अभी वक्त हेमन्त का है, बाबू लाल व आमलोग को अभी इंतजार करना होगा, अखबार-चैनल-पोर्टल वाले अभी हेमन्त की ही सुनेंगे, बाबूलाल या आमलोगों की नहीं
दिनांक – 14 मार्च, दिन – सोमवार। बाबू लाल मरांडी विधानसभा पहुंच रहे हैं। उनके विधानसभा परिसर में पहुंचते ही, पत्रकारों का दल उन्हें घेर लेता है। संवाददाताओं के प्रश्नों के बौछारों के बीच ही, राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री व इस राज्य के भावी मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी एक बयान देते हैं, जो विभिन्न सोशल साइटों व एक-दो पोर्टलों पर दिखाई देता हैं, पर राज्य के प्रमुख अखबारों में वो बयान दिखता ही नहीं।
अगर एक अखबार में दिखता भी है, तो वो इस प्रकार से दिखता है कि वो नहीं ही छापता तो एक तरह से ठीक ही रहता, क्योंकि छपना, नहीं छपना बराबर ही था। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल कि क्या प्रतिपक्ष की आवाज को अखबारों-चैनलों-पोर्टलों में स्थान नहीं मिलना चाहिए, अगर प्रतिपक्ष की आवाज को मीडिया द्वारा स्वयं दबाया जायेगा तो फिर लोकतंत्र में मीडिया की अहमियत ही क्या?
अगर मीडिया स्वयं अपने पांवों में सत्तापक्ष की घुंघरुवाली पायल पहन ठुमकने लगे, इठलाने लगे तो फिर आम जनता के दुख-दर्द का क्या होगा और ऐसे मीडिया की जनता को जरुरत भी क्या? सबसे पहले राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री व भाजपा विधायक दल के नेता जो नेता विरोधी दल बनने के प्रबल दावेदार है, जिसे बनने में रोकने के लिए सत्ता पक्ष ने एड़ी-चोटी एक कर दी हैं, और वो इसमें सफल भी है।
बाबू लाल मरांडी ने उस दिन क्या कहा, पहले उसे सुनिये – “झारखण्ड में भी बुलडोजर चलेगा। अधिकारी खड़े होकर जमीन को कब्जा करा रहे हैं। लोग अपनी घर को ताला बंद करके नहीं छोड़े। सरकार के गुंडे घर में घुस जायेंगे और 1932 का फर्जी कागज बना लेंगे और फिर घर में प्रवेश करना मुश्किल हो जायेगा। उनकी फरियाद ना थानेदार सुनेगा और ना ही उच्च अधिकारी।”
राज्य के इतने बड़े नेता की बातों में दम भी हैं। विद्रोही24 के पास तो एक ऐसा सबूत है कि इसी राज्य का 1932 का खतियानधारी पत्रकार उमाकांत महतो की जमीन पर अवैध ढंग से एक ने कब्जा कर लिया। उमाकांत महतो थाना और एसएसपी कार्यालय की दौर लगाते रहे, पर किसी ने नहीं सुनी। थानेदार तो उलटे उमाकांत महतो को ही कह दिया कि अगर ज्यादा वे करेंगे तो उलटे ही उन्हें एक फर्जरी मुकदमें में फंसा देंगे।
बेचारे उमाकांत महतो खतियानी पत्रकार क्या करते? चुप हो गये और वक्त की इंतजार में लग गये कि कब उन्हें अपनी खोई जमीन वापस मिलती है, वो जमीन उन्हें मिली भी पर पुलिस के सहयोग से नहीं, बल्कि उन्हें अपनी जमीन को लेने में कई पापड़ बेलने पड़ गये। ये राज्य की वर्तमान सच्चाई है। ऐसे में राज्य की स्थिति क्या हैं? आप समझ सकते हैं, यहां खतियानधारी भी उतना ही त्रस्त हैं, जितना बिना खतियान वाले।