अखबारों भूलकर भी सच मत लिखो, नहीं तो जान लो, यहां जब जज सुरक्षित नहीं, तो तुम किस खेत की मूली हो, चुपचाप हेमन्त कीर्तन गाओ, ज्यादा जनता को ज्ञान देने की जरुरत नहीं
“तुम सच लिखोगे, उस सच से मेरा नुकसान होगा और फिर मैं तुम्हे अपनी सत्ता का धौंस दिखाकर तुम्हारा विज्ञापन बंद कर दूंगा” फिलहाल ये ड्रामा झारखण्ड में खुलकर चल रहा हैं और इस ड्रामे को चला रहे हैं – वे परिक्रमाधारी, जो खुद को झारखण्ड के सीएम यानी हेमन्त सोरेन से कम नहीं समझते। इधर जो मोदी-भाजपा विरोधी पार्टियां या जनसंगठन हैं, वे बराबर इस बात की खुलकर आलोचना करते है कि…
केन्द्र या राज्य में जहां-जहां भाजपा की सरकारें हैं। वे लोकतंत्र की आवाज को बंद करना चाहते हैं, वे कलम की ताकत को बंद करना चाहते हैं, पर जैसे ही ये मोदी-भाजपा विरोधी पार्टियां या जनसंगठन या इनके लोग या ये स्वयं खुद वैसी ही कुकर्म करना प्रारम्भ करते हैं, तो उनका होठ सील जाता है, मुंह बंद हो जाता है।
ताजा उदाहरण झारखण्ड का है। झारखण्ड की एक प्रतिष्ठित अखबार ने जैसे ही सच लिखना प्रारम्भ किया। राज्य की सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने एक मौखिक नोटिस थमा दी कि आपको विज्ञापन नहीं दिया जायेगा, बेचारा अखबार क्या करें, कोई बहुत बड़ा उद्योगपति तो है नहीं, जो सरकार से टकरा जाये, तीन-चार दिनों से अनुनय विनय उनके संपादकों का समूह कर रहा हैं।
पर सीएमओ में बैठ परिक्रमाधारियों का दिल नहीं पसीज रहा और न ही कोई जनसंगठन या पार्टी ही, इस कुकर्म को देख सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं। याद रखिये, ये वहीं अखबार है, जिसका एक संपादक, कुछ महीने पहले आर्यभट्ट सभागार में इसी पार्टी के बहुत बड़े नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन पर तुलसीदास की तरह एक किताब लिखकर तालियां बटोरी थी।
वो उस वक्त उन तालियों से इतना गदगद था कि जैसे लगा कि उसे ईश्वर से भेट हो गई हो, क्योंकि उस दौरान उसका भाषण भी गजब ढानेवाला था। उक्त संपादक के उस वक्त के कृत्यों को देखने के बाद भी वर्तमान सरकार का दिल नहीं पसीजा और विज्ञापन बंद हो गया। इसी बीच कांग्रेस के एक बड़े नेता आलमगीर का मामला भी आ गया और अखबार ने सच-सच परोस दी।
तो भाई झारखण्ड में सच बोलना तो अपराध हैं, अगर आप सच बोलेंगे तो या तो आपका विज्ञापन रोक दिया जायेगा और नहीं तो आप पर ऐसे-ऐसे केस ठोक दिये जायेंगे कि आप चिल्लाते रहिये। साथ ही उक्त केस में झारखण्ड पुलिस यानी राजदुलारी आपको ऐसा तबाह कर देगी कि आप नाक रगड़ते रह जायेंगे।
इसलिए सच लिखनेवालों अखबारों कभी भूलकर भी सच अभी मत लिखो, नहीं तो जान रहे हो न, यहां जब जज सुरक्षित नहीं हैं, तो तुम किस खेत की मूली हो, चुपचाप हेमन्त कीर्तन गाओ, जो मिले खाओ और बोलते रहो – जय झारखण्ड। ज्यादा जनता को ज्ञान देने की जरुरत नहीं, क्योंकि जनता यहां की जनता नहीं, बल्कि आदिवासी – मूलवासी है। बस उसे इसी उधेड़बून में रहने दो, ताकि उसे असली सवालों के जवाब ढूंढने की जरुरत ही नहीं पड़े। क्या समझे?