अपनी बात

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता जी, आखिर रिम्स के डाक्टर जेनेरिक दवाओं की जगह ब्रांडेड दवाएं ही क्यों लिखते हैं?

जब आप खुद या अपने परिवार के किसी सदस्य की इलाज के लिए रांची के राजेन्द्र इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइन्स जिसे छोटे से शब्द में रिम्स भी कहा जाता हैं, पहुंचेंगे। तब आपको संबंधित विभाग या डाक्टर से मिलने के लिए पांच रुपये की पर्ची कटानी पड़ेंगी। उस पर्ची में सबसे नीचे लिखा होता है – जेनेरिक दवा – उत्तम दवाई कम दाम स्वस्थ भारत की पहचान।

जिसे देख हर मरीज या उनके परिवारों का हृदय खिल उठता है कि वो अब ऐसे संस्थान में पहुंच चुका हैं, जहां उसे कम पैसे में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिलेंगी, पर क्या सच में ऐसा है या “हाथी के दांत दिखाने को और, और खाने के कुछ और” वाली लोकोक्ति यहां चरितार्थ हो रही है। विद्रोही24 को एक ऐसी ही पर्ची मिली है जो यहां “हाथी के दांत दिखाने को और, और खाने के कुछ और” वाली लोकोक्ति चरितार्थ कर रही है। इस समाचार में दी गई रिम्स की पर्ची को ध्यान से देखिये। एक 24 वर्षीय अमन को कौन सी दवा रिम्स के एक डाक्टर ने लिखी है।

रिम्स के एक चिकित्सक ने पर्ची पर तीन दवाएं लिखी हैं और ये सारी तीनों दवाएं ब्रांडेड हैं। एक मोर-एफ 5% लोशन जिसे इंटास फार्मास्युटिकल कंपनी बनाती हैं। दूसरी डूटामेक्स 0.5एमजी टेबलेट्स जिसे गलकेयर फार्मास्युटिकल और तीसरी दवा बायोटी फोर्ट जिसे टेलेन्ट इंडिया नामक कंपनी बनाती है। सवाल उठता है कि जब रिम्स के डाक्टरों को ब्रांडेड दवा ही लिखनी हैं, तो वे क्यों नहीं रिम्स के निदेशक को कहकर पांच रुपये की पर्ची के नीचे छपनेवाली इस पंक्ति को सदा के लिए मिटवा देते हैं – जेनेरिक दवा – उत्तम दवाई कम दाम स्वस्थ भारत की पहचान।

रिम्स के डाक्टर ये क्यों नहीं समझने की कोशिश करते कि रिम्स में ज्यादातर इलाज करानेवाले, वे ही लोग हैं, जो डाक्टरों को उनकी फीस तक नहीं दे सकते, इसलिए वे पांच रुपये की पर्ची पर अपना इलाज कराना और सस्ती दवा खरीदने की इच्छा रखते हैं, जब रिम्स में ऑलरेडी जेनेरिक दवाओं के बिक्री केन्द्र खुले ही हुए हैं तो इसका फायदा जनसामान्य को मिले, इसकी ओर ध्यान रिम्स के डाक्टरों का क्यों नहीं होता?

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता, स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव, रिम्स के निदेशक व अन्य स्वास्थ्य सेवा से जुड़े अधिकारियों को इसका संज्ञान तो लेना ही चाहिए, ताकि कोई डाक्टर दुबारा किसी को ब्रांडेड दवा न लिखें, कोई रोगी परेशान न हो।