महानगर भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दिनेश कुमार ने की है। दिनेश ने उन बच्चों तक किताबें पहुंचाई हैं, जिनके पास किताबें तो नहीं थी, पर पढ़ने का हौसला किसी से कम नहीं था। “शिक्षा जीवन के लिए, जीवन वतन के लिए” के शाश्वत सोच से प्रेरणा लेते हुए भाजपा नेता दिनेश कुमार ने इस अभियान की शुरुआत की है। पूर्वी विधानसभा के लक्ष्मीनगर, प्रेमनगर, झगरू बागान के वंचित बच्चों के मध्य दिनेश कुमार के सहयोग से निःशुल्क पाठ्य सामग्री का वितरण हुआ।
बजरंग दल से जुड़े कार्यकर्ताओं ने बस्ती के बच्चों की पढ़ाई को लेकर पूर्व महानगर भाजपा जिलाध्यक्ष दिनेश कुमार का ध्यानाकर्षण कराया था। इस पर पहल करते हुए दिनेश कुमार ने वैसे जरूरतमंद बच्चों के लिए कॉपी, और जरूरी स्टेशनरी सामग्रियां मुहैया कराई। विहिप और बजरंग दल से जुड़े कार्यकर्ता विश्वनाथ, सन्नी चौधरी, सूरज झा, अभय, रौशन, संतोष ने बस्ती के बच्चों के मध्य इन पाठ्य सामग्रियों का वितरण करते हुए दिनेश कुमार के प्रति आभार जताया।
दूसरी ओर, घाटशिला विधानसभा अंतर्गत सूरदा स्थित केंद्रीय विद्यालय के छठी कक्षा के छात्र अनूप करुआ को भी दिनेश कुमार ने पाठ्य पुस्तकों की मदद पहुंचाई। भारतीय प्रशासनिक सुधार एवं जनशिकायत परिषद संस्था की उपाध्यक्ष मौसमी भक्त ने ट्विटर पर इस बच्चे की मदद के लिए दिनेश कुमार से आग्रह किया था। आर्थिक संकट से जूझ रहे छात्र के अभिभावक उसकी पाठ्यपुस्तक खरीदने में असमर्थ थे। वे मुसाबनी के बेनाशोल गाँव में रहते हैं।
दिनेश कुमार के सहयोग से मंगलवार को मौसमी भक्त ने स्वयं बच्चे को कक्षा छह की पाठ्य पुस्तकें प्रदान की तथा इस मदद के लिए दिनेश कुमार के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। मौसमी भक्त ने बताया कि बच्चे को अब मोबाइल की भी आवश्यकता है. क्योंकि उनकी क्लास तो फिलहाल ऑनलाइन चल रही हैं, लेकिन इस ऑनलाइन युग में बच्चों को उनकी किताबें मिल गई, यह कोई कम नहीं, अब वे अपने सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।