क्या नवनियुक्त पदाधिकारियों के गले में पट्टा पहनाना, नियुक्ति पत्र थमाना, CM का काम है, CM हेमन्त नौकरी देकर उन पर ऐहसान कर रहे हैं
गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग अंतर्गत राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला, झारखंड हेतु चयनित मात्र 93 नवनियुक्त सहायक निदेशक/वरीय वैज्ञानिक पदाधिकारियों एवं वैज्ञानिक सहायकों को राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने एक विशेष समारोह में नियुक्ति पत्र बांटा, भाषण दिये और अपनी पीठ थपथपाई। इस कार्यक्रम में राज्य के वरीय पदाधिकारियों का दल भी मौजूद था और उन अधिकारियों ने भी जमकर अपनी बातों के माध्यम से नवनियुक्त पदाधिकारियों को घूंटी पिलाई।
अब सवाल उठता है कि क्या राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को बस यही सब काम करने को रह गया है? क्या मुख्यमंत्री का काम नियुक्ति पत्र बांटना है? क्या मुख्यमंत्री ने इन नव-नियुक्त पदाधिकारियों को नियुक्ति पत्र देकर ऐहसान किया है? और अगर ऐसा हैं तो फिर इस कार्यक्रम में मौजूद आईएएस/आईपीएस भी ये स्वीकार करें कि उन्हें जो पद मिला हैं, वो उनके काबिल होने की वजह से नहीं, बल्कि भारत सरकार ने उन्हें पद देकर ऐहसान किया है, जिसकी वजह से उनके परिवार के बच्चों की जिंदगी बसर हो रही है।
मैं तो सीधे जानता हूं कि जिस भी व्यक्ति या संस्थान या सरकारी विभाग चाहे वो केन्द्रीय हो या राजकीय, जिसे भी मानव संसाधन की आवश्यकता होती हैं, वो इसके लिए विभिन्न माध्यमों से विज्ञापन निकालकर अपनी सेवा के लिए आवेदन आमंत्रित करता हैं, जो लोग उस कार्य के काबिल हैं, वे आवेदन को समायोजित करते हैं, उसके बाद एक प्रक्रिया आयोजित होती हैं, जिसके माध्यम से रोजगार चाहनेवाले व्यक्ति को रोजगार दे दी जाती हैं, जिससे रोजगार देनेवाले और लेनेवाले दोनों को फायदा होता हैं, ऐसा नहीं कि इसमें एक का फायदा और दूसरे का नुकसान होता है।
ऐसे में निश्चित ही राज्य का गृह विभाग विज्ञापन निकाला होगा, ये युवा जो आज नियुक्ति पत्र, पट्टा पहनकर ग्रहण कर रहे हैं, इसके लिए कड़ी मेहनत की होगी, और आज वे समायोजित हो रहे हैं, ऐसे में सरकार ने क्या किया, ऐसे ही बुलाकर 93 लोगों को मुफ्त में नियुक्ति पत्र बांट दिया क्या? सवाल तो उन आईएएस व आईपीएस अधिकारियों से भी हैं कि वे जब आईएएस/आईपीएस बने थे, और उसके बाद जब उन्हें पद प्राप्त हुआ था, तो उन्हें भी इसी प्रकार नियुक्ति पत्र हाथ में थमाया गया था क्या?
आखिर ये सब नौटंकी से आप क्या दिखलाना चाहते है? आश्चर्य तो यह भी हैं कि नियुक्ति पत्र लेने के लिए लोग अपनी कड़ी मेहनत को अपने घर के ताखा पर रख, मंच तक पहुंच जाते हैं, प्रतिकार भी नहीं करते, पूछते भी नहीं कि नियुक्ति पत्र देकर मुख्यमंत्री उस पर ऐहसान कर रहे हैं क्या और अगर ऐहसान कर रहे हैं तो उस ऐहसान के बारे में भी मंच से भाषण के दौरान कुछ दो शब्द कहें, लेकिन इतनी हिम्मत इनमें होती ही नहीं, क्योंकि फिर नियुक्ति पत्र के बाद इन्हें ही औकात बता दिया जायेगा।