दवाई दोस्त को लेकर हुआ बवाल, सिविल सोसाइटी पहुंची रिम्स, प्रबंधन से मिलने की कोशिश, कहा भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं
दवाई दोस्त को रिम्स द्वारा बंद कराने की कोशिश का अब मतलब साफ दिखने लगा है। दरअसल इसमें भ्रष्टाचार की बू आने लगी है। स्वास्थ्य विभाग संभाल रहे लोग चाहते है कि यहां ऐसे लोगों का प्रवेश हो जाये, जिससे उन्हें मुंहमांगी रकम उनके यहां बिना किसी मेहनत के आ जाये, चाहे उनका दुकान चले या न चले, जनता को सस्ती दवा मिले या न मिलें, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं।
इसके लिए उन्हें ऐसे लोग भी खूब मिल रहे हैं और वे उनके लिए मेहनत भी कर रहे हैं, जैसे कि हाल ही औषधि विभाग के निदेशक ने एक पैरवी पत्र भी रिम्स के निदेशक को लिखा था, जिसमें उसने कहा था कि रुद्रालय कंपनी जिसके मालिक न्यूज 11 भारत के मालिक अरुप चटर्जी हैं, उन्हें दवा प्रतिष्ठान खोलने के लिए रिम्स प्रबंधन स्थान दिलवाएं।
चूंकि स्थान दवाई दोस्त वाली जगह से बेहतर कोई हैं नहीं, और दवाई दोस्त को बिना कान पकड़कर बाहर किये, उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं हो पा रहा, इसलिए रिम्स प्रबंधन ने गरीबों की हितैषी दवाई दोस्त को एक महीने के अंदर रिम्स परिसर को खाली करने का एक प्रपत्र थमा दिया। जैसे ही ये खबर लोगों को मिली, एक तरह से आम जनता के हृदय पर वज्रपात हो गया।
आम जनता को लगा कि अगर दवाई दोस्त बंद हुआ, तो फिर उन्हें सस्ती दवाएं कौन उपलब्ध करायेगा? स्वास्थ्य विभाग के लोग, जो रिम्स को साफ-सफाई तक नहीं रखते, जो हर चीज में भ्रष्टाचार में डूबकी लगाते हैं। एक जगह जहां लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध होती थी, जहां सदैव भीड़ रहा करती थी, उस पर भी ये कुदृष्टि डाल दिये।
क्योंकि इसी के कारण स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत भ्रष्ट महामानवों को अनुचित कमाई नहीं हो रही थी, अब चूंकि दवाई दोस्त को निकालने का इनलोगों ने प्रबंध कर लिया तो फिर झारखण्ड सिविल सोसाइटी को आगे आना ही था। आर पी शाही के नेतृत्व में पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल रिम्स मुख्य़ालय पहुंचा। दवाई दोस्त व प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र पहुंचा, स्थिति की जानकारी ली।
स्थिति की जानकारी लेना भी क्या, वहां तो कोई जायेगा तो देखेगा कि प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र में दवाओं का अभाव है, वहां मक्खियां भिनभिनाती रहती हैं, जबकि दवाई दोस्त में भारी भीड़ रहती है, क्योंकि वहां दवाएं भी रहती हैं और सस्ती भी। झारखण्ड सिविल सोसाइटी के आर पी शाही ने विद्रोही24 से बातचीत में साफ कहा कि जो सरकार गरीबों के पेट पर लात मारें, उन्हें मरने को मजबूर कर दें, उन्हें दवाओं तक लेने में मुसीबतें खड़ा करें, वैसी सरकार को हम क्या कहें और ऐसे अधिकारियों को हम क्या कहें?
सरकार व अधिकारी ही अपना नाम बेहतर बता दें तो हमें उस नाम से पुकारने में सहूलियत होगी। राजनीतिक पंडित कहते है कि दरअसल वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग चला रहें मंत्री हो या भारतीय प्रशासनिक सेवा के लोग, उनकी सेवा कार्य कितनी बेहतर रही हैं, वो कौन नहीं जानता, वे जिस-जिस विभाग में गये, उस विभाग का भट्ठा बैठ गया, तो इस विभाग का भट्ठा न बैठे, ये कैसे हो सकता है?
इसलिए भट्ठा बैठाने की तैयारी शुरु हो गई हैं, और उसकी शुरुआत की कड़ी है रिम्स में दवाई दोस्त को बंद कराने की तैयारी। अब देखिये इसमें जीतता कौन हैं, आम जनता या भ्रष्ट महकमा। फिलहाल भ्रष्ट महकमा भारी दिख रहा हैं, आम जनता रो रही हैं, ये कहानी केवल रिम्स की नहीं , हर जगह की है, क्योंकि सरकार भी तो हेमन्त दा की है।