ओलंपिक में गोल्ड जीतनेवालों को दो करोड़ जरुर दीजिये, पर किसी की मां-बेटी की जान भी बचाइये, प्रशस्ति पत्र भी प्राप्त करिये पर सोचिये कि क्या आपने वैसा काम सचमुच में किया हैं या यू हीं…
सबसे पहले इस पहली घटना पर ध्यान दीजिये – दुमका की रहनेवाली छः साल की आराध्या किडनी की गंभीर बीमारी से पिछले साल से जूझ रही है और फिलहाल अहमदाबाद के Institute of Kidney Diseases and Research Centre में इलाजरत है। काफी महीनों से वह वहां पर इलाज करवा रही है, और इस वक्त वेंटीलेटर पर है। वहीं पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर उनके अभिभावक के पास लगातार इलाज के कारण पैसों का अभाव हो चुका है।
इस बच्ची की दयनीय हालत को देख निखिल शारदा ने इसकी जानकारी भाजपा प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी को दी। कुणाल षाड़ंगी ने इस विषय पर संज्ञान लेते हुए तुरंत अहमदाबाद के अस्पताल से संपर्क साधा और इसकी विस्तृत जानकारी ली। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से गुजरात भाजपा के महासचिव प्रदीप सिंह वाघेला, हर्ष सांघवी और गृह मंत्री अमित शाह के ऑफिस से आग्रह किया कि झारखंड की इस नन्ही बच्ची को यथाशीघ्र मदद पहुंचाई जाए।
इस विषय पर त्वरित संज्ञान लेते हुए प्रदीप सिंह वाघेला ने अस्पताल के डॉक्टरों से वार्ता की और कुणाल षाडंगी को सूचित किया कि “आराध्या की जरा भी चिंता न करें” पूरी आवश्यक मदद की जाएगी, और खुशी इस बात की है कि इनकी प्रयासों से आराध्या को सारी सुविधाएं मुफ्त में प्राप्त होने लगी हैं, जिससे उनके परिवारवाले बहुत ही खुश है।
अब दुसरी घटना पर ध्यान दीजिये – इधर पिछले दिनों रांची के मुख्यमंत्री आवास में एक मां की जान बचाने के लिए उनके बच्चे गुहार लगाने पहुंचे, क्योंकि उनकी मां ब्लैक फंगस की शिकार है, डाक्टर इन बच्चों को केरल या अहमदाबाद ले जाने को कह रहे हैं, पर बच्चों को तो शॉक लग चुका है, क्योंकि उनके पास तो पैसे ही नहीं, इतने बड़े शहर में मां की इलाज कैसे करायें? पर मुख्यमंत्री आवास इस मुद्दे पर चुप है। स्वास्थ्य महकमा चुप है, पर जरा इधर देखिये, पता नहीं किस दुरबीन से अमरीकन डाक्टरों ने देख लिया कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने गजब कर डाला है, उन्हें पुरस्कृत भी कर दिया है।
स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के कार्यालय से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी होता है। प्रेस विज्ञप्ति को देखिये, क्या लिखा है? “कोरोना काल में पहली और दूसरी लहर में झारखंड ने बेहतर प्रबंधन किया हैं, कोरोना काल में सीमित संसाधनों में भी कुशल प्रबंधन और बेहतरीन कार्य के बदौलत स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कोरोना कंट्रोल में अपनी महती भूमिका निभाई हैं।
स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता हर छोटी बड़ी चीजों की स्वयं मोनिटरिंग करते रहे और संकट से राज्य को उबारा, उनके मेहनत और कार्यकुशलता के कारण ही आज राज्य में रिकवरी दर 99% के करीब हैं जबकि एक्टिव केस की संख्या 800 के करीब हैं। इस सभी उपलब्धि के कारण आज IMA की वीमेन विंग की चैयरपर्सन डॉ भारती कश्यप ने अमेरिकी डॉक्टर्स की टीम की तरफ से स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता जी को बेहतर कार्य करने के लिए प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया।”
मतलब है न आश्चर्य, एक ओर एक छोटी सी बच्ची वो भी झारखण्ड के दुमका की अहमदाबाद में वेंटीलेटर पर पड़ी हैं, दूसरी ओर एक मां ब्लैक फंगस की शिकार है, उसके बच्चे अपनी मां की जान बचाने के लिए मुख्यमंत्री आवास जाकर मुख्यमंत्री से मिलने के लिए गुहार लगा रहे हैं, पर उसे वो सुविधा नहीं मिल रही, जिससे वो परेशान है। राज्य के मुख्यमंत्री इतने दिलदार है कि ओलंपिक में गोल्ड लानेवालों के लिए दो करोड़ की घोषणा कर रहे हैं, पर एक मां व बेटी को बचाने के लिए उनके पास पैसों और सुविधाओं का घोर अभाव है।
जबकि अपने मंत्री व विधायकों की जान बचाने के लिए इनके पास पैसों की कोई कमी नहीं होती, और उधर अमरीकन लोग पता नहीं कौन से दुरबीन लगाकर, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री में बेहतरी देख लेते हैं और फिर रांची की ही एक डाक्टर स्वास्थ्य मंत्री से मिलकर, उन्हें प्रशस्ति पत्र भी थमा देती है, पर क्या ये प्रशस्ति पत्र उन हाथों में शोभा देता है या देनेवाले बतायेंगे कि ये प्रशस्ति पत्र देने के पीछे छुपा राज क्या है? या इसमें भी कोई लोचा है।
नहीं तो, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री उस मां को बचाने की ईमानदार कोशिश करें, जो रिम्स में ब्लैक फंगस की शिकार है, जिसके बच्चे मुख्यमंत्री आवास पर एक दिन पहले जाकर गुहार लगाई थी, साथ ही ऐसी व्यवस्था करें कि आनेवाले दिनों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए लोगों को झारखण्ड के बाहर नहीं जाना पड़ें और अगर बाहर जाना पड़ता हैं तो फिर ऐसे स्वास्थ्य विभाग या मंत्रियों अथवा प्रशस्ति पत्र देनेवाले डाक्टरों से राज्य की जनता को क्या मतलब?