मेरे लिए मित्रता का मतलब कोई पूछे तो सिर्फ और सिर्फ अरुण श्रीवास्तव ही होगा, दूसरा कोई नहीं
मैं तो मित्रता को लेकर जीवन भर अब्दुर्रहीम खानखाना का यही दोहा पढ़-पढ़ कर बड़ा होता रहा…
जे गरीब पर हित करे, ते रहीम बड़ लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।
अर्थात् रहीम कहते है कि जो गरीबों पर हित करें, दरअसल वही बड़े लोग हैं, ठीक उसी प्रकार अगर मित्रता देखनी हो तो कृष्ण और सुदामा की मित्रता देखो, बाकी सारी मित्रता उस मित्रता के आगे छोटी पड़ जायेंगी। बात भी सही है, तुम कहो तो तुम्हारे लिए दुनिया छोड़ दूं और जब एक दो सीढ़ी चढ़ने की ही बात आ जाये और दम फूलने लगे तो फिर ये मित्रता है?
आज की मित्रता तो सिर्फ और सिर्फ बक-बक करने की हैं और जब बक-बक की कीमत चुकानी हो तो भाग खड़े होने की है। मैंने अपने जीवन के 55 वें वसंत में हूं। अनेक लोग दोस्ती की बात कहकर आये गये, पर जब इस दोस्ती के पैमाने पर मैं किसी को खड़ा उतरते देखता हूं तो सिर्फ और सिर्फ मुझे अरुण श्रीवास्तव ही नजर आते हैं, बाकी कोई हमें दूर-दूर तक नहीं दिखता। उसके बहुत सारे कारण है।
उन कारणों में पहला कारण था, वो कभी अपने लिए जीने की कोशिश ही नहीं की। हमेशा उनके लिए जीने की कोशिश की, जिसके लिए कोई जीता ही नहीं। एक उदाहरण देखिये…एक उनका मित्र, पूर्व सांसद के पास एक लाख कर्ज मांगने गया, पर उस पूर्व सांसद ने उसे देने का वायदा किया पर दिया ही नहीं, शायद उसे लगा कि जो पैसे मांग रहा हैं, वो कभी लौटायेगा नहीं।
अंत में उनका वही मित्र अरुण श्रीवास्तव के पास पहुंचा और कहा कि उसे एक लाख रुपये चाहिए, अरुण श्रीवास्तव ने तुरन्त कहा कि मैं जानता था कि आपको एक लाख रुपये की और जरुरत पड़ेगी, क्योंकि घर ऐसी चीज ही हैं, बनाने में पैसे लगते हैं, और आप तो कट्टर ईमानदार है, इसलिए आपको दिक्कते आयेगी ही, चलिए हम आपके लिए व्यवस्था करते हैं, और जल्द से अरुण श्रीवास्तव ने व्यवस्था भी कर दी।
उक्त मित्र ने अरुण श्रीवास्तव से कहा कि दरअसल मैं आपसे एक लाख रुपये इसलिए नहीं मांग रहा था कि चूंकि आपसे ऑलरेडी दो लाख कर्ज ले रखा था, इसलिए फिर आपसे कर्ज मांगना अच्छा नहीं लग रहा था, सोचा – उक्त सांसद से दोस्ती भी हैं, इसलिए उसी से मांग लूं और जल्द ही उसे वो पैसे लौटा भी दूंगा। अरुण श्रीवास्तव ने कहा कि चलिए आपको पैसे मिल गये, आपका काम हो गया, और क्या चाहिए।
आज अरुण श्रीवास्तव दुनिया में नहीं हैं, वो पत्रकार है, जिन्दा है, वो पूर्व सांसद भी जिन्दा है और वो पत्रकार धीरे-धीरे दिवंगत अरुण श्रीवास्तव के परिवार को उनके पैसे लौटा भी रहा है। एक दिन मैंने देखा कि अरुण श्रीवास्तव बहुत उदास है, मैंने पूछा कि उदासी का कारण, तब उन्होंने बताया कि कोरोना जाने का नाम नहीं ले रहा।
सारा कारोबार बंद है, बेचारा अपने यहां कई परिवार उनके संस्थान से जुड़े हैं, उनका मेरे सिवा कोई है नहीं, सोचता हूं कि कैसे उनका अगले महीने का पेमेंन्ट करुंगा। मैंने कहा – ईश्वर है न, सब ठीक करेगा। जहां कोरोना काल में एक से एक उद्योगपति अपने यहां के लोगों को कोरोना का बहाना बनाकर बाहर का रास्ता दिखा रहे थे, पर इन्होंने कभी ऐसा नहीं किया और इन्हीं अपनों के सोच में वे हर्ट अटैक के शिकार हो गये। आज वे दुनिया में नहीं हैं।
इसलिए दोस्ती का मतलब, हमसे कोई पूछे तो सिर्फ और सिर्फ अरुण श्रीवास्तव, हालांकि उनके साथ कई राजनीतिज्ञों व प्रशासनिक अधिकारियों ने गलत किया, पर उन्होंने किसी के साथ गलत की कल्पना तक नहीं की। कुछ को तो मैं जानता हूं और मैं ये मानकर चल रहा हूं कि वो व्यक्ति/अधिकारी इसी जन्म में नर्क का आनन्द लेगा, बेमौत मरेगा, पर उसे मुक्ति तक नहीं मिलेगी। वो कौन हैं, इस आर्टिकल को पढ़कर जरुर समझ लेगा, नाम क्या लिखूं।
कल विश्व मित्रता दिवस थी, अपने मित्र के लिए सोच रहा था, क्या श्रद्धांजलि दूं, क्या भावांजलि दूं, हमें नहीं लगता कि शब्दों से बड़ा कोई श्रद्धांजलि या भावांजलि हो सकता है। नमन मित्र नमन। मैं जब तक जीवित हूं, आपको भूल नहीं सकता, मेरा हृदय से प्रणाम आप स्वीकार करें। काश, हर इन्सान आप जैसा होता।