हरिवंश के लिए अग्नि-परीक्षा, उपसभापति पद छोड़ेंगे या बने रहेंगे, चरित्र-शुचिता की इस राजनीतिक परीक्षा में क्या सफल होंगे हरिवंश?
जदयू अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा है कि हरिवंश ने उन्हें बताया है कि वह नीतीश कुमार के साथ है और आगे भी रहेंगे, ललन सिंह ने कहा वह (हरिवंश) एकमात्र सांसद थे, जो मंगलवार को बैठक में नहीं आये थे। हमने उनसे फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार उन्हें सार्वजनिक जीवन में लाएं हैं, ऐसे में वह नीतीश कुमार के साथ है और उनके साथ रहेंगे।
अब सवाल उठता है कि जब ललन सिंह इतने दावे के साथ, ये बात संवाददाताओं से कह दिये, तो फिर इस संवाद के अनुसार तो हरिवंश को राज्यसभा के उप-सभापति पद से ईमानदारी पूर्वक त्याग पत्र दे देना चाहिए, और अगर नहीं दे रहे हैं, तो उनके खिलाफ जदयू को अनुशासनात्मक कार्रवाई करना चाहिए, जैसा कि एक समय पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी ने किया था।
या, हरिवंश किसी ज्योतिष से सलाह ले रहे हैं कि उप-सभापति पद से उन्हें किस तिथि को इस्तीफा दे देना चाहिए, भाई दो दिन तो बीत गये, नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू को एनडीए से अलग हुए। नैतिकता तो यही कहती है कि अगर नीतीश ही हरिवंश को सार्वजनिक जीवन में लाएं तो फिर जब नीतीश ही एनडीए में नहीं, तो फिर हरिवंश एनडीए की ओर से मिली कुर्सी पर अभी तक क्यों कब्जा जमाये हुए हैं।
हरिवंश को नहीं पता? कि जिंदगी उनकी फिर परीक्षा ले रही हैं? ये परीक्षा कथनी और करनी की है? ये परीक्षा पत्रकारिता के मूल्यों की है? ये परीक्षा उन मूल्यों की भी हैं, जिसको लेकर वे काफी लिखते रहे हैं और हाल ही के दिनों में दैनिक भास्कर के नजरिया कॉलम में पिछले नौ अगस्त को भी दिखी, जिसका शीर्षक है – ‘हाल की कुछ खबरें समाज की सेहत बताने के साथ गंभीर सवाल भी पूछती हैं’ और नीचे लिखा है – ‘ये लेखक के अपने विचार है’।
हां जी, मैं भी कहता हूं कि ये लेखक के अपने विचार है, पर क्या लेखक इन्हीं बातों पर खुद अमल करते हैं, अगर अमल करते हैं तो ठीक हैं, नहीं तो साफ है कि कथनी-करनी में अंतर है। आज उनकी राजनीतिक सेहत को लेकर, देश की जनता हरिवंश की ओर देख रही हैं कि वे क्या फैसले लेते हैं? ऐसे तो वे यह भी कह सकते है कि वे संवैधानिक पद पर हैं, और वे उप-सभापति पद पर बने रहेंगे, कोई उन्हें चुनौती भी नहीं दे सकता, लेकिन जरा फिर दिमाग पर जोर डालिये कि उस संवाद का क्या होगा? जो ललन सिंह ने संवाददाताओं के बीच कल कहा कि – ‘नीतीश कुमार उन्हें सार्वजनिक जीवन में लाएं हैं, ऐसे में वह नीतीश कुमार के साथ है और उनके साथ रहेंगे’।
ऐसे कई समय आये हैं, जिसमें हरिवंश की परीक्षा हो रही थी, जिसमें हरिवंश अनुतीर्ण हुए, उनके कई साथियों ने उन पर अंगूलियां उठा दी, एक मौका था -कृषि कानून का राज्यसभा से पास कराना, इसी प्रकार कई मौके आए और अब शायद ये अंतिम मौका हैं, इसके बाद कोई पूछने भी नहीं जायेगा कि हरिवंश, आप है क्या? क्योंकि सभी लोग जान चुके होंगे,।
ऐसे में सर्वाधिक दुख मुझे हुआ है, यह संवाद सुनकर कि हरिवंश को सार्वजनिक जीवन में लानेवाले नीतीश है, जबकि मुझे अच्छी तरह पता है कि हरिवंश को सार्वजनिक जीवन का स्वाद चखानेवाले तो बलिया के ही एक नेता थे – चंद्रशेखर, अगर वे पद को लेकर, चंद्रशेखर को ही भूल जाये तो बात ही अलग है। हमें लगता है कि जिस सिताब दियारा की वो बातें करते हैं, वो सिताब दियारा ही उन्हें सार्वजनिक जीवन में आना है इसका, स्वाद चखा दिया होगा।
सार्वजनिक जीवन में तो हरिवंश तभी आ गये थे, जब वे प्रभात खबर जैसे छोटे अखबार को अपने प्रतिभा के बल पर बड़े-बड़े राष्ट्रीय अखबारों के सामने लाकर खड़ा कर दिया, आज भी मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि प्रभात खबर में जो लोग आज सीना तानकर खड़ें/बैंठे हैं, जो आज लहलहाती फसलें काट रहे हैं, वो सिर्फ और सिर्फ हरिवंश की ही देन है, पर आपने तो अपना जीवन ही एक ऐसे व्यक्ति के नाम कर दिया, जो किसी भी प्रकार से एक आदमी कहलाने लायक नहीं हैं। आज जनता उसे पता नहीं क्या-क्या कहकर संबोधित कर रही है, ज्यादा जानकारी के लिए अपने पीए/पीएस से ही पूछ लीजिये, वो जरुर बतायेगा। और, अंत में जैसे सारे देश की जनता आपके फैसले का इंतजार कर रही है, उस देश की जनता में मैं भी मामूली आदमी शामिल हूं।
सुविधानुसार पाला बदलने वाले नेता के अनुयायी भी उन्हीं के तरह के होंगे।