सुपरफ्लॉप हो गया, सीएम रघुवर दास और उनके कनफूंकवों का ‘झारखण्ड माइनिंग शो’
भला इस प्रकार के माइनिंग शो से आज तक किसी राज्य का विकास हुआ हैं, जो झारखण्ड का होगा और जब विकास ही नहीं होगा तो फिर इस प्रकार के माइनिंग शो मील का पत्थर कैसे बनेंगे? सवाल मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके प्रिय कनफूंकवों, से कि इस तीन दिवसीय झारखण्ड माइनिंग शो से राज्य को क्या हासिल हुआ? जरा खुलकर बताये।
जहां तक हमें पता हैं कि इस माइनिंग शो में किसी की रुचि नहीं रही, यहीं कारण रहा कि न तो देश और न ही विदेश से किसी प्रतिनिधि ने यहां आने की रुचि दिखाई, हद तो तब हो गई कि समापन समारोह में जिस केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को आना था, उस मंत्री ने भी इस आयोजन से स्वयं को दूर रखा, तो फिर इस प्रकार के आयोजन से किसे फायदा हुआ?
क्या यह आयोजन किसी खास संस्था और कनफूंकवों की विशेष आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए आयोजित की गई थी। जरा देखिये, झारखण्ड माइनिंग शो के इस आयोजन की विशेष झलकियां…
- झारखण्ड माइनिंग शो के पहले दिन उद्घाटन सत्र में सीएम रघुवर दास के भाषण सुनने के वक्त कहीं श्रोताओं की कुर्सियां खाली न दिखाई पड़े, इसलिए गेट को ब्लॉक कर दिया गया ताकि सभास्थल से कोई निकल ही नहीं पाये, जो गेट पर अधिकारी मौजूद थे, उनका कहना था कि उपर से आदेश है कि किसी को अंदर से बाहर नहीं जाने देना है, जब तक सीएम का भाषण न समाप्त हो जाय, ऐसे में जिन्हें लघुशंका भी लगा, उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ा और उन्हें बेवजह सीएम की भाषण सुननी पड़ी। यही हाल समापन समारोह में भी दिखा, पर उपर के वरीय अधिकारियों को भला कौन जाकर कहें कि लोगों को दिक्कत हो रही है, इसलिए बेवजह भाषण सुनने के लिए लोगों को सभास्थल में बैठना पड़ा।
- झारखण्ड माइनिंग शो के समापन समारोह में सभास्थल भरा दिखाई पड़े, इसके लिए स्कूली बच्चों को खाली सीटों पर बिठाया गया।
- समापन समारोह के दिन मंच पर वहीं चेहरे दिखे, जो रांची में बराबर दिखाई पड़ते हैं, उन्होंने ही समापन समारोह का अंतिम कार्य संपन्न किया, क्योंकि जिन केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को आना था, वो आये ही नहीं, जिसके कारण सीएम ने भी समापन समारोह से दूरियां बनायी, और सारा दारोमदार नगर विकास मंत्री सी पी सिंह के उपर आ गिरा, अब बताइये कि माइनिंग के कार्यक्रम में नगर विकास मंत्री का क्या काम?
- झारखण्ड माइनिंग शो के नाम पर खुब हल्ला मचाया, पूरे रांची को सीएम रघुवर दास की होर्डिंग-बैनर से पाट दिया, और एमओयू हुए मात्र चार।
- अगर एमओयू ही माइनिंग शो की सफलता का पैमाना है, तो जो केवल चार एमओयू हुए हैं, उन चारों एमओयू पर भी जानकार हंस रहे है कि यह कैसा एमओयू है? उन्हें समझ नहीं आ रहा।
- झारखण्ड माइनिंग शो के आयोजकों ने दावा किया था कि 23 खादानों की नीलामी को लेकर निवेशकों के सामने प्रस्ताव रखा जायेगा, पर जब निवेशक ने दूरियां बना दी तो फिर ये बतायें कि किस मुंह से प्रस्ताव लायेंगे?
- झारखण्ड माइनिंग शो के आयोजकों ने बताया था कि 60 से भी अधिक देश-विदेश की कंपनियां प्रदर्शनी लगायेंगी, जरा ये बताये कि किन-किन देशों की प्रतिनिधियां यहां पर आकर प्रदर्शनी लगायी।
- जब झारखण्ड माइनिंग शो के आयोजक खुद कह रहे है कि 2000 से अधिक डेलिगेट्स ने निबंधन कराये, तो फिर इतने डेलिगेट्स के निबंधन के बावजूद, ये झारखण्ड माइनिंग शो, महाफ्लॉप कैसे हो गया? कि आपको अपने सभास्थल पर कुर्सियां भरने के लिए तिकड़म का सहारा लेना पड़ा।
- कहा गया था कि इस झारखण्ड माइनिंग शो से दस हजार करोड़ का निवेश होगा और पचास हजार लोगों को रोजगार मिलेगा, क्या ऐसा हुआ?, अगर नहीं तो फिर ढिंढोरा क्यों पीटा गया?
- आखिर रघुवर सरकार में ही शामिल एक मंत्री सरयू राय को ये क्यों कहना पड़ा कि इस प्रकार के आयोजन से न तो निवेश होता है और न ही विकास। इसके लिए माहौल बनाने की जरुरत पड़ती है, जो यहां पर है ही नहीं।