थू है ऐसी पत्रकारिता और ऐसे पत्रकार पर, जो मतदाताओं से उनकी जात पूछते हैं
थू है ऐसी पत्रकारिता और ऐसे पत्रकार पर जो मतदाताओं से उनकी जात पूछते हैं। जब से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई और जैसे-जैसे मतदान के अंतिम चरण की तिथि निकट आती जा रही हैं, कुछ पत्रकारों की घटियास्तर की मनोवृत्ति दर्शकों के सामने उतनी ही तेजी से प्रकट होती जा रही है। उपर्युक्त शब्दों/वाक्यों की पुष्टि के लिए आप तथाकथित पत्रकार अजीत अंजुम विडियो को देखिये, जो ताजा-ताजा है।
ये अजीत अंजुम खुद को वरिष्ठ पत्रकार कहलाने में गर्व महसूस करता है। कई चैनलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुका है। आजकल ये सोशल साइट पर खुब दिखाई दे रहा है। ये उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी टीम के साथ उत्तर प्रदेश के सभी छोटे-बड़े शहरों के मतदाताओं के नब्ज टटोल चुका है। इस नब्ज टटोलने के क्रम में वह मतदाताओं से यह पूछना नहीं भूलता कि सामनेवाला मतदाता जिसकी वह इंटरव्यू ले रहा है, वह किस जात का है?
शायद, वह इस माध्यम से यह जानने की कोशिश करता है कि राज्य में किस जाति के लोग किस पार्टी को वोट कर रहे हैं। जिसके आधार पर यह पता लगा लिया जाय कि यहां सरकार किसकी बन रही है? हालांकि उसके इस जात पूछने के चक्कर में कई मतदाता जो उससे वाकचातुर्य में बीस पड़ते हैं, उसका ही क्लास लेना शुरु कर देते हैं, जिसका उसे पता भी नहीं चलता और जब पता चलता हैं, तो चुपके से वह यह कहकर आगे निकलता है कि आगे देखते है कि और मतदाताओं का क्या हाल-चाल है, वे किसे वोट कर रहे हैं?
जब उसे कोई दलित या पिछड़े वर्ग का मतदाता यह कहता है कि वो फूल छाप को वोट देकर आ रहा हैं, तो उसे आश्चर्य भी होता है कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं, उन्हें तो भाजपा को वोट देना ही नहीं चाहिए, वो कभी-कभी गुस्साता भी हैं, पर अपने गुस्से को हंसी में बदलने का बखुबी नाटक भी करता है।
आश्चर्य है कि उसके इस जात पूछने के सवाल पर कोई अभी तक प्रश्न नहीं उठाया हैं, न ही चुनाव आयोग और न ही किसी दल ने। शायद चुनाव आयोग और दल ने मान लिया है कि जात ही भारतीय संस्कृति की धरोहर हैं, और इसी से भारत का विकास होना है।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो किसी भी मतदाता से उसकी जात पूछना, उस मतदाता का अपमान है, क्योंकि लोकतंत्र का राजा मतदाता होता है और राजा से उसकी जात पूछना, राजा का अपमान नहीं तो और क्या है? आखिर अजीत अंजुम मतदाताओं को सवाल पूछने के क्रम में ये क्यों नहीं बताता कि उसकी जात क्या है?
आखिर अपनी जात छुपाने के लिए उसने अपने नाम के पीछे अंजुम क्यों लगा लिया? हमें तो नहीं लगता कि उसके माता-पिता ने उसके नाम के पीछे टाइटल में अंजुम लगाया होगा। अंजुम वो खुद इसलिए लगाया होगा कि उसके जात का पता ही नहीं चले और वो इसका फायदा आजीवन उठाता रहे। जब वो खुद अपनी जात को छुपा रहा हैं तो मतदाताओं से किस हैसियत ये पूछ रहा है कि वो अपना जात बताएं।
नीतियों के ज्ञाता झारखण्ड के विनय कुमार सिंह तो साफ कहते है कि जनतंत्र के व्याधियों का उपचार, इसके स्वास्थ्य की रक्षा में जनतंत्र के चौथे स्तम्भ अर्थात् मीडिया अथवा पत्रकारिता की महती भूमिका है। किंतु पत्रकार ही यदि पत्रकारिता के स्थापित मूल्यों की हत्या पर उतर जाये, तो सिर पीटने के अलावा और क्या कर सकते हैं? अभी एक पत्रकार अजीत अंजुम यूपी में मतदाताओं की जाति पूछ-पूछकर उनके पसन्द की पार्टी व उम्मीदवार के जनमत का जायजा ले रहे हैं। भूत सरसों में घुस जाये, तो क्या करें ओझा?
एक दम सटीक टिप्पणी