यौन-शोषण मामले में फंसे वरिष्ठ पत्रकार सुनील तिवारी को मिली सशर्त जमानत, हेमन्त सरकार और झारखण्ड पुलिस की कार्यशैली पर हाई कोर्ट ने उठाए सवाल
वरिष्ठ पत्रकार एवं झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के वर्तमान मीडिया सलाहकार सुनील तिवारी को सशर्त जमानत आज दे दी गई। यह जमानत झारखण्ड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजेश कुमार द्वारा दिया गया। जिसमें कहा गया कि जमानत के उपरांत सुनील तिवारी छह महीने तक झारखण्ड में नहीं रहेंगे व अपना मोबाइल नंबर नहीं बदलेंगे। ये तो थी जमानत मिलने की बात पर पक्ष-विपक्ष के बीच हुई बहस के दौरान झारखण्ड उच्च न्यायालय ने जो टिप्पणी की, वो टिप्पणी हेमन्त सरकार और राज्य की पुलिस तथा उसके अनुसंधानात्मक कार्य प्रणाली पर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिये।
सुनील तिवारी के वरीय अधिवक्ताओं के द्वारा न्यायालय में विगत दो दिनों की बहस में बताया जा रहा था कि पूरा मुकदमा ही दुर्भावना से ग्रसित है। यह मुकदमा पूरी तरह झूठा है जबकि सरकार की ओर से कहा जा रहा था कि यह बड़ा ही गंभीर मामला है यौन शोषण का मामला है, बेल नहीं दिया जा सकता। पीड़ित के वरीय अधिवक्ता की तरफ से सरकार के समर्थन में बहस किया गया। वरीय अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि बड़ा ही गंभीर यौन शोषण का मामला है, बेल का आवेदन खारिज किया जाए।
सुनील तिवारी के वरीय अधिवक्ता ने माननीय न्यायालय को बताया यह मामला अभी का नहीं है, क्योंकि सुनील तिवारी ने मुंबई उच्च न्यायालय में वर्तमान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के खिलाफ बांद्रा थाने में दर्ज एक मामले में पीड़ित के तरफ से पैरवीकार के रूप में शपथ पत्र दाखिल किया गया था, उसके उपरांत पीड़िता ने दबाव में आकर अपना मुकदमा वापस ले लिया था, तो दुबारा सुनील तिवारी ने स्वयं हस्तक्षेप याचिका मुंबई उच्च न्यायालय में दायर किया था।
उसके उपरांत उच्चतम न्यायालय में भी सुनील तिवारी द्वारा याचिका दायर की गई थी। वह याचिका वर्तमान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के विरुद्ध था, जिसके चलते दुर्भावना से पीड़ित होकर माननीय मुख्यमंत्री के दिशा निर्देश के उपरांत सुनील तिवारी के ऊपर वर्तमान झूठा मुकदमा दायर किया गया है। जमानत याचिका तथा बहस में यह भी कहा गया कि पीड़िता के परिवार तथा पीड़िता को झारखंड पुलिस के द्वारा घर से उठा लिया गया तथा जबरन मुकदमा करवाया गया तथा आज तक उसे सीडब्ल्यूसी में जबरन रखा गया है।
जमानत याचिका में यह भी कहा गया कि पूरे मामले को सीबीआई से जांच करने के लिए सुनील तिवारी की पत्नी ने याचिका दायर कर रखा है उसमें भी सरकार को नोटिस हुआ है, पर सरकार जवाब नहीं दे रही। पूरे मामले को गहनता से दो दिनों तक सुनवाई के उपरांत आज माननीय उच्च न्यायालय ने सुनील तिवारी को जमानत दे दी।
जमानत देते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार के खिलाफ लिखा जिस प्रकार से अनुसंधान तथा प्राथमिकी दर्ज की गई है, उससे लगता है यह मुकदमा झूठा एवं दुर्भावना से ग्रसित होकर सरकार के द्वारा किया गया है, मगर चूंकि यह बेल याचिका है इस बात का निर्णय ट्रायल के समय लिया जायेगा।
जिस प्रकार सरकार ने वादी को हाथरस से गिरफ्तार किया, जिस प्रकार से अति उत्साहित दुर्भावना से प्रेरित होकर कार्य पुलिस कर रही है, उससे यह लगता है कि यह मुकदमा बिल्कुल दुर्भावना से पीड़ित होकर सरकार के द्वारा दायर किया गया है। सरकार के खिलाफ तथा पुलिस विभाग के खिलाफ इस प्रकार की टिप्पणी सरकार के कार्य शैली एवं पुलिस व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाती है।
क्या सरकार दुर्भावना से ग्रसित होकर किसी को भी झूठे मुकदमे में गिरफ्तार कर सकती है? कुछ दिनों पूर्व रूपा तिर्की के मामले में भी सरकार के अनुसंधान तथा महाधिवक्ता के व्यवहार पर माननीय उच्च न्यायालय आपराधिक अवमानना बाद तथा अनुसंधान सीबीआई को सौंप दिया था। वर्तमान जमानत याचिका में भी माननीय न्यायाधीश श्री राजेश कुमार ने सरकार के खिलाफ टिप्पणी की है।
बारम्बार सरकार के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय की टिप्पणी यह बताती है कि सरकार न्याय के विपरीत कानून के विपरीत कार्य कर रही है। यहां यह बताना उचित है सुनील तिवारी सिर्फ बाबूलाल मरांडी के सलाहकार ही नहीं, एक वरिष्ठ पत्रकार भी है, क्या दुर्भावना से ग्रसित होकर एक पत्रकार को मुख्यमंत्री के ऊपर मुकदमा करने के चलते दुर्भावना से ग्रसित होकर झूठे मुकदमे में फंसा कर परेशान किया जा सकता है? दुर्भावना से ग्रसित किसी भी निर्णय को उचित निर्णय नहीं कहा जा सकता यहां तो झूठा मुकदमा करने का निर्णय या कुछ और ही क्यों न हो?
सुनील तिवारी दोषी है अथवा नहीं यह तो विचारण की बात है, ट्रायल में पता चलेगा मगर वर्तमान में जिस प्रकार की टिप्पणी उच्च न्यायालय ने की है, यह सरकार को सोचने पर मजबूर करेगा कि भविष्य में दुर्भावना से ग्रसित होकर किसी भी निर्दोष को झूठा मुकदमा में ना फंसाए और पुलिस को भी सोचने पर मजबूर होना होगा कि किसी के दबाव में आकर झूठा मुकदमा ना करें।