राजनीति

कनफूंकवों व अवसरवादियों के कारण सुप्रीम कोर्ट में निशिकांत मामले में हेमन्त सरकार की पिट गई भद्द

परिक्रमाधारी (कनफूंकवे) अफसर और अवसरवादी दलाल जो चारण संस्कृति के पोषक है, अपने फायदे के लिए राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को रखकर राज्य व मुख्यमंत्री दोनों की बदनामी करा रहे हैं, साथ ही दोनों को गर्त में भी ढकेल रहे हैं, यही वजह है कि राजनीतिक वैमनस्यता में मुख्यमंत्री एक से बढ़कर एक मुकदमें में न्यायालयों द्वारा दिये जा रहे आदेश के बाद वे घिरते जा रहे हैं, जिसकी वजह से उनका आधा समय जनकल्याणों के बजाय उन मुकदमों में निकल जा रहा है, जिसका नतीजा कुछ नहीं निकलना है, सिवाय सरकार की बदनामी के।

अफसरों और दलालों द्वारा जनित मुकदमें में ऐसा काम पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के शासनकाल में भी हुआ करता था, पूर्व मुख्यमंत्री ऐसे ही लोगों के एक इशारे पर अपने कनफूंकवों के यहां कभी चाय पीने तो कभी बच्चों को आशीर्वाद देने पहुंच जाया करते थे, और इस प्रकार की हरकतों का वे तेज लोग अपने हित में फायदा भी उठाते थे, जिसका परिणाम यह निकला कि रघुवर दास सड़क पर चले गये और उनसे फायदे लेनेवाले लोग कल भी बम-बम थे और आज भी बम-बम है।

इन सारी बातों को मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आज देखिये सर्वोच्च न्यायालय ने एक झूठे मुकदमे को लेकर कितनी बड़ी बात कह दी, जिससे प्रसन्न होकर गोड्डा सांसद निशिकांत दूबे ने टिव्टर पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर दिया।

“सत्यमेव जयते, आज भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा कि राज्य सरकार जान-बूझकर मुझे मेरी पत्नी व परिवार को तंग व परेशान करने के लिए झूठे केस में फंसाकर बदनाम कर रही है, मेरी पत्नी के नाम से देवघर के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला आया। हेमन्त सोरेन जी द्वारा एसआइटी गठन व उसके रिपोर्ट पर टिप्पणी हुई। मेरा या मेरे परिवार का सब कुछ बाबा वैद्यनाथ जी, वासुकिनाथ जी व माता-पिता के आशीर्वाद से हैं। जनता न्याय करेगी।”

इसी पर राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी ने भी ट्विट किया – “मुख्यमंत्री जी, कुछ नौकरशाह चमड़े का सिक्का चलाने के तर्ज पर आये दिन आपको अंधेरे में रख रहे हैं। राजनीतिक विरोधियों पर झूठे व गलत मुकदमे करवा रहे हैं। हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक सरकार को हार व फजीहत का सामना करने से देश-दुनिया में राज्य की बदनामी हो रही है।”

“ऐसे कार्यों में राज्य की गरीब जनता के कल्याण का पैसा पानी की तरह बहाया गया है सो अलग। क्या आप ऐसे अधिकारियों को चिन्हित कर कार्रवाई का इरादा रखते हैं, जिनकी वजह से नियम, कायदा-कानून मजाक बनकर रह गया है और कोर्ट के चक्कर में करोड़ों रुपये अकारण अपव्यय हुआ हैं? जिम्मेदार कौन?”

सुनील तिवारी लिखते है – “मुख्यमंत्री से मार्मिक अपील – यह पराजय सिर्फ आपका नहीं, पूरे झारखण्ड का है। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ में ले जाइये। गरीबों के खून-पसीने की कमाई के सरकारी पैसे से दो-चार वकील और रख लीजिये। और नहीं तो इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाइये।” हालांकि इसमें कठोर व्यंग्य भी किया गया है, पर इस व्यंग्य से भी सीखा जा सकता है। कहा जाता है कि अगर दुश्मन में भी कोई अच्छी बात हैं, तो उससे सीखी जानी चाहिए, पर जब कोई सीखने को तैयार नहीं, तो फिर इसके दुष्परिणाम भी उसे ही उठाने पड़ते हैं, जो गलत है।

सच्चाई है कि हेमन्त सोरेन के शासनकाल में ब्लैकमेलरों, झूठों, बेइमानों व लूटेरों का समूह हावी होता जा रहा हैं और जो ईमानदार लोग हैं, उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, पुलिस ऐसे ही बेइमानों व ब्लैकमेलरों का उत्साहवर्द्धन कर रही हैं और ईमानदारों का जीना दूभर कर चुकी हैं। गोड्डा के सांसद निशिकांत दूबे के साथ हुआ मामला और न्यूज 11 भारत के मालिक और उसके संपादक को दी जा रही मदद भी इसी श्रेणी में आता है।