बधाई “दवाई दोस्त” आपने विपरीत परिस्थितियों में भी विभिन्न झंझावातों को सहते हुए सात वर्ष पूरे कर लिये
बधाई “दवाई दोस्त” आपने विपरीत परिस्थितियों में भी विभिन्न झंझावातों को सहते हुए सात वर्ष पूरे कर लिये। रांची के जनमानस को अपनी सेवाएं दी। कई बेरोजगारों को जो रोजगार के लिए भटक रहे थे, उन्हें अपने साथ जोड़कर, उनके माथे पर लगा बेरोजगारी के धब्बे को भी मिटा दिया। साथ ही जो लोग अपनी बीमारी में प्रतिदिन हजारों रुपये फूंक दिया करते थे, उनमें तथा उनके परिवारों में आशा का संचार कर दिया, बता दिया कि उनकी बीमारी ऐसी भी नहीं जिसके लिए हजारों या लाखों खर्च किये जाये।
मैं सोचता हूं कि आज से ठीक सात साल पहले रांची में ऐसी स्थिति थी क्या? उत्तर है – नहीं, पर ये क्या दवाई दोस्त ने तो इन सात वर्षों में रांची में निस्वार्थ भाव से अपनी 18 शाखाएं खोल ली, और सुनने में ये भी आ रहा है कि जल्द ही एक शाखा डोरंडा में खोल दी जायेगी, मतलब अब रांची में दवाई दोस्त की 19 शाखाएं हो जायेगी, जो मानवता की सेवा करेगी।
दवाई दोस्त की मानें तो उनकी संस्था हर महीने करीब 60,000 लोगों की मदद कर रही है और भविष्य में इसकी बढ़ने की भी संभावनाएं हैं। सबसे बड़ी बात है कि दवाई दोस्त ने रांची में बड़ी ही जल्दी लोगों के दिलों में जगह बना ली, अगर ऐसा नहीं होता तो 2021 में जब रिम्स में इस पर ताले लग रहे थे, तो जनता का सहयोग इसे नहीं मिलता।
हालांकि लोग बताते है कि रांची के एक निजी चैनल की गुंडागर्दी ने दवाई दोस्त के सेवा कार्यों में बाधाएं पहुंचाने की खूब कोशिश की, उस निजी चैनल ने गरीब मरीजों के पेट पर लात मारने की भी हर प्रकार से कोशिश की, जिसमें वो कहता था कि वो अपने मकसद में कामयाब हो रहा है, पर दवाई दोस्त के प्रति आस्था रखनेवाले मरीजों की दुआएं उसकी दुष्टता पर कही ज्यादा भारी थी, आज भी उन मरीजों की दुआएं दवाई दोस्त के साथ हैं, यह किसी से पूछने की भी जरुरत नहीं, उस चैनल को भी अब पता लग चुका है।
मैं स्वयं अपनी पत्नी और अपने लिए हर महीने ब्लड प्रेशर, डायबिटीज आदि की दवाएं यही से लेता हूं, जो एक महीने की दवा मात्र लगभग दो-ढाई सौ रुपये से ज्यादा की नहीं होती। जबकि इसके पूर्व में हमें हजारों रुपये खर्च करने पड़ते थे। चूंकि यह दुकान अब रांची के चप्पे-चप्पे में हैं, इसलिए मुझे दवा लेने में भी कहीं कोई दिक्कत नहीं होती, आराम से दवाई दोस्त दुकान जाता हूं और कुछ ही रुपयों में आराम से पति-पत्नी दोनों के लिए एक महीने की दवा खरीद लेता हूं।
दवा लेने के क्रम में कई ग्राहकों से जब मैंने बातचीत की, तब उनका कहना था कि निश्चय ही इसमें कोई दो मत नहीं कि हम गरीब मरीजों के लिए दवाई दोस्त ने एक बेहतर प्रयास किया हैं, जेनेरिक दवा की दुकान लाकर हर जगह खड़ा कर दिया, सरकारी दवा दुकानों या निजी दवा दुकानों के क्या हाल हैं, सब पता है, अब तो इसी दवाई दोस्त की दुकान को देखकर कई दवा दुकान ब्रांडेड दवा पर 17-18 प्रतिशत की छूट देने लगे हैं, लेकिन उसके बावजूद दवाई दोस्त की दवा उनसे सस्ती-अच्छी और विश्वसनीय होती है।
दवाई दोस्त में कार्यरत कर्मियों के स्वभाव भी अन्य दवा दुकानों से कही बेहतर है। बड़ी संजीदगी से दवा की पर्ची पर ध्यान देना, मुस्कुराते हुए सेवा प्रदान करना दवाई दोस्त नामक संस्था को चार चांद लगा देता है। मुझे आशा ही नहीं, विश्वास है कि दवाई दोस्त जिस प्रकार रांची में अपना सहयोग दे रहा हैं, ठीक उसी प्रकार झारखण्ड के और भी शहरों में अपना योगदान देगी, ताकि लोग वहां भी इसका बेहतर लाभ उठा सकें।