लगता है, CM हेमन्त सोरेन बकोरिया कांड भूल चुके हैं, नहीं तो मयूर पटेल बोकारो के DIG कम से कम नहीं ही होते
जो कल तक बकोरिया-बकोरिया चिल्लाते थे। जो कल तक संसद में बकोरिया में मारे गये लोगों के लिए आसमान उठा लिया करते थे। जो बार-बार बकोरिया में मारे गये लोगों के पक्ष में बयान देते नहीं थकते थे, कहा करते थे कि इन्हें हम न्याय दिलायेंगे, वे आज सत्ता में आने के बाद कर क्या रहे हैं? बकोरिया में मारे गये मासूमों को भूल चुके हैं, उन्हें अब कुछ याद ही नहीं रहा, तभी तो बकोरिया कांड में दागदार शख्स को बोकारो का डीआईजी बना दे रहे हैं।
आश्चर्य यह भी है कि जो मानवाधिकार संगठन अथवा इन मृतकों को लेकर उस वक्त आंदोलन खड़ा करनेवाले लोग, हल्ला किया करते थे, इस पूरे मामले में चुप्पी साध ली है, शायद उन्हें लग रहा है कि राज्य सरकार जो कर रही है, वो ठीक ही कर रही हैं, परन्तु वे यह नहीं समझ रहे कि अगर यही गति रही तो फिर राज्य में आम लोगों के खिलाफ क्रूरता और बढ़ेगी, आम आदमी मारा जायेगा और राजनीतिज्ञ अपनी रोटियां सेकते रहेंगे।
याद करिये दिनांक 8 जून 2015 पलामू का सतबरवा का बकोरिया गांव, जहां पुलिस-नक्सली की फर्जी मुठभेड़ में 12 लोगों का नरसंहार हुआ था। जिनमें मृतकों में 12 से 14 वर्ष के छः आदिवासी बच्चे भी थे। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के राज्यसभा सांसद संजीव कुमार ने जमकर राज्य सभा में इसको लेकर बवाल काटा था, इसे सदन में उठाया था, पर आज तो उनकी पार्टी झारखण्ड में सरकार में हैं, जल, जंगल, जमीन की बात करनेवाली झामुमो कर क्या रही है?
जले पर नमक छिड़क रही हैं, वो भूल चुकी है कि बकोरिया कांड में क्या हुआ था? अगर नहीं भूलती तो कम से कम पटेल मयूर कन्हैयालाल पुलिस उप महानिरीक्षक बोकारो के पद पर स्थापित नही होते। जैसे ही इनके स्थानान्तरण का आदेश लोगों को कल यानी 5 जुलाई को प्राप्त हुआ, हर शख्स आश्चर्यचकित है कि आखिर ये संभव कैसे हुआ? लेकिन झामुमो के किसी नेता को इसका मलाल नहीं हैं और न भाजपा के किसी नेता ने इस पर अंगूलिया उठाई है, शायद दोनों इस मामले में इसलिए चुप्पी साध ली है कि बकोरिया कांड एक के शासनकाल में हुआ था और दूसरा इस मामले में भाजपा के पद चिन्हों पर चलने के लिए अब पूरी तरह तैयार है।
सूत्र बताते है कि नक्सलियों के सफाये के नाम पर बकोरिया में जो कुछ हुआ, उसके छीटें जेजेएमपी नक्सली संगठन के साथ सीआरपीएफ, तत्कालीन डीजीपी डी के पांडेय एवं तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कन्हैयालाल मयूर पटेल पर भी पड़े थे। बकोरिया कांड के बारे में जिसने भी सुना वो आश्चर्यचकित था, संभवतः यह देश की पहली घटना थी, जहां पुलिस को पहले से ही घटनास्थल की जानकारी थी। इस स्थान को योजनाबद्ध तरीके से घटनास्थल बनाने की पूर्व योजना थी।
जब्त स्कार्पियो की बॉडी एवं शीशा पर चारों तरफ बाहर एवं भीतर छोटा-बड़ा गोली लगने के छेद होने का निशान बनाया गया, जिन जनाब का बोकारो डीआईजी पर तैनाती की गई, उन पर गंभीर आरोप लगे। तत्कालीन एडीजी एमवी राव पर इस मामले की जांच को धीमी करने का दबाव भी बनाया गया था। जिस पर एमवी राव ने जांच की गति को धीमी करने, साक्ष्यों को मिटाने और फर्जी साक्ष्य बनाने से इनकार कर दिया था, जिसके कारण तत्कालीन रघुवर सरकार ने उन्हें नई दिल्ली ओएसडी कैप में तबादला कर दिया था, जबकि पद भी स्वीकृत नहीं था।
उसी दौरान एमवी राव ने अपने तबादले पर कड़ी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की थी और कहा था बकोरिया कांड की जांच सही दिशा में ले जानेवाले और दर्ज प्राथमिकी से मतभेद रखनेवाले अफसरों का पहले भी तबादला कर दिया गया था, जो एक बड़े अपराध को दबाने और अपराध में शामिल अधिकारियों को बचाने की साजिश है।
बहरहाल अब इस घटना का अनुसंधान सीबीआई एससी-01 नई दिल्ली द्वारा किया जा रहा है। सूत्र बता रहे हैं कि समादेष्टा जैप 8 के पद पर रहते हुए मयूर पटेल से पुछताछ के लिए सीबीआई द्वारा दो बार नोटिस भेजी गई। किन्तु वे सीबीआई के सामने हाजिर नहीं हुए क्योंकि इस घटना की सत्यता के बारे में तत्कालीन डीआईजी पलामू हेमन्त टोप्पो, पुलिस अधीक्षक लातेहार अजय लिंडा, तत्कालीन सदर थाना प्रभारी हरीश कुमार पाठक एवं ओपी प्रभारी मो. रुस्तम ने सारी सच्चाई बता दी है।
अब ऐसे लोगों को डीआईजी में प्रोन्नति देकर दो महीने के लिए पुलिस मुख्यालय में डीआईजी बजट के पद पर लाकर, अब कोयला क्षेत्र बोकारो का डीआईजी बना देना, आखिर ये क्या संकेत देता है, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी। जब ये घटना अपने चरम पर थी, तब हरीश पाठक थाना प्रभारी सदर के बयान को उस वक्त प्रभात खबर ने बड़े ही सुंदर ढंग से अपने अखबार में इसे स्थान दिया था, मैं फिर से उसे दे रहा हूं, आप स्वयं पढ़िये –
कभी पलामू के चर्चित बकोरिया कांड में अहम गवाह और वहां के तत्कालीन सदर थाना प्रभारी हरीश पाठक ने सनसनीखेज खुलासा भी किया था। हरीश पाठक ने मामले में सीआइडी को लिखित बयान भी दिया था। उन्होंने कहा कि घटनास्थल पर पहुंचने के आधे घंटे के बाद पहले से वहां मौजूद सतबरवा ओपी प्रभारी मो रुस्तम उन्हें बुलाने आये थे और कहा था कि साहब बुला रहे हैं।
जाने पर पलामू के एसपी साहब कन्हैया मयूर पटेल बोले कि जल्दी से इंक्वेस्ट तैयार कर सभी शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो। साथ ही मामले का वादी भी तुम ही बन जाना। तुम अपना भी फायरिंग दिखा देना। हरीश पाठक के अनुसार मामला पूरी तरह से संदिग्ध लग रहा था। इसलिए उन्होंने एसपी साहब से कहा कि जब उन्होंने मुठभेड़ किया ही नहीं, तो वादी कैसे बन सकते हैं।
कल को जब मामले की जांच होगी। उनके मोबाइल का लोकेशन सदर थाने पर दिखेगा। तब समस्या खड़ी हो जायेगी और वे फंस जायेंगे। इस पर एसपी साहब ने कहा था कि 15 दिन में केस का सुपरविजन हो जायेगा। कोई दिक्कत नहीं होगी। इसके बावजूद भी जब मैंने इनकार किया। तो वे नाराज हो गये। हरीश को डांटा एवं बोले तुमको सस्पेंड कर देंगे। बाद में पता चला कि सतबरवा ओपी प्रभारी मो रुस्तम इस कांड का वादी बन गया था।
हरीश पाठक ने उस दौरान अपने बयान में कहा था कि एसपी कन्हैया मयूर पटेल ने आठ जून 2015 की रात दो बजे मेरे मोबाइल पर फोन किया। कहा कि सतबरवा के बकोरिया में पुलिस मुठभेड़ हो गया है। कई मारे गये हैं। तुम एडीएम लॉ एंड आर्डर के यहां जाओ और उन्हें लेकर मौके पर पहुंचो। इसके बाद एडीएम को लेकर साढ़े तीन बजे के बाद सतबरवा थाने पहुंचा।
वहां से बकोरिया घटनास्थल पर गया। वहां सतबरवा के तत्कालीन थाना प्रभारी मो. रुस्तम और अन्य पुलिसकर्मी के साथ सीआरपीएफ के दर्जनों लोग मौजूद थे। कोई घटना के बारे में सटीक नहीं बता रहा था। एसपी पलामू, लातेहार और एडीएम लॉ एंड आर्डर लगातार किसी से बात कर रहे थे। पाठक के मुताबिक उजाला हुआ, तो देखा कि सभी लाश एक लाइन से जमीन पर पड़ी हुई है। सभी के बगल में पीठू और हथियार लाइन से रखा हुआ है। एक रायफल में वोल्ट और मैगजीन नहीं था। आसपास गोली का कोई खोखा भी नहीं था।
एक लाश के पास ताजा पत्ता तोड़कर उस पर एक टच स्क्रीन मोबाइल रखा हुआ था। स्कार्पियो गाड़ी के अंदर सीट शीशा, फर्श, डैश बोर्ड, डिक्की, बॉडी व तौलिया पर कोई खून का निशान या छींटा तक नहीं था। गाड़ी की बॉडी में ज्यादातर छेद बाहर से भीतर की ओर गया था। घटनास्थल के 200 से 300 गज के चारों तरफ एक भी बूंद खून का निशान नहीं मिला। पौधों के दबने या उसके पत्ते पर खून का निशान नहीं था। अब सवाल उठता है कि इस राज्य में आदिवासियों पर अत्याचार हो और राज्य में आदिवासी ही मुख्यमंत्री बना हो, जो पूर्ण रुपेण स्वतंत्र हो, और उसके राज में दागदार अधिकारी एक प्रमुख क्षेत्र का डीआईजी बना दिया जाता हो, तो इसे आप क्या कहेंगे?