धनबाद में सिर्फ एक ही चौपाई चलेगा – “होइहि सोइ जो ‘पशुपति’ रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।।”
हे धनबाद के कार्यकर्ताओं/समर्थकों, कोयलांचल में वहीं होगा, जो सांसद पशुपति नाथ सिंह चाहेंगे, तुम्हारे चिल्लाने या तुम्हारे किसी भी प्रकार के नारे लगाने से नहीं होगा, क्योंकि अब राज्य में रघुवर दास की सरकार नहीं हैं, और न ही भाजपा का कोई ऐसा नेता वर्तमान में शीर्षस्थ हैं, जो पशुपति नाथ सिंह को कम से कम कोयलाचंल में चुनौती दे दें। जो एक दो कोई सिर उठाने की कोशिश भी करेंगे तो उससे क्या होगा? अंततः फिर वे सिर पशुपति के आगे ही झूंकेंगे।
इसलिए वर्तमान में जो अमरजीत चंद्रवंशी और मनोज गुप्ता के प्रकरण पर जिसने भी बवाल काटने की कोशिश की हैं, उस बवाल को अब शांत करो, मामला प्रदेशस्तर तक गया तो क्या हो गया, आराम से बैठो, कुछ नहीं होगा, सभी आपस में भाई-भाई है, लड़ाई वगैरह तथा इस चक्कर में एक दूसरे को देख लेने की बात कहना तो अमर प्रेम की निशानी है, क्या समझे।
दरअसल, भाजपा के पूर्व नगर अध्यक्ष अमरजीत चंद्रवंशी और किसान मोर्चा के जिला महामंत्री मनोज गुप्ता के बीच जमकर कहासुनी ही नहीं हुई, बल्कि गाली-गलौज यहां तक गोली मारने तक की बात हो गई, ये बातें खुलकर मीडिया में भी वायरल हो गई। मीडिया ने भाजपा जैसी पार्टी में गाली-गलौज व गोली चलाने की बात को मुद्दा बना दिया, जबकि मीडिया भी जानती है कि वो भी कोई दुध की धूली नहीं हैं।
उसके यहां भी एक से एक अपराधियों ने बड़े-बड़े संस्थान खड़े कर लिये और उसकी आड़ में वो सारे गोरखधंधे कर रहे हैं, जो आज का नेता शान से करता है। फिर भी मीडिया में बात आ गई। बातें विधायक राज सिन्हा तक पहुंची, विधायक ने इस पर जांच करने की मांग कर डाली, जिलाध्यक्ष चंद्रशेखर सिंह ने स्वाभावानुसार वहीं बाते कही, जो हर जिलाध्यक्ष कहता है, करता है।
ये जिलाध्यक्ष महाशय भी बहुत लंबी-लंबी हांकने लगे। ठीक उसी तरह जैसे कभी भाजपा (अब कांग्रेस) में रही बाघमारा की कमला कुमारी मामले में कहा करते थे कि उसे न्याय दिलायेंगे, उसे न्याय कितना मिला, वो सारा धनबाद जानता है, हालांकि इस मामले में पशुपति नाथ सिंह कही नहीं थे, क्योंकि उस वक्त रघुवर दास का साम्राज्य था, और रघुवर दास पशुपति नाथ सिंह को कभी भाव नहीं देते थे।
लेकिन अब तो मामला ही बदल गया, इसलिए अगर कोई सोचता है कि इस मामले में प्रदेश कार्यालय कुछ निर्णय करेगा, तो समझ लो वो बहुत ज्यादा अक्लमंद हैं, बीरबल और तेनालीराम से भी ज्यादा, इससे ज्यादा और हम क्या लिखे, मतलब समझिये और श्रीरामचरितमानस का वो दोहा पढ़िये और राम की जगह पशुपति लगा दीजिये, लीजिये चौपाई कम्पलीट, समस्या खत्म।