अपनी बात

मांडर की जनता ने अदालत द्वारा सजा सुनाने के बाद भी बंधु तिर्की को ही अपना हीरो माना, बेटी शिल्पी को MLA बनाया

मांडर विधानसभा चुनाव परिणाम स्पष्ट रुप से कहता है कि न तो ये राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की जीत है और न ही विपक्ष के धाकड़ नेता बाबू लाल मरांडी की हार। न तो ये कांग्रेस की जीत है और न ही भाजपा की हार। न तो ये महागठबंधन की जीत है और न ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार। न तो ये शिल्पी नेहा तिर्की की जीत है और न ही गंगोत्री कुजूर की हार।

इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि न तो इस चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी थे और न ही क्षेत्रीय मुद्दे। यह चुनाव शुद्ध रुप से बंधु तिर्की के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द ही घुमता रहा, हम निःसंदेह कह सकते हैं कि यह विशुद्ध रुप से बंधु तिर्की के राजनीतिक कद की जीत है, न कि किसी अन्य को हक है कि इस जीत का श्रेय खुद ले लें।

चूंकि बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रही थी, इसलिए इस जीत का श्रेय कांग्रेस भले उठा लें, नहीं तो शिल्पी नेहा तिर्की अगर स्वतंत्र रुप से भी लड़ती तो वही जीतती, क्योंकि शिल्पी ने उतने ही वोट से जीत हासिल की हैं, जितनी वोट लगभग पूर्व में बंधु तिर्की को प्राप्त हुए थे, यह कोई भी देख सकता है। ऐसे भी बंधु तिर्की जन-साधारण के नेता है, यह कोई भी महसूस कर सकता है। सामान्य जनता के लिए संघर्ष करना उनके खून में शामिल है, जिसका कारण ही यह जीत है।

ऐसे भी आप झारखण्ड में कई ऐसे विधायक/सांसद देखेंगे, जो जन-सामान्य के नेता माने जाते थे/हैं। उन्हीं में से कुछ नेता जैसे का. महेन्द्र प्रसाद सिंह, का. ए के राय का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है, जबकि वे आज दुनिया में जीवित नहीं हैं। वर्तमान में जीवितों में का. विनोद कुमार सिंह का भी नाम आप ले सकते हैं।

इसी तरह आप को पसंद आये या नहीं आये, बंधु तिर्की और सीपी सिंह जैसे नेता के नाम भी लोग आदर से लेते हैं, लोगों का कहना है कि एक सामान्य व्यक्ति या बच्चा भी इनके दरवाजे पर चला जाये, तो उनके साथ ये कभी रुखा व्यवहार नहीं करते। ऐसे में, ऐसे व्यक्तित्व को हरा पाना थोड़ा मुश्किल होता है या किन्ही परिस्थितियों में वे चुनाव नहीं लड़ पाये और उन्होंने किसी अन्य को आशीर्वाद प्रदान कर दिया, तो जनता उनके साथ हो लेती हैं, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं होता।

अब जैसे देख लीजिये, अदालत ने बंधु तिर्की को एक मामले में दोषी ठहरा दिया, सजा सुना दी, बंधु तिर्की की विधायकी खत्म हो गई, लेकिन बंधु तिर्की तो जनता की अदालत में आज भी हीरो बने हुए हैं, आप इसे कैसे झूठला सकते हैं? एक दृष्टांत देखिये, मैं जहां रहता हूं, वहां मांडर विधानसभा क्षेत्र की कई महिला-पुरुष सब्जियां बेचने आया करती/करते हैं।

22 जून को वो खुद हमसे कह रहे हैं, जितना सब्जी लेना है, आज ही ले लीजिये, कल यानी 23 जून को हमलोग नहीं आयेंगे। हमने पूछा क्यों? सब ने कहा कि हमलोगों के तरफ कल वोट है। वोट तो देना जरुरी है। वोट नहीं देंगे तो गलत हो जायेगा न। फिर हमने पूछा कि किसको वोट देना है, जवाब मिला, वही बंधु तिर्की को। हमने  कहा कि बंधु तिर्की तो खड़ा नहीं है। सभी ने कहा अरे वो न, नहीं खड़ा है। उसकी बेटी खड़ी है न, शिल्पी नेहा तिर्की, उसी को वोट देंगे, क्योंकि बंधु तिर्की बड़ा अच्छा आदमी है, वो गरीब आदमी की खुब मदद करता है।

अब लीजिये, वो गरीब सब्जी बेचनेवाला/बेचनेवाली के दिमाग में आप कैसे ये बात घुसाइयेगा कि तुम बंधु तिर्की को वोट मत करो, उसके नाम पर वोट मत करो, उसकी बेटी को वोट मत करो। बंधु तिर्की तो बहुत पहले से उन गरीबों के दिमाग में घुसा हुआ है। यही कारण है कि बंधु जब झारखण्ड विकास मोर्चा से लड़े तब भी जीते, चाहे अन्य दलों के नाम से लड़े तब भी जीते, चाहे कोई बंधु तिर्की को कितना भी बदनाम कर दें या अदालत उसे सजा ही क्यों न सुना दें, बंधु तिर्की को क्या फर्क पड़ता है?