अभिनन्दन “प्रभात खबर” आपने आजादी के इस अमृत महोत्सव काल में वो कर दिया, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की
ऐसे तो देश में राष्ट्रीय स्तर के कई समाचार पत्र हैं, अपने झारखण्ड में उसकी शाखाएं भी हैं, जिसमें संपादक स्तर के कई बुद्धिजीवियों की जमातें भी होती हैं, जो समय-समय पर अपनी बुद्धि का बेहतर इस्तेमाल करते हुए, देश/राज्य के नागरिकों का ज्ञानवर्द्धन व मार्गदर्शन करती रहती हैं, पर कुछ मामलों में आज भी क्षेत्रीय स्तर का अखबार “प्रभात खबर” इन सारे राष्ट्रीय अखबारों पर भारी पड़ जाता है।
जैसे इस बार भी भारी पड़ गया, जब “प्रभात खबर” ने अपने स्तर पर भारतीय स्वतंत्रता दिवस के 75वें वर्ष के इस काल-खण्ड में, आजादी के अमृत महोत्सव काल में उसने अपने अखबारों में वो भी प्रथम पृष्ठ पर बिहार-बंगाल व झारखण्ड के महान स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना शुरु कर दिया। वह भी जैसे-तैसे नहीं, बल्कि सम्मान के साथ, प्रथम पृष्ठ पर, जहां मुख्य समाचार होते है, उस स्थान पर, स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान दिया।
जिसके साक्षी बने हैं, बिहार-झारखण्ड व बंगाल के वे पाठक जो “प्रभात खबर” से किसी न किसी रुप में जुड़े हैं। हमें लगता है कि “प्रभात खबर” की यही सोच, उसे अन्य अखबारों से अलग कर देता है। हमें याद है कि जैसे एक समय पटना से प्रकाशित अखबार “आर्यावर्त” बिहार का पर्याय हुआ करता था, आज झारखण्ड के रांची से निकलनेवाला यह अखबार झारखण्ड का पर्याय हैं और छोटे से रांची से निकलकर यह राष्ट्रीय स्तर का अखबार बन चुका है, और ऐसे-ऐसे अखबारों को टक्कर दे रहा हैं, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
जब हरिवंश (वर्तमान में राज्यसभा के उप-सभापति), प्रभात खबर के प्रधान संपादक हुआ करते थे, और रांची में बैठा करते थे, तब कभी-कभार “प्रभात खबर” मेरा जाना हुआ करता था, उस वक्त वहां कार्यरत कई लोगों से मेरे मधुर संबंध थे, पर आज वैसा नहीं हैं। लेकिन जो सच हैं, वो सच है, उसे आप संबंधों की नजरियों से नहीं देख सकते हैं। उस समय भी मैं उन्हें इस बात के लिए दिल से बधाई दे दिया करता था कि उनका अखबार औरों से अलग हुआ करता है और कुछ मामलों में तो इतना विशिष्ट हैं, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है।
फिलहाल आजादी के इस अमृत महोत्सव को ले लीजिये, जहां कोई अखबार एक लाइन लिखने को तैयार नहीं हैं, इस अखबार ने गांव-कस्बों, विभिन्न मुहल्लों से स्वतंत्रता की क्रांति का अलख जगानेवाले स्वतंत्रता सेनानियों की सुध ली। इस संस्थान में काम करनेवाले संवाददाताओं से लेकर संपादकों ने कड़ी मेहनत की और नतीजा सामने हैं। पिछले कई दिनों से आप अगर बंगाल, बिहार या झारखण्ड के किसी भी कोने में रहते हैं तो आजकल प्रभात खबर देखिये, आप देखकर दंग रह जायेंगे, इस अखबार ने कैसे स्वतंत्रता सेनानियों को इस आजादी के अमृत काल में सम्मान दिया हैं, आप बिना अभिभूत हुए नहीं रहेंगे।
शायद यही कारण रहा कि आज मैंने सुबह-सुबह रांची के प्रभात खबर में कार्यरत कारपोरेट एडिटर विनय भूषण से बातचीत की और पूछा कि आखिर ये सब कैसे हुआ? तब उनका कहना था कि ये सब इसी साल दो जून से प्रारम्भ हुआ हैं, जो अनवरत् चल रहा है। विनय भूषण ने बताया कि इसी साल के मई में प्रभात खबर के प्रधान सम्पादक आशुतोष चतुर्वेदी के नेतृत्व में एक मीटिंग आयोजित हुई थी, जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि कुछ विशेष इस बार होना चाहिए और फिर जो हैं, सो सामने हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें, कोई अखबार अगर श्रेष्ठ हैं तो उसके पीछे, कोई न कोई चेतना अवश्य हैं, आपकी वही चेतना आपको श्रेष्ठता प्रदान करेगी, आपको और से अलग कर देगी और लोग आपसे जुड़ते चले जायेंगे, फिलहाल “प्रभात खबर” ने ऐसी लकीरें खींच दी हैं कि कम से कम बंगाल, बिहार व झारखण्ड के कथित राष्ट्रीय समाचार पत्र अगर नकल भी करना शुरु करें तो उस स्थिति में नहीं होंगे, जिस स्थिति में “प्रभात खबर” हैं, यानी सभी के दिल में बस चुका है।
प्रभात खबर की आपके कर्म से तारीफ सुन मन प्रसन्न हुआ। कभी मैं भी वहां काम करता था, इसलिए और भी अच्छा लगा।
कर्म नहीं कलम लिखा समझा जाए।