उधर BJP-JMM के नेता किसानों के मुद्दे पर एक दूसरे को घेर रहे थे और उधर असली किसान दोनों से दूरी बना खेती में लगे थे
सबसे पहले इस फोटो को ध्यान से देखिये, भाजपा नेता व राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी किसानों की विभिन्न समस्याओं को लेकर अपने समर्थकों/कार्यकर्ताओं के साथ बैठे हैं, और ठीक उनके सामने इन लाव-लश्करों से बिना कोई मतलब रखे, एक किसान अपने खेत में हल चला रहा है तो एक किसान अपने खेत में ट्रेक्टर चलाकर खेत जोत रहा है। यह दृश्य गिरिडीह के चन्दौरी मंडल के लौटाई गांव का है।
ठीक इसी प्रकार का दृश्य रांची के सुकुरहुतू का हैं, जहां खेत में धरना पर बैठे हैं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश। वहां उन्होंने हल लेकर फोटो भी खिंचवाया है, संवाददाताओं को बाइट भी दी है। मतलब साफ है कि इन नेताओं को किसानों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं हैं, बल्कि अपनी राजनीति चमकानी हैं, तभी तो किसानों का बड़ा वर्ग, इनके इस आंदोलन से दूर रहा, अगर किसान इनके आंदोलन से जुड़ जाता तो क्या होता, सीधा सा उत्तर है – सरकार की बोलती बंद हो जाती।
जरा देखिये, जहां बाबू लाल मरांडी बैठे हैं, वहां क्या हो रहा है, किसानों को इस प्रकार के आंदोलन से कोई मतलब नहीं है, वो जानता है कि ये आंदोलन किसानों की समस्या को लेकर नहीं, बल्कि विशुद्ध रुप से राजनीति का केन्द्र बिन्दु हैं, जिसमें किसानों को न तो बीते हुए कल में कुछ फायदा हुआ था और न आनेवाले समय में फायदे होने को हैं। आश्चर्य यह भी है कि ये किसानों के नाम पर भाजपा ने जो आंदोलन आज किये हैं, वो राज्यव्यापी है।
हर प्रकार के भाजपाई नेता यानी छोटे हो या बड़े, सभी ने अपनी ताकत झोक दी हैं, गांवों के खेतों-खलिहानों तक भाजपाइयों ने कुर्सियां पहुंचाई है, तम्बू गाड़े हैं, कार्यकर्ताओं की फौज पहुंचाई है, माइक व लाउडस्पीकर से झक-झूमर गाये, लेकिन किसानों की आवाज तक नहीं बन सकें। इधर भाजपाइयों के इस किसान आंदोलन को देखते सरकार सकते में आई। आनन-फानन में कुछ काम किये। जो आज के अखबारो की सुर्खियां बनी।
उधर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सुप्रियो भट्टाचार्य ने प्रेस कांफ्रेस तक बुला लिया और भाजपाइयों के इस किसान आंदोलन को नौटंकी करार दे दिया। साथ ही जैसा कि होता हैं, अपने प्रतिद्वंदी को खुब भला-बुरा कहा। देखते ही देखते रांची से दिल्ली तक पहुंच गये और कह डाला कि जिस केन्द्र सरकार ने पिछले वर्ष किसानों के खिलाफ तीन कानून बनाये, उसे रद्द करने के लिए खुद किसान आंदोलन चला रहे हैं, उस पर भाजपाइयों का ध्यान नहीं और जहां ध्यान नहीं देना हैं, वे वहां ध्यान दे रहे हैं।
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि खुद इनके द्वारा शासित बिहार व उत्तरप्रदेश में किसानों की बदतर स्थिति हैं, वहां धान क्रय तक नहीं हुआ, वे वहां आंदोलन नहीं करते और झारखण्ड में नौटंकी करते हैं। अब झामुमो को कौन बताए कि बिहार में अगर ऐसा हैं तो वहां के विपक्षी दलों को आंदोलन करने के लिए इस मुद्दे पर किसने रोक रखा है, झामुमो तो कहती है कि बिहार के कुछ इलाकों में उसका दबदबा हैं, कम से कम उस दबदबे की कसम, खुद ही वहां आंदोलन कम से कम शुरु करें।
लेकिन ऐसा संभव नहीं हैं, क्योंकि जो झारखण्ड मुक्ति मोर्चा वृहद झारखण्ड की बात करता था, आज वो भाजपा के वनांचल को ही झारखण्ड मानकर संतुष्ट बैठा हैं, ऐसे में आंदोलन किसके लिए, सवाल तो यहीं हैं। पर आम जनता, सभी को जानती है कि सभी अपने लिए आंदोलन करते हैं, अपने परिवारों के लिए आंदोलन करते हैं, उनकी सुख-सुविधाओं के लिए करते हैं, ऐसे में उन्हें क्या जरुरत झामुमो-भाजपा से।
इसलिए इन दोनों से अलग झारखण्ड के किसानों ने अपनी खेती पर ध्यान दिया और जमकर अपने समय को कृषि कार्यों में लगाया, क्योंकि आज का किसान समय को पहचानना जानता है, आज मानसून सक्रिय हैं, कल का किसने देखा, इसलिए फायदा उठाना चाहिए, जमकर खेती करना चाहिए, साथ ही दोनों से दूरियां भी बनाये रखना चाहिए, क्योंकि इन नेताओं के वायदे पर भरोसा करना मूर्खता को सिद्ध करने के बराबर ही तो हैं।