अपनी बात

बिहार के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार का सर्कुलर मतलब शिक्षकों के मान-मर्दन के साथ-साथ गर्दन टूटने की फुल गारंटी

जब से संजय कुमार, अपर मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग, बिहार ने बिहार में कार्यरत शिक्षकों को चोरी-छुपे शराब पीनेवाले या उसकी आपूर्ति करनेवाले लोगों की पहचान कर मद्यनिषेध विभाग के मोबाइल नंबर पर सूचना देने का सर्कुलर जारी किया है, तब से राज्य के शिक्षकों में खलबली मची हुई हैं। खलबली बिहार के बुद्धिजीवियों के बीच में भी हैं, उनका कहना है कि क्या अब बिहार के शिक्षकों से बस यही काम लेना बाकी रह गया था?

आखिर ये इतनी तथाकथित सुंदर विचार किस मनीषी के मन-मस्तिष्क में उछला भाई, ऐसे लोगों को तो कम से कम बिहार रत्न तो दे ही देना चाहिए।राजनीतिक पंडितों की मानें तो जो शिक्षक दारु पीने को अभ्यस्त हैं, उनके लिए तो मस्ती ही मस्ती हैं, पर जो शिक्षक सही मायने में शिक्षक हैं जिनकी संख्या बहुतायत हैं, जो शिक्षण कार्य में ज्यादा रुचि रखते हैं, उनके लिए तो ये काम सर्वाधिक खतरनाक, जान को जोखिम में डालनेवाला हैं।

बिहार के शिक्षकों का तो कहना है कि अब तो जहां भी कोई शराबी पकड़ा जायेगा या शराब कारोबार में लगे लोग पकड़े जायेंगे, वे सीधा शिक्षकों पर ही इल्जाम लगाकर, उन्हें छट्ठी रात की दूध याद करा देंगे, ऐसे में तो उनका जीना मुश्किल हो जायेगा। कुछ शिक्षकों का तो ये भी कहना है कि इससे अच्छा रहेगा कि सरकार सीधे उन्हें भारत-पाक या भारत-चीन के बार्डर पर, वह भी बिना किसी हथियार के खड़ा कर दें, कम से कम वहां जाकर शहीद होने का सुख तो पायेंगे, ये शराबियों और उसके धंधे में लगे लोगों की जासूसी करने के चक्कर में मरने से तो कही अच्छा हैं।

कुछ राजनीतिक पंडितों की मानें तो वे साफ कहते है कि दरअसल बड़े-बड़े मंत्रियों, आइएएस/आइपीएस, या सामान्य अधिकारियों के बच्चे तो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं ही नहीं, वे तो निजी स्कूलों में पढ़ते हैं, उनके बच्चों का भविष्य तो हरदम सुरक्षित रहता है, आम तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले वैसे लोगों के बच्चे हैं, जिनका स्तर निम्न या मध्यमश्रेणी का हैं, ऐसे में उनके बच्चों का भविष्य बर्बाद भी हो जाये तो इन नेताओं, मंत्रियों व आइएएस/आइपीएस व सामान्य अधिकारियों को क्या जाता है?

पटना के एक प्रख्यात पत्रकार लव कुमार मिश्र तो साफ अपने फेसबुक पर व्यंग्य करते हुए लिखते हैं – “प्राइमरी से उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक पियक्कड़ों की खोज करेंगे, दारू के धन्धेबाजों की जासूसी करेंगे, इस तरह का जिम्मेवारी तो पत्रकार गण अच्छी तरह से निभा सकते हैं। माननीय सम्पादक से ग्राम स्तर के संवाददाता को भी इस काम मै स्वेच्छा से लग जाना चाहिए, सरकारी निर्देश की प्रतीक्षा नहीं हो।”

सुरेन्द्र सिन्हा अवकाश प्राप्त भारतीय प्रशासनिक सेवा कहते है कि शिक्षक को, शिक्षण के अलावा, सरकार गैर पेशेवर काम में लगाकर उनके मेधा का दुरुपयोग कर रही हैं। विक्रम कुमार कहते है शिक्षकों के मान-मर्दन का इससे बेहतर कोई उपाय नहीं, साथ ही गर्दन टूटने की फूल गारंटी। सचमुच जिसने भी ये दिमाग लगाई हैं, या दी हैं, मन करता हैं, ऐसे लोगों को बिहार रत्न से विभूषित किया जाये।

विद्रोही24 कॉम का तो मानना है कि सबसे पहले राज्य के शिक्षा विभाग का काया कल्प में जूटे मंत्री हो या नेता, या अधिकारी, सबसे पहले इन्हें इस पवित्र काम में जुट जाना चाहिए, और उसके बाद शिक्षकों को ये काम सौंप देना चाहिए, और उन्हें यह कहकर सौंपना चाहिए कि जब वे लोग पियक्कड़ों और शराब के धंधेबाजों की जासूसी कर सकते हैं तो तुम क्यों नहीं? इधर सुनने में आया है कि शिक्षक संघ से जुड़ें कुछ संगठनों ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के सर्कुलर की प्रतियां जलाकर आक्रोश व्यक्त किया हैं और वे इस काम को न करने का संकल्प दुहराया है।