हंसों (संपादकों) की सभा में बगूलों (मार्केटिंग के लोगों) का क्या काम CM हेमन्त जी?
भाई, सवाल तो मेरा साफ है, ये हंसों की सभा में बगूलों का क्या काम, जब आप (हेमन्त सोरेन) ने अपने आवास (मुख्यमंत्री आवास) में संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों की बैठक बुलाई तो फिर उस सभा में मार्केटिंग के लोग कैसे पहुंच गये और ये मार्केटिंग के लोग आपके साथ खड़े होकर फोटो कैसे खींचा लिये? भाई आपके यहां कोई प्रोटोकॉल हैं या नहीं?
वे कौन लोग थे, जिन्होंने आपकी मीटिंग के लिए संपादकों/ब्यूरो प्रमुखों के साथ-साथ मार्केटिंग के लोगों को भी बुला लिया था, यहां भी मार्केटिंग के लोगों को लाकर कुछ लायजनिंग करनी थी क्या? हालांकि इस कार्यक्रम में एक संपादक तो ऐसा भी दिखा, जो शुद्ध ब्लैकमेलर हैं, और जब मुख्यमंत्री ऐसे-ऐसे संपादकों यानी ब्लैकमेलर टाइप के संपादकों के साथ खड़ा होकर फोटो खिचाएं तो ये तो और शर्मनाक है।
शर्मनाक तो उन संपादकों और ब्यूरो प्रमुखों को भी, जो ये सब देखते हुए भी उक्त ब्लैकमेलर संपादक के साथ पंक्तिबद्ध होकर फोटो भी खींचवा लिये। ऐसे एक समय मैंने देखा है, जब मैं पटना में था, मुख्यमंत्री के साथ कौन संपादक बैठेगा या बात करेगा इसके लिए मंथन हुआ करता था, संपादक भी ऐसे नहीं होते कि मुख्यमंत्री ने बुलाया और पुलकित होकर वे चल दिये।
मैंने तो कई संपादकों को देखा जो मुख्यंमत्री से मिलने से इनकार कर दिया और कहा कि हम ऐसे कार्यक्रमों में नहीं जाते, हां जो मुख्यमंत्री बीट देखता हैं, वो जायेगा, वो भी तब जब कार्यक्रम समाचार से संबंधित हो, फोटो खिंचाने के लिए तो नहीं ही जायेगा, क्योंकि उसके लिए भी समय कीमती है। पर अब समय बदला है, न तो वैसे मुख्यमंत्री है और न अब वैसे संपादक।
सभी एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं, और वैसा ही आचरण करते हैं, नतीजा सामने हैं, राज्य रसातल में चला जा रहा हैं और इसकी चिन्ता न अखबार को और नहीं राज्य के मुख्यमंत्री को हैं। अब जरा सोचिये हंसों की सभा में जो बगुला को बुला लें यानी संपादकों की सभा में मार्केटिंग के लोगों को बुला लें तो ऐसे लोगों को क्या कहेंगे, इज्जत तो संपादक की गई।
पर यहां इज्जत की परवाह किसे हैं? कभी जी न्यूज में ही काम करनेवाला एक कैमरामैन इस मुद्दें को अपने सोशल साइट पर उठाया है, जिसमें उसने उक्त जीन्यूज के मार्केटिंग वाले व्यक्ति पर आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग भी किया हैं। जिसके कारण हम उसका पोस्ट यहां नहीं दे रहे हैं, सबूत के लिए हमने उसे अपने पास रखा है।
अब सवाल उठता है कि संपादक व ब्यूरो प्रमुख ही बताएं, कि ये मीटिंग किसकी थी, हंसों की या बगूलों की, ऐसे तो यह मीटिंग बुलानेवालों ने बता ही दिया कि इस मीटिंग की वजूद क्या थी, राजनीतिक पंडितों की मानें तो न तो ये मीटिंग संपादकों की थी, और न ही ब्यूरो प्रमुखों की, ये तो मौकापरस्तों की थी, जो मौकापरस्त थे, उन्हें बुलाया गया, उन्हें सूंघाया गया और फिर सूंघाकर हेमन्त भक्ति में लीन होने को कहा गया और सभी हेमन्त भक्ति में लीन भी हो गये।
मिश्रा जी, आप अगर नही गए तो यह बगुलों की सभा थी जिसमें हंस नही गया ! आपको कौन हंस लगा? जहां मुमंत्री के आगे पलक पाँवड़े बिछाए बैठे हों वे हंस कैसे होंगें ?