अपनी बात

नागरमल को चमकाने के चक्कर में भगत सिंह और उनके चाचा अजीत सिंह के बारे में महाझूठ परोस डाला प्रभात खबर ने

रांची से प्रकाशित प्रभात खबर, इन दिनों 75वीं स्वतंत्रता दिवस को लेकर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अमृत महोत्सव काल में वह बिहार-बंगाल-झारखण्ड के स्वतंत्रता सेनानियों के कीर्तियों को आम जनता के बीच रख रहा है, पर इन्हीं कीर्तियों व स्वतंत्रता सेनानियों को महिमामंडित करने के चक्कर में जनता के बीच वह झूठ भी परोस दे रहा है, जो आनेवाले समय के लिए, प्रभात खबर के पाठकों के लिए घातक है।

इतना घातक की आनेवाले समय में प्रभात खबर के पाठक, खुद को माफ नहीं कर पायेंगे, क्योंकि वो जो पढ़ेंगे, वहीं अपने बच्चों को, आनेवाली पीढ़ी को पढ़ायेंगे, जो पीढ़ी पढ़ा-लिखा होने के बावजूद मूर्ख बनी रहेगी। जैसे – आज का ही रांची से प्रकाशित प्रभात खबर उठा लीजिये। अब उसका प्रथम पृष्ठ देखिये। आज अभिषेक रॉय की प्रभात खबर ने रिपोर्ट छापी है। यह रिपोर्ट अभिषेक रॉय के अनुसार ‘नागरमल पर शोधकर्ता सुधीर लाल की जुबानी पूरी कहानी’ लिखी गई है। हेडिंग है – ‘नागरमल ने मौलाना आजाद के साथ मिलकर चलाया आंदोलन’।

अब इसी आलेख के पांचवे कॉलम में जाकर इसे पढ़िये – “नागरमल मोदी और राजेंद्र प्रसाद ने टाना भगतों से मुलाकात की और उन्हें कांग्रेस के मंच से जुड़कर गांधीजी के अहिंसा के मार्ग पर चलने का आग्रह किया। इसके बाद से टाना भगत और नागरमल मोदी पूरे छोटानागपुर में आदिवासी संगठनों को असहयोग आंदोलन से जोड़ने लगे। इसकी रिपोर्ट डीएसपी सीआइडी ने रांची डीसी को भेजी (दिल्ली नेशनल अर्काइव में रिपोर्ट मौजूद है)। इसके आधार पर नागरमल को गिरफ्तार कर लिया गया और ढाई वर्ष की सजा के साथ 100 रुपये का दंड लगाया गया। जेल से निकलने के बाद नागरमल नजरबंद रहने लगे। इसके बाद 1930 में ‘नमक सत्याग्रह आंदोलन’ का और 1932 में ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ का नेतृत्व किया।

इस बीच नागरमल दोबारा गिरफ्तार हुए और उन्हें डेढ़ वर्ष की सजा हुई। पहले केंद्रीय कारागार रांची में रखा गया, फिर हजारीबाग और फिर सजा पूरी करने के लिए पटना जेल भेज दिया गया। जेल में नागरमल की मुलाकात भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह से हुई। बम बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले खास कपड़े का लाइसेंस नागरमल के पास ही था। इस कपड़े को गुप्त रूप से भगत सिंह तक पहुंचाया गया। इन्हीं कपड़ों से बम तैयार कर भगत सिंह ने बम कांड किया था और वेष बदलकर कोलकाता पहुंचे थे”।

सबसे पहले तो प्रभात खबर को अपना इतिहास-भूगोल ठीक कर लेना चाहिए। सविनय अवज्ञा आंदोलन 1932 में नहीं, बल्कि 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक चला था। अब प्रभात खबर के महान संपादकों/शोधकर्ताओं से सवाल। आपने खुद लिखा है कि नागरमल ने 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया फिर दुबारा गिरफ्तार हुए, डेढ़ साल की सजा हुई और इसी दौरान, नागरमल कभी रांची तो कभी हजारीबाग और फिर सजा पूरा करने के लिए उन्हें पटना भेज दिया गया, और इसी दौरान नागरमल की मुलाकात भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह से हुई तो फिर आपने ये क्यों नहीं बताया कि अजीत सिंह की नागरमल मोदी से किस जेल में मुलाकात हुई, वो कौन जेल था – पटना, हजारीबाग या रांची जेल? दरअसल सच्चाई यह है कि अजीत सिंह की मुलाकात कभी नागरमल से हुई ही नहीं तो आप बतायेंगे क्या?

दूसरी बात, जब 1909 में भगत सिंह की उम्र जब लगभग ढाई साल थी, तभी भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह भारत के बाहर चले गये। ईरान के रास्ते, जर्मनी, ब्राजील, स्विटजरलैंड, इटली आदि देशों में रहकर भारत की स्वतंत्रता के लिए क्रांति का अलख जगाया, मतलब साफ है कि 1909 से लेकर 1946 तक भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह कभी भारत में रहे ही नहीं, तो फिर नागरमल को अजीत सिंह भारत में कैसे दिखाई पड़ गये? वे खुद 1946 में पं. जवाहर लाल नेहरु के बुलावे पर भारत आये और 1947 में उनका देहावसान भी हो गया, तो प्रभात खबर आप बताओ कि आपके आलेख को मैं किस श्रेणी में रखूं?

प्रभात खबर के महानुभावों, आपको तो यह जरुर ही पता होगा कि भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर 8 अप्रैल 1929 को एसेम्बली में बम कांड को अंजाम दिया था, उसके बाद वे जेल में ही थे। अब सवाल यह है कि अगर नागरमल मोदी 1930 में नमक सत्याग्रह में जेल गए तो इस दौरान तो भगत सिंह भी खुद जेल में थे। वहीं अजीत सिंह विदेश में, अजीत सिंह के भारत में होने का ही साक्ष्य नहीं है तो वो हजारीबाग या अन्य जेलों में कैसे हो सकते हैं? भगत सिंह को फांसी भी 23 मार्च 1931 को हुई थी, तो ऐसे में आपका यह लिखना कि ” जेल में नागरमल की मुलाकात भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह से हुई।

बम बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले खास कपड़े का लाइसेंस नागरमल के पास ही था। इस कपड़े को गुप्त रूप से भगत सिंह तक पहुंचाया गया। इन्हीं कपड़ों से बम तैयार कर भगत सिंह ने बम कांड किया था और वेष बदलकर कोलकाता पहुंचे थे” इसे मैं क्या कहूं? मतलब स्वतंत्रता सेनानियों को महिमामंडित करने के चक्कर में जो महान क्रांतिकारी है या उनका परिवार हैं, उनके साथ भी आप छल करेंगे, अनाप-शनाप छाप देंगे, कह देंगे कि भगत सिंह ने रांची के ही एक स्वतंत्रता सेनानी नागरमल के द्वारा दिये गये कपड़े से एसेम्बली में बम फोड़ दिया, वाह रे भाई, अरे कोई लिखकर देता हैं तो इसे दस बार पढ़ा भी करो, इतिहास-भूगोल देखा भी करो।

अंत में बड़ी विनम्रता से मैं यह स्वीकार करता हूं कि इस आलेख को लिखने में मेरी कोई भूमिका नहीं, ये सारा श्रेय मैं उस पत्रकार को देना चाहता हूं, जिसने मेरा ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया। साथ ही, मैं प्रभात खबर के सभी विद्वतजनों से अपील करूंगा कि वे जनता के बीच झूठ न परोसें, इससे परिवार, समाज, राज्य व देश को भारी क्षति पहुंचती है, चूंकि आपने ये गलती कर दी, इसे सुधारा नहीं जा सकता, पर आगे, सुधार बनी रहे, इसका प्रयास होता रहना चाहिए।