अपनी बात

न अपना प्रिंटिंग प्रेस, न रिपोर्टर, न कोई छायाकार और न ऑफिस स्टाफ फिर भी लाखों-करोड़ों में खेल रहे रांची के कई फंटूस पत्रकार

जी हां, यह शत प्रतिशत सत्य है। रांची में ऐसे कई फंटूस पत्रकार हैं, जिनके पास न तो कोई प्रिंटिंग प्रेस हैं, न ही इन्होंने कोई रिपोर्टर रखा हैं, न इनके पास कोई छायाकार हैं और न ही कोई ऑफिस स्टाफ, फिर भी ये फंटूस पत्रकार लाखों-करोड़ों में खेल रहे हैं, यही नहीं सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग से विज्ञापन भी प्राप्त कर रहे हैं।

विभागीय निदेशक अपने कक्ष में बिठाकर जैसे जन्माष्टमी में श्रीकृष्ण भक्त, भगवान कृष्ण को झूले झूलाते हैं, ठीक उसी प्रकार ये इन फंटूस पत्रकारों की मदद करते हैं, झूले झूलाते हैं, हर प्रकार की मनोकामना पूरी करते हैं। लेकिन जैसे ही इनके पास कोई खांटी ईमानदार पत्रकार पहुंचता हैं, तो लीजिये इनको भारत का संविधान के हर पन्ने में लिखी बातें तक याद आ जाती हैं।

लेकिन इन फंटूसों की खातिरदारी की बात करें तो दिल क्या ये अपनी आत्मा तक इनके कदमों के आगे बिछा देते हैं, पीछे से सत्ता में शामिल लोग भी इन फंटूसों की मदद करते हैं या विभागीय निदेशक पर दबाव बनाते है कि संबंधित फंटूसों की दिल खोलकर मदद की जाये। सूत्र बताते हैं कि मात्र एक कमरे में दो कंप्यूटर और एक पेजिनेटर के सहारे रांची से दर्जनों अखबार प्रकाशित हो रहे हैं।

इन्हें संपादक, उप-संपादक, संवाददाता, छायाकार की आवश्यकता ही नहीं हैं। एक पेजिनेटर द्वारा ही इंटरनेट से खबरें चुराकर पेज पर कट-पेस्ट कर दिया जाता है। एक पेजिनेटर द्वारा ही चार-पांच अखबारों के लिए पेज बना दिया जाता है। आश्चर्य इस बात का भी है कि कई अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित खबरें एक जैसी ही होती हैं। सिर्फ हेड मास्क अलग होता है।

खबार के मालिक सरकार से विज्ञापन के एवज में अच्छी खासी रकम ऐंठ लेते हैं। वहीं, दूसरी तरफ अपने यहां कार्यरत कर्मियों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतनमान का भी भुगतान नहीं करते। भविष्य निधि, ईएसआई और अन्य सुविधाएं तो बहुत दूर की बात है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि अखबार के मालिकों द्वारा जारी इस लूट की जानकारी संबंधित विभागों को होते हुए भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की जाती।

सारे विभागीय अधिकारी अपना होंठ और आंखें सील लेते हैं, जबकि विभागीय अधिकारियों को इतना अधिकार है कि ऐसे अखबार जो नियमों का पालन नहीं करते, उनके अखबारों पर प्रतिबंध लगाकर, उनसे वे सारे पैसे वसूल लें, जो उन्होंने सरकार से झूठ बोलकर अथवा धोखे देकर लिये हैं। रांची में कई ऐसे अखबार हैं, जो केवल पेजिनेटर के सहारे छप तो जाते हैं, और इसे छापकर केवल सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग कार्यालय तथा उन विभागों में दे दिये जाते हैं, जिनसे विज्ञापन वसूले जाते हैं, जबकि ये दावे यह भी करते हैं कि उनके अखबार की प्रतिदिन हजारों-लाखों प्रतियां छापी जा रही हैं, जो पूर्णतः असत्य होती हैं।

One thought on “न अपना प्रिंटिंग प्रेस, न रिपोर्टर, न कोई छायाकार और न ऑफिस स्टाफ फिर भी लाखों-करोड़ों में खेल रहे रांची के कई फंटूस पत्रकार

  • अमित सिंह

    कुछ नहीं होगा सर ॥ चोर चोर मौसेरे भाई जो ठहरे ॥

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