जब कोई MLA मंदिर जाये तो उसे सही-गलत का पाठ नहीं पढ़ाइये, वो जैसे कहे, करते जाइये, नहीं तो कैंसर पीड़ित रमेश परिहस्त की तरह आपको भी बेइज्जत होना पड़ेगा
जब कोई MLA मंदिर जाये तो उसे सही-गलत का पाठ नहीं पढ़ाइये, वो जैसे कहे, करते जाइये, नहीं तो कैंसर पीड़ित रमेश परिहस्त की तरह आपको भी बेइज्जत होना पड़ेगा। जब बाबा नगरी वैद्यनाथधाम में महाशिवरात्रि के अवसर पर शीघ्रदर्शनम के कूपनों की संख्या 13200 तक पहुंच जाये। जब सामान्य जलार्पण करनेवालों की संख्या एक ही दिन में दो लाख 37 हजार से भी ज्यादा हो जाये, पंक्तिबद्ध होकर जलार्पण करनेवालों की पंक्ति छह किलोमीटर को भी पार कर जाये, तो मानकर चलिये, थोड़ी-बहुत अव्यवस्था होगी ही और ऐसे में प्रत्येक पक्ष को इस भारी भीड़ को देखते हुए संयम बरतनी ही होगी।
अगर आप संयम खोते हैं, तो यही होगा, बाबाधाम का एक सामान्य सा मामला देवघर से होते हुए रांची स्थित विधानसभा भवन पहुंच गया। स्पीकर रवीन्द्र नाथ महतो ने विधायक अम्बा प्रसाद की मांग पर मंत्री से अधिकारियों पर कार्रवाई करने का आसन से आदेश दे दिया और मंत्री आलमगीर आलम ने आसन को आश्वस्त भी कर दिया कि कार्रवाई होगी। ये कार्रवाई भी इतनी जल्दी हो गई कि भले ही प्रशासनिक अधिकारियों पर गाज गिरे अथवा न गिरे, पर बाबा मंदिर के प्रबंधक वो भी कैंसर मरीज रमेश परिहस्त को इस पूरे प्रकरण का बलि का बकरा बनाते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से प्रबंधक पद से मुक्त भी कर दिया गया।
रमेश परिहस्त को मुक्त करने का आधार क्या बनाया गया? आधार बना वो वायरल विडियो, जिसमें रमेश परिहस्त, विधायक अम्बा प्रसाद से बहस कर रहे हैं। आम तौर पर ये ऐसी कोई बहस भी नहीं, जिसको लेकर इतना बड़ा बवंडर खड़ा कर दिया जाये। आप जब कभी बाबानगरी जाय, तो वहां की जो स्थितियां होती हैं, उसमें इस प्रकार की बहस सामान्य सी बात है। वो भी तब जब भीड़ असामान्य स्थितियों में पहुंच जाये और उसी वक्त अचानक किसी VVIP का दौरा हो जाये और वो VVIP अपने लिए विशेष प्रबंध करने का दबाव बना दें।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो किसी भी VVIP को जो विशेष सुविधा प्राप्त करना चाहता हैं, उसे भीड़-भाड़वाले दिनों में बाबा मंदिर जाने से बचना चाहिए। महाशिवरात्रि का दिन ऐसे भी बाबा मंदिर में भारी भीड़ होती है और उस भीड़ में किसी VVIP का वहां पहुंच जाना और फिर एसडीएम को फोन लगाना बात समझ से परे हैं जबकि देवघर एसडीएम का बयान, जिसे देवघर से प्रकाशित अखबार प्रभात खबर ने छापा है, कुछ और ही कह रहा है। बयान है – विधायक द्वारा मुझे फोन किये जाने और चेंबर में आकर मिलने की बात पूरी तरह से बेबुनियाद है, फोन तो आया ही नहीं, तो मैंने कब कोई बात कही, श्रद्धालुओं की अप्रत्याशित भीड़ के कारण…।
राजनीतिक पंडित तो ये भी कहते है कि विधायक अम्बा प्रसाद कहती है कि उनकी आस्था थी, वो मंदिर पहुंच गई, तो क्या उनकी आस्था यह भी थी कि वे लाव-लश्कर के साथ बाबा का दर्शन करें, पूजा अर्चना करें। आखिर वो सामान्य महिला की तरह क्यों नहीं गई? बाबा मंदिर में विधायक के रुप में जाने की क्या जरुरत? क्या ये सही नहीं है कि अम्बा प्रसाद अपने लाव-लश्कर के साथ मंदिर परिसर कार्यालय में धरने की शक्ल में बैठ गई और अपने पास एसडीएम को बुलाने की मांग करने लगी।
जब भारी भीड़ बाबा मंदिर की ओर बढ़ रही हो, जलार्पण करना चाह रही हो, तो एसडीएम या वरीय प्रशासनिक अधिकारियों या मंदिर के प्रबंधक का पहला काम क्या हैं? भीड़ को नियंत्रित करना, उनको सेवा देना या सब कुछ छोड़कर विधायक अम्बा प्रसाद और उनके लाव-लश्कर की सेवा में जुट जाना था, अगर इनकी सेवा में जुट जाने के बाद महाशिवरात्रि के दिन बाबा मंदिर में कुछ घटना घट जाती तो क्या अम्बा प्रसाद उस घटना की जिम्मेवारी अपने उपर लेती?
इस पूरे प्रकरण पर हमने राज्य के तीन प्रमुख दलों के तीन विधायकों से बातचीत की। सभी ने यह कहकर बात की, कि प्लीज हमारा नाम समाचार लिखने में मत डालियेगा, गलतियां तो हुई ही हैं। बात गलती और सही की भी नहीं है। बात तो एक विधायक की सोच की है, वो जो भी करें सही और जो सही करने में जुटा है, वो सही होते हुए भी गलत कैसे हो जाता है?
आपको हर जगह धरना-प्रदर्शन करने की जो बिमारी है, वो बीमारी बाबा मंदिर में तो प्रदर्शित करने से बचना चाहिए। आप तो वहां बाबा पर जल चढाने गई थी। आप जलार्पण करने के बाद, विधानसभा में अपनी बात सदन में रख सकती थी। आपने रखा भी। कयामत भी हो गया। लेकिन बाबा मंदिर परिसर में धरना-प्रदर्शन। ये बात कुछ जमी नहीं।
एक सवाल तो झारखण्ड की जनता से भी। आप भारत के कई द्वादश ज्योतिर्लिगों के शहरों में गये होंगे। कभी आपने देखा है कि उन ज्योतिर्लिगों की पूजा अर्चना के दौरान भक्तों के माथे पर डंडे बरसते हुए। नहीं न। लेकिन आप वैद्यनाथ धाम में भक्तों के माथे पर डंडे बरसते हुए जरुर देखे होंगे। उन लाठी-डंडों से कई के सिर भी फट जाते हैं, पर लोग इसे भी बाबा का प्रसाद समझकर ग्रहण कर लेते हैं, उफ्फ तक नहीं करते और न ही विधानसभा में इस बात की गूंज सुनाई पड़ती है।
यह भी जानिये कि बाबा मंदिर में ये लाठियां बरसानेवाले और कोई नहीं, वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी या बाबा के सेवक होते हैं, फिर भी मैंने आज तक लोगों को कुपित होते नहीं देखा। पर अम्बा प्रसाद जी तो विधायक हैं न। उनके साथ तो बहुत गलत हो गया। नहीं होना चाहिए था। भाई विधायक, विधायक होता है। कैंसर रोगी रमेश परिहस्त को विधायक से भिड़ना नहीं चाहिए था, अब लीजिये प्रबंधक का पद भी गया और इज्जत गई सो अलग।
पर यहां तो झारखण्ड विधानसभा में ये मामला गूंजा और जो यहां के माननीय हैं, उन्होंने फैसले दे दिये, पहली कार्रवाई हो भी गई, बाद की कार्रवाई का इंतजार करिये। लेकिन ये क्या? अभी तो बाबा वैद्यनाथ का फैसला आना बाकी है, क्या बाबा वैद्यनाथ का फैसला झेलने की ताकत यहां के माननीयों में हैं, मेरी तो नजर उस ओर हैं और लगता है कि तीन वर्षों के अंदर बाबा का फैसला आयेगा, फैसला में क्या लिखा होगा, वो बाबा के भक्तों को पता हैं। बोलिए प्रेम से – ओंकार हर हर हर बम-बम, जय हो, जय हो।
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