अपनी बात

विधानसभा में CM हेमन्त की दहाड़ से सारे मीडियाकर्मी चारों खानें चित्त, किसी की मुंह से बकार तक नहीं निकली, आज भींगी बिल्ली बनकर सब CM हेमन्त के साथ क्रिकेट भी खेले

25 मार्च 2022। झारखण्ड विधानसभा के बजट सत्र का अंतिम दिन। राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन सदन में दहाड़ रहे हैं। वे सभी अखबारों, चैनलों व पोर्टलों की एक-एक कर क्लास ले रहे हैं। सभी को आइना दिखा रहे हैं। कसम से अगर उस दिन मैं विधानसभा में होता, तो उनसे मिलकर, उन्हें इस बात के लिए जरुर मुबारकबाद देता, कि उन्होंने सारे मीडियाकर्मियों की औकात बता दी, क्योंकि ये इसी के लायक हैं। अब सबसे पहले झारखण्ड विधानसभा में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का वो भाषण सुनिये, वे कह क्या रहे हैं?

कमाल की बात हैं, आपने सुना न, और अगर नहीं सुना तो लीजिये, मैं यहां पर उसे पंक्तिबद्ध कर देता हूं, पढ़ लीजिये। इनको ज्ञान देनेवाला, रास्ता दिखानेवाला एक षडयंत्र रचनेवाले लोग हैं। एक लोगों को दिग्भ्रमित करनेवाले लोग हैं। एक आदमी दूसरे चीजों में लोगों को व्यस्त करेंगे और अखबार, मीडिया, टीवी, उन बातों को जरुर प्रथम पृष्ठ पर छापता है। जहां दलों के अंदर मतभेद शुरु हो जाये। राज्य में आग लग जाये। हेमन्त सोरेन ने कहा खतियान के आधार पर स्थानीय नियोजन नहीं लगेगा।

अरे क्या बात करते हैं, 32 के आधार पर नही बनेगा। अब बताओ, 2005 भी है, 11 भी है, 65 भी हैं, ये जो आग लेकर घुम रहे हैं न, जगह-जगह व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाले लोग, जो हमारे वेब पोर्टल के महाराज-उस्ताद जो बैठे हैं, बाजार में माइक लेके खड़े हो जाते हैं। ये क्या जानता है, ये आंदोलनकारी है, डूप्लीकेट है, फर्जी है, दलाल है, …..। चार दिन माइक पकड़ लेने से फुटबॉल ग्राउंड में कंमेट्री देने से आप नेता नहीं बन जायेंगे।

मतलब सदन में मुख्यमंत्री मीडियाकर्मियों को खरी-खोटी सुना रहे थे। विधानसभा के प्रेस दीर्घा में राज्य के सभी बड़े अखबारों के मठाधीश उस भाषण को कवर कर रहे थे, बाहर में इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले इसे अपने चैनल के लिए अपने कैमरे में रिकार्डिंग कर रहे थे, पोर्टल वाले लाइभ में अपना दिमाग लगा रहे थे, पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से ये पूछ सकें कि आखिर उन पत्रकारों पर इतना गुस्सा वे क्यों करते हैं?

आखिर क्या गलती हुई कि उन्होंने विधानसभा में, सदन में पत्रकारों को खरी-खोटी सुना दी, जिसका तो अब रिकार्ड भी हैं, क्योंकि उनकी बातें चुनावी मैदान में नहीं, बल्कि सदन में कही गई हैं। सारे के सारे भींगी बिल्ली बने रहे, किसी ने चूं तक नहीं की। दूसरे दिन अखबारों में एक लाइन तक नहीं छपा, चैनलों में ये बातें दिखाई ही नहीं गई, पोर्टलों ने भी गजब का ढांप दिया, पर आज 28 मार्च को हमें कही से उड़ती हुई, ये विडियो मिल गई, जिस पर लिखना, मैंने उचित समझा।

आश्चर्य हैं कि जिन अखबारों, इलेक्ट्रानिक मीडिया व पोर्टलों को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सदन में खरी-खोटी सुनाई। वे ही पत्रकार आज रांची के खेलगांव में स्थित बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम में आयोजित मुख्यमंत्री एकादश बनाम पत्रकार एकादश मैत्री क्रिकेट मैच में सम्मिलित होकर दांत निपोड़ते हुए क्रिकेट भी खेले। फोटो आपके सामने हैं, जिसे आइपीआरडी झारखण्ड ने जारी किया है।

अब एक घटना याद करिये। हमें याद है कि रघुवर दास का शासनकाल था। रांची के मोराबादी मैदान में 15 नवम्बर को स्थापना दिवस मनाया जा रहा था। इसी बीच पारा टीचरों के आंदोलन के दौरान कई पत्रकार भी पुलिस के शिकार हो गये। उसी दिन प्रशासन और पत्रकारों के बीच क्रिकेट मैच भी था। जिसका बहिष्कार रांची प्रेस क्लब ने कर दिया था। उस मैच में एक पत्रकार भाग लिया, बाकी ने बहिष्कार कर दिया था. परिणाम क्या निकला? उक्त पत्रकार को रांची प्रेस क्लब से निलंबित कर दिया गया।

25 मार्च को तो सारे पत्रकार कौम को राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सदन में खरी-खोटी सुना दी और आज 28 मार्च को रांची प्रेस क्लब कर क्या रहा हैं, वो तो क्रिकेट मैच खेल रहा हैं, अरे थोड़ा हंस कर ही पूछ लेते प्रेस क्लब वालों कि मुख्यमंत्री जी, आखिर पत्रकारों से इतनी नाराजगी क्यों? अरे पूछोगे कैसे? पूछने के लिए भी मुख्यमंत्री से आपको जिगर चाहिए, आपके पास जिगर तो हैं नहीं, जिगर तो आपके प्रबंधकों ने कैद कर रखा हैं, क्योंकि वो जानता है कि बंदे को नौकरी चाहिए, बीवी-बच्चों का पेट जो उसे पालना है, ऐसे में सदन हो या सड़क, इनकी इज्जत तो ऐसी ही लूटनी हैं, तो इस बार सदन में लूट गई तो क्या हुआ, कौन सा उससे कुछ होने-जानेवाला हैं, पर जो इज्जतदार हैं, वो तो जानते है कि इज्जत क्या होती हैं और कैसे जाती है?

दुर्भाग्य देखिये, यहां एक से एक पत्रकारों के कथित हित में काम करनेवाले प्रेस के कई यूनियनें भी चलती हैं। रांची प्रेस क्लब भी हैं, पर किसी के मुख से सदन में दिये गये सीएम हेमन्त सोरेन को लेकर बकार तक नहीं हैं, सब ने होठ सील लिये हैं, क्योंकि सभी यही उधेड़बून में हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?