समय पूर्व ही मानसून सत्र समाप्त, दोषी कौन सत्तापक्ष या विपक्ष? मीडिया भी अपने गिरेबां में झांके, क्या उसने सही भूमिका निभाई
याद रखियेगा राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी सदन चलाने की सर्वाधिक जिम्मेदारी विपक्ष की नहीं, बल्कि सत्तापक्ष की होती है। उसके बाद ही स्पीकर और अंत में थोड़ा-बहुत विपक्ष की भूमिका होती है, अगर विपक्ष क्रुद्ध हैं, मानने को तैयार नहीं हैं, तो उसे मनाने और उसे सदन चलाने में सहयोग देने के लिए वातावरण तैयार करना/कराना भी सत्तापक्ष का ही काम हैं, न कि अपना काम निकल जाये और विपक्ष जिस मुद्दों को लेकर हंगामा खड़ा कर रहा हैं, उसी हंगामें का बहाना बनाकर सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने का मौका ढूंढ लिया जाये।
आप को चिन्तन करना चाहिए कि आप ने ही छह दिनों का यह मॉनसून सत्र बुलवाया और छह दिन भी आप सदन में बैठ नहीं सकें, क्या यह राज्य की जनता के लिए दुर्भाग्य नहीं हैं। आज इन्हीं सारे प्रकरणों पर मेरी लंबी बातें राज्य के भाकपा माले विधायक दल के नेता विनोद कुमार सिंह से हुई। हमें लगता है कि वे इस घटना से बहुत ही दुखी हैं, दुखी तो मैं भी हूं और राज्य की जनता भी हैं, क्योंकि आज की घटना से झारखण्ड का दुर्भाग्य हमें साफ दिखाई पड़ रहा है।
उधर जनता सुखाड़-अकाल से परेशान और इधर सदन में प्रश्नों का सुखाड़-अकाल
विनोद कुमार सिंह ने विद्रोही24 से साफ कहा कि एक तरह से देखा जाये तो जैसे बारिश नहीं होने के कारण राज्य की जनता सुखाड़ और अकाल को झेल रही है, ठीक उसी प्रकार हंगामें के कारण और विधानसभा को समय से पूर्व अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिये जाने से सदन में भी जनहित के सवालों का सुखाड़ और अकाल पड़ गया, इससे बड़ा दुर्भाग्य यहां की जनता के लिए दुसरा और कुछ हो भी नहीं सकता।
विनोद कुमार सिंह ने तो साफ कहा कि एक तरह से देखा जाये तो मानसूत्र सत्र के पहले दिन तो सभी जानते है कि शोक प्रस्ताव आदि पेश कर सदन स्थगित कर दिया जाता है, वहीं यहां भी हुआ। दूसरे और तीसरे दिन तो हंगामा होता रहा और सांकेतिक तौर पर सदन कुछ देर चला, चौथे दिन चूंकि सदन से भाजपा के लोग वाक् आउट कर गये थे, तो सदन ठीक-ठाक चला, पर पांचवे दिन ही सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया जाना उन्हें समझ नहीं आया। सच पूछा जाये तो एक दिन छोड़कर सदन तो चला नहीं, हंगामा ही हंगामा होता रहा और इस हंगामें में सरकार ने अपने सारे काम निकाल लिये और जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया।
आखिर इतनी भी जल्दी क्या थी सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की – विनोद
विनोद कुमार सिंह का कहना था कि जब स्पीकर ने मानसून सत्र के चौथे दिन भाजपा के चार विधायकों को निलंबित कर दिया था और फिर सदन चलाया। सदन चली भी, क्योंकि भाजपा के विधायक वाक् आउट कर गये थे, फिर आज भी उसी तरह सदन चलाया जा सकता था, लेकिन हुआ क्या? आपने चारों विधायकों के निलंबन वापस भी ले लिये, उसके बाद भी हंगामा हुआ और सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित भी कर दिया। क्या स्पीकर उसी प्रकार का फिर निर्णय लेकर या उनके पास कई प्रकार की शक्तियां हैं, उसका इस्तेमाल कर छह दिनों तक सदन नहीं चला सकते थे, आखिर इतनी जल्दी भी क्या थी, सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की।
आज भी पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी का कार्यकाल लोग सम्मानपूर्वक याद करते हैं
विनोद कुमार सिंह ने कहा कि आज भी जो लोग कहते हैं, वो गलत नहीं कहते कि झारखण्ड निर्माण के बाद, झारखण्ड के प्रथम विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के समय में राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी और तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष स्टीफन मरांडी, तत्कालीन भाकपा माले विधायक दल के नेता महेन्द्र प्रसाद सिंह आदि नेताओं ने झारखण्ड विधानसभा की गरिमा को बढ़ाते हुए जो लंबी लाइनें खींची हैं, उसके आस-पास भी उसके बाद की विधानसभा नहीं पहुंच सकीं, उस गरिमा के आगे उससे बड़ी लंबी लाइन खींचने की तो बात ही मत कीजिये।
विनोद कुमार सिंह ने यह भी कहा कि यह देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा हैं। स्वतंत्रता की अमृतकाल में हैं, पर उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि इस अमृतवर्ष में सदन की गरिमा गिरी है, सारी संवैधानिक संस्थाओं से जनता का विश्वास टूटा है, जिन लोगों ने स्वतंत्रता के बाद देश और राज्य की बेहतर परिकल्पना की थी, उनके सपनों पर कुठाराघात हुआ हैं।
सदन की रिपोर्टिंग जैसी मीडिया को करनी चाहिए, मीडिया ने नहीं किया, हंगामे को ही पत्रकारिता धर्म समझ लिया
विनोद कुमार सिंह से जब विद्रोही 24 ने चल रहे सदन और उसमें मीडिया की भूमिका पर सवाल पूछे तो उनका कहना था कि सच पूछिये तो वे चैनल-पोर्टल नहीं दिखते, क्योंकि उसमें जनता कही दिखती ही नहीं। जैसे झारखण्ड विधानसभा का ही ले लीजिये, एक ही दिन सदन चला, उसमें कुछ प्रश्न आये, क्या बता सकते है कि किस चैनल व पोर्टल या अखबारों ने उन समाचारों को प्राथमिकता दी?
प्राथमिकता किसे मिली, तो जो सदन छोड़कर बाहर में हंगामा कर रहे थे। उलूल-जुलूल हरकतें कर रहे थे, जिन प्रश्नों का सदन से कोई मतलब ही नहीं था, उन प्रश्नों के उत्तर का डिमांड ज्यादा हो रहा था, ऐसे में गिरावट तो सभी जगह है, किसे क्या कहा जाये, मरना तो जनता को हैं, क्योंकि उसे हम जनप्रतिनिधियों पर, पत्रकारों पर इस सदन पर विश्वास हैं, पर हर कोई अपने दिल पर हाथ रखकर कहें कि क्या इस मानसून सत्र में अपने कार्यों से न्याय किया हैं? क्योंकि जनता के पास तो सभी को जाना है।
सदन के प्रति मीडिया भी जिम्मेवार होना सीखें, तभी उनका भी भला होगा
विनोद कुमार सिंह ने सही ही कहा, मैं आज ही एक पोर्टल देख रहा था, स्क्रिप्ट धुआंधार तैयार थी, बोलनेवाले ने भी गजब का डॉयलॉग मारा, कह रहा था कि राज सिन्हा ने स्पीकर की पैर पकड़ ली, स्पीकर ने भी सभी के अभिवादन को स्वीकारा, इससे माननीयों में एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना देखते बनी, सदन में विश्वास जगा, लेकिन वहीं पोर्टल-चैनल ये बताने में नाकामयाब रहा कि आखिर इतना होने के बाद भी सदन समय से पूर्व अनिश्चितकाल के लिए कैसे स्थगित हो गया?
यही हाल अखबारों का था, अखबारों में भगवाधारी भाजपाई विधायक नजर आ रहे थे, सब्जी की टोकरी लेकर विधानसभा पहुंची एक भाजपा की विधायक दिखाई दे रही थी, सदन के बाहर डमी सदन के समाचार को प्राथमिकता दे दी गई, आखिर ये सब समाचारों की प्राथमिकता हो जायेंगी तो सदन के प्रति कितने मीडियाकर्मी जिम्मेवार हैं, समझ लीजिये। इसलिए चिन्तन तो सभी को करना हैं कि झारखण्ड विधानसभा की मर्यादा को कहां ले जाना है?