अपनी बात

पत्रकारिता का अपराधीकरण – “कोठे की एक तवायफ और एक बिका हुआ पत्रकार एक ही श्रेणी मे आते हैं, लेकिन इनमें तवायफ की इज्जत ज्यादा होती है”

सआदत हसन मंटो ने पत्रकार और पत्रकारिता पर कभी सख्त टिप्पणी की थी और कहा था – “कोठे की एक तवायफ और एक बिका हुआ पत्रकार एक ही श्रेणी मे आते हैं। लेकिन इनमें तवायफ की इज्जत ज्यादा होती है।” हाल ही में झारखण्ड सिविल सोसाइटी के एक वरिष्ठ सदस्य आरपी शाही ने सोशल साइट पर मेरे द्वारा लिखित बयान को उद्धृत करते हुए लिखा था – “यह है आज के युग की मीडिया और उसके साथ देनेवाला प्रशासन तंत्र।

झारखण्ड सिविल सोसाइटी के सोशल साइट पर एक वरिष्ठ सदस्य आर पी शाही द्वारा दर्ज कराई गई पीड़ा, जो बताती है कि पत्रकारिता के अपराधीकरण से आम आदमी कितना व्यथित है।

मीडिया हाउस खोलिये, लोगो को ब्लैकमेल करें और विज्ञापन या नकद लें, जो आपके विरुद्ध बोले उसे सरकारी तंत्र से परेशान करें। शायद, पत्रकार लोग भी इस पर विद्रोही24 का साथ न दें, क्योंकि उन्हें पता है कि वे अन्याय बर्दाश्त नहीं करते और आज का प्रचलन तो अन्याय सहकर जीवन यापन करने का हैं, वह समय बीत गया, जब युवा पत्रकार संपादक जी से अपने खबर को दबाने के विरुद्ध बहस कर लिया करते थे।”

नेहा रावत शाहदेव ने भी इस न्यूज 11 भारत की शिकायत सोशल साइट पर दर्ज कर दी।

नेहा रावत शाहदेव न्यूज 11 भारत पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त हुए कहती है कि – “वहां पर जो भी काम कर रहा है, उसकी मजबूरी है, क्योंकि ऑफिस का माहौल अच्छा नहीं हैं, एक तरीके से मानसिक रुप से प्रताड़ित करने का – आप ऑफिस के अंदर चप्पल पहने के नहीं जा सकते हो, अगर आपको कोई इंपोर्टेंट कॉल आ गया या मैसेज आ गया, आप फोन चेक कर लेते हो, उसमें इतना गुस्सा वहां के बॉस को आ जाता है कि आप को बोलेंगे कि रिजाइन दे दीजिये और उसके बाद आप काम छोड़ देते हो तो डेढ़ महीने की सैलरी रख लेता है।

जब आप ज्वाइन करते हो, वहां पर कोई ऑफर लेटर नहीं हैं, लेकिन आप रिजाइन करते हो, जबकि वह अपशब्द बोल रहा है, आप उसी के लिए काम छोड़ते हो, तो बोला जाता है आपको डेढ़ महीने पहले नोटिस देना था, फिर आप ऑफिस में खा नहीं सकते हो, उसके बाद कोई पीएफ नहीं कटता है, ना कोई ज्वानिंग लेटर मिलता है।”

इस न्यूज चैनल की इज्जत तो दो कौड़ी की नहीं हैं। विद्रोही24 ने सबूत के साथ कई बार इसकी बखिया उधेड़ी हैं, यहां का समाचार सम्पादक हो या मालिक दोनों को लगता है कि भगवान ने बड़ी ही समय देकर उसे बनाया है, तभी तो वहां का समाचार संपादक अपने संवाददाता को बड़े ही प्यार से ब्लैकमेलिंग के अणुसूत्र बताता है, जिसकी ऑडियो क्लिप पूरे झारखण्ड में धूम मचा रही है।

लेकिन खुशी इस बात की है कि इस न्यूज चैनल 11 भारत के बारे में अब बच्चा-बच्चा जान गया है कि इस चैनल का मुख्य धंधा ब्लैकमेलिंग है, और इसके शिकार यहां के कई अधिकारी हैं, तथा इस चैनल पर सरकार चलानेवालों में शामिल सत्ता के परिक्रमाधारियों का इस पर वरद् हस्त है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इन परिक्रमाधारियों और राज्य के सभी वरीय अधिकारियों को इसकी औकात का पता चल गया हैं।

अब इसकी सारी करिश्माई पर कानून का शिकंजा कसने जा रहा है, क्योंकि अब राजनीतिक दलों के साथ-साथ कई अधिकारियों, आम जनता, सिविल सोसाइटी के लोग भी इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं, जिससे इसकी हालत पतली होने लगी है। खुशी इस बात की है कि झारखण्ड में पत्रकारिता के अपराधीकरण करने में इस न्यूज 11 की एक बहुत बड़ी भूमिका रही हैं, इस बात को अब सभी समझने लगे हैं, अब खुलकर बोल भी रहे हैं।

राजनीतिक पंडित बताते है कि अगर इस पर ताला नहीं लगा तो ये चैनल कितने ही युवाओं के भविष्य को रौंद डालेगा, झारखण्ड के भविष्य को प्रभावित कर देगा, क्योंकि इसकी सोच बहुत ही गंदी है। ये अपनी क्षुद्र सोच के लिए किसी के भी प्रतिष्ठा के साथ खेल सकता है, क्योंकि इसे किसी के भी प्रतिष्ठा के साथ खेलने में बड़ा ही आनन्द आता है। इसी की देखा-देखी अब छोटे-बड़े चैनल व पोर्टल भी, इसी के धंधे को अपनाने लगे हैं, वे भी चोरी करने लगे हैं, शुरुआत बौद्धिक संपदा की चोरी से हुई हैं। ताजा मामला आपके सामने हैं…

झारखण्ड लाइभ न्यूज डॉट कॉम की करतूत, जिसने संजय कृष्ण की रिपोर्ट की डकैती कर डाली।

आज ही दैनिक जागरण में कार्यरत संजय कृष्ण ने रांची लाइभ न्यूज के बारे में लिखा है कि उसने उनकी जागरण में छपी रिपोर्ट ही पूरी बेशर्मी से लगा दी, ये चोरी नहीं डकैती है। जिसमें दैनिक भास्कर में कार्यरत कुंदन कुमार चौधरी ने कमेन्ट्स किया है – रांची न्यूज ने उनकी रिपोर्ट के साथ भी ऐसा ही किया था, जब उन्होंने कम्पलेन की, तब साभार लिखा।

दैनिक भास्कर के कुंदन कुमार चौधरी ने भी इसी तरह की शिकायत की थी, जो शिकायत संजय कृष्ण ने की।

अब बात यह है कि ये बौद्धिकता की चोरी अगर पत्रकार करने लगे, तो इसे आप क्या कहेंगे? मेरे विद्रोही24 से भी कई पोर्टल चैनलों ने मेरे द्वारा लिखित आलेखों की कई बार चोरी की, मैंने उन शख्सों को फोन कर, इसके बारे में चेतावनी भी दी, पर ये सारे इतने थेथर और कमीने है कि उनके लिये कमीने और थेथर वाली शब्द भी कम पड़ रही हैं।

इसलिए मैं कह रहा हूं कि पत्रकारिता का अपराधीकरण हो रहा हैं, और इसमें आला दर्जे के चोर, ब्लैकमेलर, बदमाश, लफूआ व पत्रकारिता के नाम पर ठेकेदारी करनेवालों लूटेरों की फौज आ गई है, जो गांधी व अम्बेडकर की इस पवित्र पत्रकारिता का भी नाश करने में लगे हैं। हमें याद है कि सन् 2003 की बात है, मैं रांची के एक प्रतिष्ठित अखबार के कार्यालय में बैठा था।

अचानक एक कट्टर ईमानदार भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आक्रोशित मुद्रा में प्रधान संपादक के कार्यालय में प्रवेश किये, उक्त आक्रोशित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने कड़े शब्दों में उनके अखबार में लिखित समाचार का खंडन किया और प्रधान संपादक ने शांत मुद्रा में उनकी बातों को सुना, क्योंकि उन्हें सच्चाई मालूम हो गई थी।

अब सवाल उठता है कि इस राज्य में कितने ऐसे आइएएस अधिकारी हैं, जो प्रधान संपादक के कार्यालय में जाकर अपना आक्रोश प्रकट कर सकें और यहीं सवाल कितने पत्रकारों से कि क्या आप में इतनी कूबत है कि एक आइएएस के आक्रोश को झेल लें, उत्तर है – नहीं। ये बाते लिखने का मतलब क्या है? आज का आइएएस और आज का पत्रकार, दोनों समझ गये हैं कि दोनों क्या है?  दोनों भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। दोनों एक दूसरे के पोषक हो गये हैं।

ऐसे में जिस प्रकार राजनीति का अपराधीकरण हुआ, वैसे ही पत्रकारिता का अपराधीकरण हो गया, राजनीति के अपराधीकरण होने से भ्रष्टाचार धीरे-धीरे फैलता हैं, पर पत्रकारिता के अपराधीकरण से भ्रष्टाचार में गति आ जाती है, और ये गति ही उस राज्य व देश की समाप्ति के लिए पूर्णाहूति का कारण बन जाती हैं, इसलिए इन बातों को समझिए और पत्रकारिता के अपराधीकरण पर रोक लगाइये, नहीं तो जो हो रहा हैं, वो ठीक नहीं हैं।

राज्य सरकार को चाहिए कि पत्रकारिता का अपराधीकरण करनेवालों पर सख्ती दिखाये। जैसे – वो सुनिश्चित करें कि जो लोग ऐसा काम करते हैं, उनके कार्यालय में कार्य करनेवाले कर्मचारी/अधिकारी शोषण के शिकार न हो, और समय-समय पर श्रम मंत्रालय/भविष्य निधि के अधिकारी/कर्मचारी निरीक्षण करते रहे। अधिकारियों/कर्मचारियों को मिलनेवाली सुविधाएं उन्हें प्राप्त हो रही हैं या नहीं, इसकी भी देख-रेख सुनिश्चित हो।

अगर कही से भी ब्लैकमेलिंग की खबर आती हैं, तो उस पर त्वरित कानूनी कार्रवाई हो। ब्लैकमेलिंग करनेवाले चैनलों से सरकार और उसके मंत्री व अधिकारी दूरी बनायें, बात करने से बचें, साथ ही जनता को जागरुक करें कि ऐसे चैनलों की बातों में न आयें, क्योंकि अंततः जिम्मेदारी सरकार की ही हैं। सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ऐसे चैनलों को विज्ञापन न दें, क्योंकि यही विज्ञापन उन्हें टॉनिक का काम करती हैं।

अगर ऐसे चैनल किसी सरकारी विभाग से अवैध कार्यों के लिए कुछ सौदेबाजी करते हैं तो उन विभागों के अधिकारियों पर भी सरकार कानूनी कार्रवाई करें, ताकि कोई भ्रष्ट अधिकारी ऐसे चैनलों के चंगूल में आकर भारत के भविष्य के साथ नहीं खेल सकें, क्योंकि विद्रोही24 के पास ऐसे कई सबूत है कि एक ब्लैकमेलर ने कई विभागों को अपने पत्रकारिता की आड़ में फंसाने की कोशिश की हैं, और उससे बेवजा फायदा उठाया है।