खुद तो गलत कर ही रहे हैं, राज्य के मुखिया को भी बदनाम कर रहे हैं JMM के केन्द्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य
विवेकानन्द विद्या मंदिर के अभय मिश्रा बहुत दुखी है। दुखी इस बात को लेकर है कि उन्होंने जिस विद्यालय को अपने खून-पसीने से सींचा है, उस विद्यालय पर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की नजर गड़ गई है। अभय मिश्रा का कहना है कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सुप्रियो भट्टाचार्य अपने बेरोजगार भाई सुकृत भट्टाचार्य को विवेकानन्द विद्या मंदिर का अध्यक्ष बनाने के लिए वो सारे गैर-कानूनी प्रपंच कर रहे हैं, जिसे कानून इजाजत नहीं देता।
अभय मिश्रा का ये भी कहना है कि विद्यालय की बेहतरी के लिए वे अलग से काम कर रहे हैं, और उसका खामियाजा वे ये भुगत रहे है कि उनके उपर मुकदमों की संख्या बढ़कर 47 हो गई है, कुछ दिन के बाद लगता है कि मुकदमों की संख्या अर्द्धशतक हो जायेगी। वे कहते है कि उन्हें इस बात का दुख है कि अपने भाई को विद्यालय सौंपने के लिए सुप्रियो सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। यहां तक की विधायकों का भी सहारा ले रहे हैं, अधिकारियों की तो यहां बात ही निराली है, पर ले-देकर उन्हें कानून व न्यायालय पर भरोसा है, पर दुख भी कि यहां अच्छा काम करनेवालों की इस राज्य में कोई इज्जत नहीं, अगर आप गलत हैं तो शासन, सत्ता, अधिकारी सभी साथ हो जायेंगे।
अभय मिश्रा विद्रोही 24 से बातचीत के क्रम में कहते है कि उन्होंने सात साल के कार्यकाल में महसूस किया कि शिक्षण के क्षेत्र में शिक्षण व्यवस्था वर्तमान में पूर्णतः व्यवसायिक है और अगर कोई इकलौता, इस व्यवसायीकरण को दूर करने का प्रयास करेगा, तो सारे व्यवसायिक विद्यालय तथा पुस्तक विक्रेता से लेकर के जितने भी लोग हैं उनके विरुद्ध हो जायेंगे।
वे कहते हैं कि अगर आप राष्ट्र निर्माण कार्य करेंगे, बच्चों में चरित्र डालेंगे तो आप के विरोधी, संसार के एक-एक व्यक्ति हो जाएंगे। कुल मिलाकर शिक्षण व्यवस्था वर्तमान में व्यवसायीकरण है, राष्ट्रवाद के विपरीत है, राष्ट्रीयता नहीं लाती और पूरा का पूरा व्यवस्था ही सड़ चुका है। जिसकी वजह से ही वे आज की स्थिति में अपने उपर हो रहे झूठे मुकदमों का अर्द्धशतक लगाने जा रहे हैं।
अभय मिश्रा के अनुसार उनके विद्यालय के बच्चे वर्तमान में राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं। भारत मां के सच्चे सपूत हैं। स्वामी विवेकानंद के पद चिन्हों पर चलते हैं। जिसका विरोध आधुनिक शिक्षा पद्धति से जुड़े लोग करते हैं। पैसे लो, पैसे दो, पैसे लूटो वर्तमान शिक्षण व्यवस्था है। अगर आप इसके विपरीत कम पैसे में उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था चलाते हैं, तो चलाने नहीं दिया जाएगा।
वे कहते है कि विवेकानंद विद्या मंदिर पूर्व में एक छोटा विद्यालय था, जिसे लोग जानते भी नहीं थे। बच्चे जितना नामांकन नहीं लेते थे, उससे ज्यादा स्कूल से नाम वापस लेते थे। संरचना टूटी फूटी थी। विद्यालय का बाउंड्री वाल भी नहीं था, आने जाने का रास्ता भी नहीं। विद्यालय में बस तो थी, वह भी सिर्फ दो। वे कहते है कि उनके कार्यकाल में जब उन्होंने पदभार ग्रहण किया, तब सन् 2015 में मात्र 935 विद्यार्थी थे।
अथक परिश्रम कर विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या उन्होंने 2017 में 2600 करा दी। भवन बनवाया। विद्यालय के संरचना का विकास किया। स्कूल के लिए 20 वाहन खरीदें। पुस्तकों के दाम जो बहुत महंगे थे, उसे कम कराया यानी जो पुस्तकें चार हजार में उपलब्ध होती थी, उसका दाम दो हजार तक कम कराया। जबकि सच्चाई है कि पूरे भारतवर्ष में किसी भी विद्यालय में पुस्तकों के दाम कम नहीं हुए, बल्कि बढ़े हैं।
जैसे-जैसे विद्यालय का विकास हुआ। बच्चे बढ़े, इतना विकास हुआ कि विद्यालय का नाम पूरे भारतवर्ष में फैला और जब विद्यालय एक उत्कृष्ट विद्यालय बना तो एक राजनीतिक दल के महासचिव की आंख उस पर टिक गई और वे विद्यालय को कब्जा करने में लग जाते हैं। जिनका शुभ नाम है सुप्रियो भट्टाचार्य। वो अपने बेरोजगार भाई सुकृत भट्टाचार्यी को इस विद्यालय का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। सन 2017 में 300 राजनीतिक कार्यकर्ताओं को लेकर आते हैं, मारपीट करते हैं। विफल हो जाते हैं, कब्जा नहीं कर पाते।
चूंकि विद्यालय का विकास हो चुका है। धन आ रहा है। अब धन लूटना है। पूर्व में धन नहीं था, विद्यार्थी भी नहीं थे, मात्र 60 शिक्षक थे, और 935 विद्यार्थी। वर्तमान में 4000 विद्यार्थी और 200 से ऊपर कर्मचारी हो चुके हैं। शुल्क एवं अन्य मद में आय 2015 में ढाई करोड़ थी। वर्तमान में 10 करोड़ से ऊपर। तो ऐसे में इनकी यहां कुदृष्टि साफ दिख रही है।
अभय मिश्रा कहते है कि उन्होंने अपने कार्यकाल मैं ₹1 की भी शुल्क वृद्धि नहीं की, पुस्तकों के दाम कम कर दिए, उतना ही नहीं मुफ्त में तीरंदाजी, तलवारबाजी, निशानेबाजी, क्रिकेट फुटबॉल, वॉलीबॉल, योगा, पारंपरिक नृत्य, गायन अनेकों प्रकार की शिक्षा-दीक्षा सभी कुछ विद्यार्थियों को मुफ्त में देना शुरू कर दिया जो कि पूरे भारतवर्ष में किसी भी अन्य विद्यालय में नहीं।
विद्यार्थी अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय स्तर पर जीतने लगे यहां तक कि झारखंड राज्य के लिए पहला तलवारबाजी में कांस्य पदक भी उनके विद्यालय ने लाकर झारखंड को दिया। प्रगति जब हुई, तो धन पिपासु भी आ गए राजनीतिक हस्तक्षेप भी होने लगा और चूंकि सुप्रियो भट्टाचार्य के अपने भाई सुकृत भट्टाचार्य जी कुछ कार्य नहीं करते बेरोजगार हैं, तो उन्हें तो विद्यालय हड़प कर देना बनता है ना, उनके भाई को सुप्रियो भट्टाचार्य जी को, इसलिए झूठा शपथ पत्र कागज देकर के निबंधन कार्यालय में शपथ पत्र दिया कि चुनाव हुआ और सन 2008, 2009 के कार्यकारिणी पदाधिकारी को सन 2020 तक कार्यरत दिखा करके उनसे चार्ज ले लिया गया। झूठा शपथ पत्र के बल पर निबंधन करवाया गया।
हालांकि सन् 2008-2009 के कई कार्यकारिणी के सदस्यों की मृत्यु सन 2020 तक हो चुकी थी और कितनों ने संस्था छोड़ दिया है, अब उन्होंने शपथ पत्र के अनुसार निबंधन विभाग में यह लिख दिया कि मैंने प्रभार ले लिया है तो फिर दुबारा प्रभार कैसा? झूठे का ही बोलबाला है एक तो गलत शपथ पत्र ऊपर से क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य निबंधन महानिरीक्षक का आदेश बताता है कि यहां क्या हो रहा है? जबकि सच्चाई यह है कि संस्था निबंधन महानिरीक्षक को संस्था के आंतरिक विवाद में हस्तक्षेप करने का क्षेत्राधिकार ही नहीं है, उसके बावजूद अपने क्षेत्राधिकार का दुरुपयोग करते हुए निबंधन महानिरीक्षक ने कार्यकारिणी सूची में बदलाव कर दिया।
कार्यकारिणी का बदलाव करने का संस्था निबंधन अधिनियम 1860 में कोई प्रावधान ही नहीं है। पद के निपटारा के लिए सिविल कोर्ट में सूट दायर किया जा सकता था पर उन लोगों के द्वारा ऐसा कभी किया ही नहीं गया और न ही किसी प्रकार की याचिका उच्च न्यायालय में डाली। कार्यकारिणी सूची में बदलाव का आदेश झूठा शपथ पत्र पर आधारित था तथा छल से लिया गया आदेश दुर्भावना से ग्रसित होकर पारित किया गया आदेश था।
संस्था का चुनाव हर वर्ष होता है। निबंधन अधिनियम के तहत तथा निबंधित संस्था हर वर्ष अंकेक्षण वार्षिक कार्य विवरणी, अपने कार्यकारिणी सदस्यों की सूची तथा सामान्य सदस्यों की सूची धारा 4 व धारा 4A के तहत जमा करेगी, ऐसा नियम है, जिसका अनुपालन हमारे द्वारा विगत सात वर्षों से किया जाता रहा है।निबंधक महानिरीक्षक ने इस वार्षिक सूची को विगत सात वर्षों में मेरे द्वारा जमा की गई वार्षिक अंकेक्षण प्रतिवेदन वार्षिक कार्य सूची को रिजेक्ट भी नहीं किया है।
इसके अतिरिक्त किसी प्रकार का हस्तक्षेप निबंधन महानिरीक्षक आंतरिक विवाद में नहीं कर सकता। जब हमारे द्वारा सात वर्षों से निबंधक महानिरीक्षक के यहां वार्षिक चुनाव के उपरांत जमा की जाती रही है और किसी भी चुनाव को सुकृत भट्टाचार्य जी के द्वारा किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी गई है। इनको सात वर्षों के उपरांत आज प्रभार लेने की याद कैसे आई? वार्षिक प्रतिवेदन जमा करूं मैं, प्रभार ले वो, यह आदेश हुआ है।
अभय मिश्रा कहते है कि चुनाव कराऊं मैं, संस्था का विकास करु मैं, कार्यरत रहूं मैं और प्रभार दिलाया जाए सुकृत भट्टाचार्यी को, वो भी गैर-कानूनी तरीके से। जिन्होंने छल कपट दुर्भावना से प्रेरित होकर आदेश प्राप्त किया है। 28.2.2020 को निबंधक महा निरीक्षक के द्वारा संस्था के कार्यकारिणी सूची के बदलाव के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। जिसकी रिट याचिका संख्या 1151/2020 है। जिसमें कहा गया कि उनका आदेश दुर्भावना से ग्रसित होकर अपने क्षेत्राधिकार का दुरुपयोग कर तथा बिना किसी चुनाव के कराया गया है।
उनके द्वारा जो एक मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर बल दिया जा रहा है उस प्रकार का कोई रिपोर्ट संस्था निबंधन अधिनियम के अंतर्गत सही माना ही नहीं जा सकता।अन्य उच्च न्यायालय सभी मामलों को सुनने के उपरांत पदाधिकारियों पर दुर्भावना से ग्रसित होकर तथा क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कार्य करने का नोटिस निर्गत करती है तथा सुकृत भट्टाचार्य जी के आवेदन पर जो बैंक का संचालन रुका था उसे न्यायालय ने मेरे द्वारा संचालित करने का निर्देश भी दिया है।
अब मामला लंबित रहते हुए करीब 45 से 47 मुकदमे संस्था के ऊपर किए गए तथा मेरे कार्यकारिणी के ऊपर तथा मेरे ऊपर। अपराधिक मुकदमा भी दायर किए गए। शिकायतवाद तथा मुकदमे 45 से 47 करीब 45 मुकदमे खारिज हो गए दो मुकदमे चल रहे हैं, जब कोई सबूत ना मिला तो जबरन मुझे गिरफ्तार कर विद्यालय को हड़पने का प्रयास किया गया, मगर माननीय उच्च न्यायालय ने मेरे द्वारा दायर याचिका में गिरफ्तारी पर रोक लगा दिया जो कि अभी लंबित है
जब इससे भी उनको लाभ ना हुआ तो एक विधायक ने विधानसभा में मामला उच्च न्यायालय याचिका लंबित रहते हुए मामले को उठाया, हालांकि कानूनन जब कोई भी मामला उच्च न्यायालय में विचारण हेतु लंबित हो तो उस मामले को विधानसभा में नहीं उठाया जा सकता।
विधायक के द्वारा शिक्षा विभाग से प्रश्न किया गया और कहा गया कि यथाशीघ्र सुकृत भट्टाचार्य जी को प्रभार दिला दिया जाए जो की पूर्णतः गैर कानूनी एवं दुर्भावना से प्रेरित प्रश्न एवं निर्देश था। शिक्षा विभाग ने मुझ से स्पष्टीकरण मांगा स्पष्टीकरण देने के उपरांत मामला तथ्यों से परे एवं झूठा पाया गया। उसके उपरांत विधायक ने उसी प्रश्न को निबंधन विभाग में भेजा। निर्देश पारित हुआ यथाशीघ्र सुकृत भट्टाचार्य जी को प्रभार दिलाया जाए।
निबंधन विभाग ने अपने पत्र दिनांक 24. 02. 2022 के माध्यम से विधानसभा सचिवालय तथा विधायक को सूचित किया, इस प्रकार का कोई भी आदेश पारित करने का क्षेत्राधिकार निबंधन महानिरीक्षक को नहीं है ना ही विभाग को निहित है। इसके उपरांत मंत्री अल्पसंख्यक निबंधन विभाग के आप्त सचिव द्वारा पत्र निर्गत होता है। सचिव निबंधन को पत्र में निर्देशित रहता है कि अविलंब सुकृत भट्टाचार्जी को प्रभार दिलाया जाए।
राजनीतिक दबाव में निबंधन सचिव निर्देशित करते हैं कि सुकृत भट्टाचार्य जी के द्वारा जो आवेदन दिया गया है उनके सचिव के द्वारा उस पर त्वरित कार्यवाही करते हुए तुरंत ही प्रभार दिलाया जाए एवं मजिस्ट्रेट की नियुक्ति की जाए। उपायुक्त रांची को निर्देशित है कानून सम्मत कार्रवाई करते हुए यथाशक्ति प्रभार दिलाने हेतु पुलिस बल की नियुक्ति की जाए।
सवाल यह उठता है जब निबंधन विभाग विधानसभा सचिव को लिखा है कि इस प्रकार का कोई भी आदेश पारित करने का क्षेत्राधिकार निबंधन विभाग को नहीं है तो फिर रांची उपायुक्त किस प्रकार कानून सम्मत कार्रवाई करेंगे? यह तो बिल्कुल जबरन पारित किया गया आदेश है वह भी उस परिस्थिति में जबकि उच्च न्यायालय में याचिका लंबित है। उच्च न्यायालय के द्वारा अनेक आदेश पारित भी किए गए हैं।
एक पत्र में निबंधन विभाग कहता है यह कार्य उनके क्षेत्राधिकार में नहीं है मगर तुरंत अगले दिन राजनीतिक दबाव में आदेश पारित कर दिया जाता है। कानून, क्षेत्राधिकार, संस्था निबंधन अधिनियम 186 , एवं उच्चतम न्यायालय के न्याय निर्णय, लगता है सभी इस राज्य में बेमानी है। इस राज्य में लगता है कानून का कोई महत्त्व नहीं और गैर कानूनी कार्य ही कानूनन सही है।
ऐसा लगता है कि इस राज्य में कानून व्यवस्था नहीं है तथा जो भी कुछ चल रहा है वह गैरकानूनी रूप से ही होगा। एक तरफ मामला लंबित है उच्च न्यायालय में दूसरी तरफ विधायक तथा मंत्री न्यायालय के अंतरिम आदेशों की अवहेलना करते हुए तथा रिट याचिका लंबित रहते हुए निर्देशित करते हैं कि प्रभार दिलाया जाए।
जब जिस आदेश के अनुपालन की बात की जा रही है वह सन 2020 की है जिसका अनुपालन 2022 में होगा, प्रभार दिलाने का। प्रभार दिलाने का कार्य विभाग का नहीं हैं, चूंकि शपथ पत्र में निबंधन विभाग में लिखा गया है कि उनको प्रभार दे दिया गया हैं। सन् 2008-09 के पदाधिकारियों के द्वारा फिर प्रभार दिलाने की बात कहां से आती है।
यहां अभी विद्यालय में परीक्षा चल रही है। इस परीक्षा के दौरान अगर प्रभार जबरन दिलाया जाएगा तो विद्यालय के 4000 बच्चों का भविष्य अंधकार में हो जाएगा और इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा? दूसरी ओर अभय मिश्रा अपने सोशल साइट यानी फेसबुक पर भी अपनी वेदना इस प्रकार लिखकर डाल दी है –
Please read it carefully..
देखो भाई हम कोई रुई नहीं जो पानी से गल जाए…
मेरे उपर स्वामी विवेकानंद जी का प्रत्यक्ष आशीर्वाद है। अब बात है विवेकानंद विद्या मंदिर की…
- एक बात न हम कभी गलत करते हैं और न करने देते हैं, न बेईमानी करते हैं, न करने देते हैं और जो गलत करता है उसको कभी छोड़ते भी नहीं।
- जो भी (विरोधी) जिनकी संख्या सिर्फ चार-पांच हैं, जो स्वार्थवश हमारी संस्था के अनिष्ट में लगातार लगे रहते हैं, उनको एक सलाह है, जितनी ऊर्जा वे विध्वंसात्मक कार्यों में लगा रहे हैं, उतनी उर्जा वो सकारात्मक कार्य में लगाते तो उनका भला भी हो जाता।
- विरोधी दिन भर निरर्थक दौड़ते रहते हैं, कभी यहां कभी वहां, वो भी सिर्फ इसलिए कि कैसे संस्थान का अहित कर दें। आखिर क्यों? सिर्फ स्वार्थ या अहंकार के लिए ही न।
- आपने 48 वर्षों तक संस्था/विवेकानंद विद्यालय का संचालन किया और विकास नहीं कर पाए तो क्या यह मेरी गलती है?
- आप लोगों ने बेंच, कुर्सी, भवन का रंगरोगन तक नहीं करवाया तो ये क्या मेरी गलती है?
- आप लोगों ने 48 वर्षों तक, में शिक्षकों के वेतन नहीं बढ़ाए, ग्रेच्युटी नहीं दिए, ईएसआई, ईपीएफ नहीं दिया तो ये क्या मेरी गलती है?
- हमारे सदस्यों ने सिर्फ पांच वर्षों में विवेकानंद विद्या मंदिर का अद्भुत विकास कर दिया तो क्या यह भी मेरी/हमारी गलती हैं?
- हमने सात वर्षों में कोई शुल्क नहीं बढ़ाया, दो-दो लॉक डाउन झेला, सभी को कोविड-19 से सुरक्षित निकाला, तो ये क्या मेरी गलती हैं?
- 2017 से ही अवैध रूप से कब्जा करने पर लगे हो, आखिर क्यों? जब संस्थान अच्छे से चल रहा है?
- एक भी अभिभावक, शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारी विद्यार्थियों ने कभी शिकायत नहीं किया, तब आपको क्या दिक्कत? आप क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह कर रहे हो?
- दर-दर दिन रात भटकते हो, अवैध रूप से ही सही कोई अधिकारी या कोई नेता कब्जा करवा कर दे दें, भाई विवेकानंद विद्या मंदिर का नाश करना है क्या?
- 2015 में मात्र 935 बच्चे थे संस्थान में, आज हम इसे ले कर गए 2019 में ही 4000 पार करा दिया, तो ये भी मेरी गलती है क्या?
- पहले सिर्फ दो बस थे, हम ने बसों की संख्या 24 कर दी, तो यह भी मेरी गलती है?
- पुस्तकों के दाम नर्सरी 4000 रूपए से 270 रूपए कर दिये तो ये भी मेरी गलती? मैं चोर हो गया? 4000 होता तो ईमानदार होता?
- पूरे भारत में पुराने पुस्तकें जमा कर के दोबारा बच्चों से इकट्ठा करके चलाने वाला एकलौता विद्यालय बनाया, तो क्या ये मेरी गलती हैं?
- पहली से लेकर 12 वीं तक 5000 रूपए था पुस्तक का दाम, तो मैंने कर दिया 2000 रूपए, तो चोर हो गया 5000 से 7000 सही था?
- तीरंदाजी, तलवारबाजी, निशानेबाजी, कबड्डी, पारंपरिक नृत्य गायन सभी का शिक्षा मुफ्त करा दिया, तो मैं चोर हो गया?
- असल में इस राष्ट्र में ईमानदारी किसी को नहीं भाती, पूरी व्यवस्था ही बेईमान है, ईमानदार कभी जी ही नहीं सकता व्यवस्था ही बेईमान है, शायद इसी को लोकतंत्र कहते हैं। मेरी ईमानदारी बहुतों के मार्ग में कंटक है, क्योंकि कमाई रोक रखा हूं, कोई नही चाहेगा इस तरह से विद्यालय चले। क्या नहीं झेलना पड़ा मात्र बच्चों को उचित और सस्ती शिक्षा देने के लिए। क्यों इतना परेशान? खुद झूठ का मुकदमा भी करते हो, दूसरे से लड़वाते भी हो, अपना भी समय खर्च करते हो, कोई साक्ष्य नहीं मिलता तो जबरन कब्जा करने का प्रयास करते हो।
- अब संस्था पर मुझ पर अन्य लोगों पर करीब 45 से 47 मुकदमे कर चुके हो और उसमें जीत नहीं पाते हो तो क्या यह भी मेरी गलती है?
- अब तक जब सात वर्षों में चोरी का एक भी साक्ष्य नहीं मिला तो जबरन गलत तरीके से गिरफ्तारी का वारंट निकालते हो, उच्च न्यायालय वह भी रोक देता हैं, तो क्या यह भी मेरी गलती है?
- जब विद्यालय का खाता रोकने का आवेदन देते हो (हर बैंक में) चार करोड़ करीब विद्यालय का रोक के भी रखे भी हो, फिर भी उच्च न्यायालय खाता संचालन करने का आदेश मेरे पक्ष में दे देता है तो क्या यह भी मेरी गलती है?
- क्या सिर्फ चार-पांच लोग ही विश्व के सबसे ईमानदार व्यक्ति हो सकते हैं?
- इन पांच को छोड़कर न तो 4000 बच्चों के अभिभावक, न एक भी शिक्षक, न कोई भी अन्य व्यक्ति, कभी भी विद्यालय का शिकायत करते आज तक मैंने न देखा न सुना।
- खुद तो गलत कर ही रहे हैं और अपने राज्य के मुखिया को भी बदनाम कर रहे हैं ग़लत झूठा तथ्य देकर।
- जिन्होंने भी विद्यालय का विकास किया उसे जेल जाना पड़ता है, सन् 1984 में सभी मलयाली को संस्था से निकाल दिया गया (तब मलयाली, उत्तराखंड, राजस्थान अन्य लोगों के द्वारा शुरू की गई थी) सचिव थे स्व. के कृष्णमूर्ति उनको धक्के देकर भगा दिया गया। बेचारे बीमार पड़ कर मर गए, उसके बाद जेसी मुखर्जी पूर्व सचिव उन्हें शहर से ही भगा दिया गया।
- जिन्होंने भी संस्था के लिए ईमानदारी से कार्य किया था पूर्व सचिव आर डी भट्टाचार्जी उन्हें जेल भेज दिया गया। झूठा मुकदमा कर भवन नहीं बना और पैसा दे दिया और जबकि उसी भवन में विद्यालय चलता है उसी प्रकार का झूठा मुकदमा मुझ पर भी है। मतलब जो भी ईमानदारी से काम करे तो परेशानी इन पांच (विरोधी को बड़ी परेशानी) अब उनके पांच पुत्र हैं, आगे वो पीछे।
- अपना भी धन बर्बाद करते हो, हमारा भी समय और धन बर्बाद करते हो? सकारात्मक ऊर्जा की जगह नकारात्मक ऊर्जा लगाते हो, विकास के जगह विनाश की तैयारी करते हो? जितनी उर्जा व्यर्थ नष्ट करते हैं आप लोग, उसके बाद भी गर मैं विद्यालय का विकास कर रहा हूं तो मेरी बड़ाई करनी चाहिए, क्यों झूठ का मुकदमा दर्ज करते हो। क्यों ? याद रखो, भाई नकारात्मक ऊर्जा सिर्फ नकारात्मकता को बढ़ा सकती है ,कभी भला नहीं कर सकती। इस तरह लड़ाई खत्म नहीं होती बढ़ती है ।
जय श्री ठाकुर।
अभय मिश्रा