हर घर तिरंगा लगाओ और जब तुम्हारे परिवार के सदस्य तिरंगा लगाने के चक्कर में जान दे देंगे, तो हम सिर्फ संवेदना के दो बोल बोलकर निकल जायेंगे, क्योंकि…
रांची के बोड़ेया में कल यानी 14 अगस्त को बहुत ही हृदय विदारक घटनाएं घटी, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के आह्वान पर जब झारखण्ड के सारे लोग अपने-अपने घरों में ‘हर घर तिरंगा’ कार्यक्रम के तहत अपने घर राष्ट्रीय ध्वज लगा रहे थे, उसी वक्त कांके के बोड़ेया राइस मिल के पास एक परिवार भी राष्ट्रीय ध्वज अपने घर में लगा रहा था, अचानक इसी क्रम में राष्ट्रीय ध्वज से लगा रॉड 11000 वोल्ट की तार से सटा और देखते ही देखते एक ही परिवार के तीन लोग मौत के मुंह में चले गये।
आखिर इस घटना के जिम्मेवार कौन है, साफ है कि राज्य का विद्युत विभाग हैं, वो अधिकारी है, जिसकी अदूरदर्शिता व मूर्खता ने एक ही परिवार के तीन लोगों की जान ले ली और इस घटना के बाद भी, राज्य के मुख्यमंत्री और विद्युत विभाग के अधिकारियों का केवल संवेदना के दो बोल, बोलकर निकल जाना, राज्यवासियों के हृदय को व्यथित कर दिया, क्या ऐसी घटनाओं के बाद केवल संवेदना के दो बोल ही काफी है, कि राजकीय कोष से इस परिवार को कुछ आर्थिक मदद भी मिलनी चाहिए, जिससे उसके कुछ दर्द कम हो, या वो राशियां सिर्फ सरनेम देखकर दी जायेंगी। क्या ऐसी घटनाओं के बाद राज्य के मुख्यमंत्री उदारता नहीं दिखाते हैं? तो फिर इस घटना के बाद केवल संवेदना के दो बोल बोलकर क्यों काम चलाया गया।
लोग तो खुलकर कह रहे हैं। क्या इस दुर्घटना के दोषी अधिकारियों पर इसलिए कार्रवाई नहीं होगी, इस घटना के जांच इसलिए नहीं कराये जायेंगे, इस घटना के प्रभावित परिवारों को इसलिए राज्य सरकार से मदद नहीं दी जायेगी, क्योंकि मरनेवाला परिवार एक ब्राह्मण है और वह झारखण्ड का मूलनिवासी या आदिवासी नहीं है, अगर ये सोच है तो माफ करें, इसके दुष्परिणाम भी भयावह होंगे, क्योंकि मरनेवाले की आत्मा की वेदना को सह पाना किसी सरकार या प्रशासन के बूते की बाहर की चीज है।
आज जिस प्रकार से सोशल साइट पर एक झारखण्ड हाई कोर्ट के वरीय अधिवक्ता अवनीश चंद्र मिश्र ने अपनी वेदनाओं को, जो कि ये वेदना सारे लोगों की हैं, जो मानवता में विश्वास रखते हैं, लिखा है, उसे राज्य सरकार और उनके अधिकारियों को समझना चाहिए और जल्द से जल्द उस परिवार तक पहुंच कर आर्थिक मदद के लिए आगे आना चाहिए, उसके आंसू पोछने के लिए आगे आना चाहिए, न कि बाहर से संवेदना के दो बोल बोलकर आप निकल जाये।
यही नहीं, ये जो तीन लोग मरे हैं, कोई अपने लिए नहीं मरे हैं, ये देश के प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री के हर घर तिरंगा अभियान को सफल बनाने के क्रम में, उनके आह्वान पर अपने घर तिरंगा लगाने के क्रम में मरे हैं, इसलिए ऐसे भी राज्य के मुख्यमंत्री और आजादी के अमृत महोत्सव मनानेवालों लोगों को उक्त परिवार की मदद के लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए…
वरीय अधिवक्ता, अवनीश चंद्र मिश्र ने ठीक ही कहा है…
“एक प्रासंगिक प्रश्न है, मृत्यु जिस कारण से भी हुई हो मरने वाले के प्रति माननीय मुख्यमंत्री महोदय की सिर्फ संवेदना, JBVNL के संबंधित पदाधिकारी की पीड़ितों के प्रति सिर्फ गहरी संवेदना? पर्याप्त है क्या? क्या मुआवजा, अन्य तात्कालिक सहयोग, अनुकम्पा जैसे शब्द मानवीय संवेदनाओं से इतर वर्ग/जाति आधरित है क्या? मरने वाले मिथिलांचल के ब्राह्मण थे इसलिए ये झारखण्ड सरकार में उस मुआवजा, सहानुभूति, अनुकम्पा के पात्र नही है जो एक अन्य झारखंडी को इन परिस्थितियों में देय होता?
सिर्फ संवेदना और गहरी संवेदना JBVNL की लापरवाही और सरकार की उदासीनता पर आवरण डाल सकती है क्या? पहले मकान बना, बाद में उसके छत के ऊपर से 11000 वोल्ट का तार पार किया गया, जिसके लिए पीड़ित परिवार बार बार संबंधित अधिकारियों से गुहार लगाते रहें पर किन्ही के कान में जूं तक नहीं रेंगा और आज जब पीड़ितों की जिंदगी इस मुकाम पर आ गई तो सिर्फ संवेदना?
अरे साहब! आप दारू पीकर खड़े ट्रक के पीछे घुस जाने वालों के प्रति भी मानवता दिखाते हैं, सहानुभूति रखते हैं और गहरी संवेदना से आगे जाकर कार्य करते हैं तो फिर यहां ये दोहरा मानदंड क्यों? क्या अनुकम्पा/सहानुभूति का पात्र होना “सरनेम” आधरित है? यदि हां तो फिर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का क्या ? आपका ऐसे विषयो पर दोहरा मानदंड पीड़ादाई है,
विशेष आप सूबे के अनुभवी मुखिया और कुशल राजनीतिज्ञ हैं, मेरी क्षमता आपको मार्गदर्शित करने की नही है, परन्तु जब आप एक आंख में काजल और एक में सूरमा प्रयोग करते हैं तो परिलक्षित हो ही जाता है, संज्ञानार्थ। उपरोक्त कथन मेरी निजी राय है कृप्या राजनीतिज्ञ और कापी पेस्ट वाले योद्धा यहां से उचित दूरी पर रहें। बाद बाकी जोहार!
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