गुरु पूर्णिमा पर विशेषः महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय के महान गुरु, जो अनादि काल से आज भी जीवित है, जिन्होंने कितने ही महान आत्माओं को क्रिया योग की दीक्षा दी
आप माने या न माने, पर ये शाश्वत सत्य है कि जिन्होंने भी महान आध्यात्मिक संत परमहंस योगानन्द जी द्वारा लिखित आध्यात्मिक पुस्तक “योगी कथामृत” पढ़ी है, वो इस पुस्तक को एक नहीं, कई बार, बार-बार पढ़ना चाहेगा, क्योंकि ये पुस्तक है ही ऐसी कि आप इसे बार-बार पढ़ना चाहेंगे। आप कहेंगे कि आज ऐसी क्या बात हो गई कि मुझे इस पुस्तक की चर्चा करने की जरुरत पड़ गई।
जी हां, आज इस पुस्तक और इसमें लिखी आध्यात्मिक ऊर्जा की बात करनी ही होगी, क्योंकि आज गुरु पूर्णिमा है तो ठीक उसके दूसरे दिन महावतार बाबा जी का स्मृति दिवस भी है। आप आश्चर्य करेंगे कि बहुत सारे आध्यात्मिक संतों, यहां तक की भगवान रामचंद्र व भगवान श्रीकृष्ण से लेकर ईसा मसीह तक का हम जन्म दिवस मनाते हैं, पर आज तक कोई ये बता नहीं सका कि महावतार बाबा जी का जन्मदिन या महाप्रयाण दिवस कौन सा है?
सच्चाई यही है कि आखिर कोई बतायेगा कैसे, जब उसे पता होगा तब न, लेकिन वो भी तब जब उसे ये पता चले कि ये महावतार बाबाजी कौन है? दरअसल महावतार बाबाजी जीवन व मृत्यु से परे हैं। वे हिमालयों में आज भी विचरण कर रहे है और इस दौरान कई महान विभूतियों से वे मिलें, उन्हें क्रिया योग की शिक्षा दी, तथा बाद में अपने शिष्यों के माध्यम से उन्होंने क्रिया योग को जन-जन तक पहुंचवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा दी। वो क्रिया योग जो भगवान श्रीकृष्ण व पतंजलि से होता हुआ आज जन-जन तक पहुंच रहा हैं और लोग इसे जानकर स्व को परम सत्य की ओर ले जा रहे हैं।
धन्य है लाहिड़ी महाशय, धन्य है स्वामी युक्तेश्वर गिरि जिन्होंने महावतार बाबा जी को स्पष्ट रुप से देखा, धन्य है स्वामी युक्तेश्वर गिरि जिन्होंने महावतार बाबा जी की सहायता से, लाहिड़ी महाशय के आशीर्वाद से हमारे परमप्रिय गुरुदेव परमहंस योगानन्द को क्रिया योग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए चुना, पूर्व और पश्चिम की दूरियां मिटा दी। धन्य है परमहंस योगानन्द जिन्होंने इन महान गुरुओं की परम्पराओं को आगे ले जाते हुए, योग क्रांति ला दी।
जो सबके लिए उपलब्ध नहीं था, उसे जन-जन तक पहुंचा दिया। योगी कथामृत तो यहां तक दावा करता है कि जगदगुरु शंकराचार्य के गुरु गोविन्द यति को महावतार बाबाजी ने ही काशी में क्रियायोग की शिक्षा दी थी। जिसका वर्णन स्वयं बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय और स्वामी केवलानन्द जी के समक्ष किया था। स्वयं महावतार बाबाजी ने ही मध्ययुगीन संत कंबीर को भी योग की शिक्षा दी थी।
आश्चर्य है कि भारत के किसी साहित्य व इतिहास की पुस्तक में महावतार बाबाजी का कोई वर्णन नहीं हैं, पर परमहंस योगानन्द की लिखी योगी कथामृत में इनका सविस्तार वर्णन है, जिन्हें आप बार-बार पढ़ना चाहेंगे। महावतार बाबाजी के शिष्य लाहिड़ी महाशय तो बराबर कहा करते थे कि जब भी कोई श्रद्धापूर्वक महावतार बाबाजी का नाम लेता है, उसे तत्क्षण आशीर्वाद प्राप्त होता है।
उनके शरीर पर आयु का कोई लक्षण नहीं दिखता, पर वे जब भी दिखते हैं पच्चीस वर्ष के ही दिखते हैं। वे हिन्दी में आसानी से बोल लेते हैं, पर वे विश्व की किसी भी भाषा में बातचीत कर सकते हैं, उनके लिए भाषा कोई मजबूरी नहीं। परमहंस योगानन्द जी के कथनानुसार, एक बार स्वामी केवलानन्द जी, जो उनके संस्कृत शिक्षक थे, महावतार बाबाजी के बारे में कुछ सुनाया था।
चूंकि महावतार बाबाजी एक जगह ठहरते नहीं थे, हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए चलते रहते थे। वे हमेशा अपने पास एक डंडा रखते, जिससे आदेश देते कि डेरा डंडा उठाओ और उनके साथ रह रहे लोग वहां से चल पड़ते। उनके लिए अदृश्य हो जाना और फिर दूसरे स्थान पर प्रकट हो जाना, बाये हाथ का खेल था, फिर भी वे इस पद्धति को नहीं अपनाते थे, हमेशा पैदल चलते रहते।
एक दिन की बात है। जहां बाबाजी डेरा डंडा जमाये थे। बाबा जी ने सामने से जलती हुई अग्नि से एक लकड़ी का टुकड़ा लिया और अपने एक शिष्य के नंगे कंधे पर रख दिया, जलती हुई इस लकड़ी के टुकड़े को वो शिष्य सहन नहीं कर सका, वो चीख उठा, वहीं लाहिड़ी महाशय भी मौजूद थे, उन्होने इस पर टिप्पणी की, कि गुरुदेव ये तो क्रूरता है।
तभी महावतार बाबा जी ने कहा कि अगर ये तुम्हारे सामने पूरी तरह से जलकर राख हो जाता तो क्या ये ठीक रहता। लाहिड़ी महाशय को यह समझते देर नहीं लगी कि महावतार बाबाजी ने मात्र एक जलती हुई लकड़ी के एक थोड़े से प्रहार से उस शिष्य की जिंदगी बचा ली थी। ऐसे है महावतार बाबाजी। (जारी)
जय गुरु! जय बाबाजी!