दुसरे ‘गुरदास’ बने डीपीएस के प्रिंसिपल राम सिंह, अपना साक्षात्कार प्रभात खबर में विज्ञापन के रूप में कराया प्रकाशित
आपने बचपन में सुप्रसिद्ध साहित्यकार यशपाल की कहानी ‘अखबार में नाम’ जरुर पढ़ा होगा। आपने इसी कहानी में गुरदास का नाम भी सुना होगा, जिसने अखबार में अपना नाम छपवाने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किये और कैसे फिर उसकी जगहंसाई हुई? आपको इस कहानी को पढ़कर लगा होगा कि यह कहानी ऐसे ही कपोलकल्पित होगी, पर ऐसा है नहीं, आज की दुनिया में भी ऐसे कई गुरदास है, जो शिक्षा जगत् में स्वयं को बड़े-बड़े पद पर विभूषित कर रखे हैं।
लेकिन गुरदास का चरित्र अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे, इसके लिए वे कुछ भी हथकंडे अपनाने को भी तैयार रहते है। ऐसे ही एक गुरदास जैसा चरित्र देखने को मिला, रांची से प्रकाशित प्रभात खबर के 13 अगस्त 2022 के अंक में पृष्ठ संख्या सात को देखकर, जहां हमें डीपीएस के प्राचार्य राम सिंह, गुरदास के रूप में मिल गये। जिन्होंने अपने को महिमामंडित करने के चक्कर में अपनी ही साक्षात्कार को विज्ञापन के रूप में प्रकाशित करवा दिया और कुछ लोग इसे पढ़कर उन्हें बधाइयां भी दे डाली।
अब सवाल उठता है कि एक प्राचार्य, वो भी उस स्कूल का जहां राज्य के बड़े-बड़े नेताओं, आईएएस-आईपीएस के परिवार के लोग नौकरियां करने में गर्व महसूस करते हैं, अवकाश प्राप्त करने के बाद स्कूल में कॉपी-किताब का व्यवसाय करने में स्वयं को आनन्दित महसूस करते हैं। जहां राज्य के बड़े-बड़े नेताओं, आईएएस-आईपीएस, बड़े-बड़े व्यावसायिक घरानों के बेटे-बेटियां पढ़कर जीवन को परमोत्कर्ष पर ले जाने के लिए नाक रगड़ते हैं, उस विद्यालय का प्राचार्य अगर गुरदास बनने की कोशिश करें तो इस पर आश्चर्य होना लाजिमी होता है।
चूंकि मैं भी पढ़ा-लिखा आदमी हूं। मैंने अपने जीवन में चाहे जहां मैं पढ़ा हूं, उस स्कूल या कॉलेज की बात करुं या अन्य विद्यालयों-कॉलेजों के प्राचार्यों की बात, सभी जगहों के प्राचार्यों को देखा कि इतने पतन के बावजूद, कुछ लोकाचार के भी भय से, ये जमात आदर्शवाद को छोड़ा नहीं, पर जब डीपीएस स्कूल का प्राचार्य आदर्शवाद और चरित्र को तिलांजलि दे दें, तो समाज में चर्चाएं होती है।
ऐसे तो प्रभात खबर को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उसको क्या, उसे तो विज्ञापन से मतलब है, वो विज्ञापन कौन दे रहा हैं, कैसे दे रहा हैं, क्यों दे रहा हैं, अगर ये देखता रहा तो उससे जुड़े लोगों के घर में दाल-चावल पर आफत हो जायेगा, इसलिए प्रभात खबर ने सारी आदर्शवादिता और चरित्र को श्रद्धांजलि देकर, विज्ञापनाय नमः की ओर कदम बढ़ाया और डीपीएस के प्राचार्य राम सिंह का साक्षात्कार वो भी विज्ञापन के रूप में छाप दिया। आप रांची से प्रकाशित प्रभात खबर देख सकते हैं।
झारखण्ड क्या, हम पूरे देश की बात करें, तो शायद ही कोई ऐसा स्कूल का प्रिंसिपल होगा, जो अपनी आरती उतरवाने के लिए, अपना ही साक्षात्कार विज्ञापन के रुप में किसी अखबार में छपवा दें। सामान्य स्कूलें जो अभिभावकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए, अखबार में विज्ञापन देती हैं, तो उसके विज्ञापन देने का ढंग कुछ अलग होता है, पर डीपीएस के प्रिंसिपल ने तो हद कर दी। कम से कम जिस स्कूल में बड़े-बड़े नेताओं, आईएएस-आईपीएस, व्यवासायिक घरानों के परिवारों के बच्चे पढ़ते हो, वहां का प्रिसिंपल ऐसी हरकत करें तो भाई आश्चर्य तो होगा ही।
जरा देखिये न, प्रभात खबर की वो हेडिंग क्या लिखा है – ‘दिल्ली पब्लिक स्कूल, रांची ने गढ़े सफलता के नये आयाम शुरू से ही रहा स्कूल विद डिफरेंस’ हां भाई स्कूल विद डिफरेंस तो हैं ही, तभी तो यहां के प्राचार्य का कोई अखबार साक्षात्कार नहीं छापता है, तो विज्ञापन देकर ही आपने साक्षात्कार छपवा लिया, नहीं तो आपके साक्षात्कार को राज्य की जनता या रांची की जनता को पढ़ने की क्या जरुरत है, आपका काम ही बोलेगा वो ही साक्षात्कार है। इस रांची में ही अनेक संभ्रांत विदयालय है, जहां आपसे भी बेहतर प्राचार्य हैं, पर उन्होंने तो अपना साक्षात्कार, वो भी विज्ञापन के रूप में नहीं छपवाया और आपने तो कर दिया, सचमुच आप तो राम सिंह धन्य है। कमाल है, यह विज्ञापन ‘एन इम्पैक्ट फीचर’ के माध्यम से छापा गया है।
रांची की जनता को इस बात की आपत्ति नहीं कि राम सिंह का साक्षात्कार प्रभात खबर ने छापा। आपत्ति तो इस बात को लेकर है कि यह विज्ञापन के रूप में छपा और निः संदेह समाचार छपवाने वाला इसका भुगतान भी किया होगा और स्थान देनेवाला भुगतान लिया होगा। एक प्राचार्य को इसकी जरुरत कब और क्यों पड़ने लगी? एक प्राचार्य के लिए उसका सबसे बड़ा साक्षात्कार तो उसके प्रोडक्ट यानी वे छात्र-छात्राएँ हैं, जिसमें उक्त विद्यालय के प्राचार्य ने चरित्र भरा, संस्कार भरे, पर इसी चरित्र को अगर सारे बच्चे अपना लिये तो वे भी अपना नाम व साक्षात्कार छपवाने के लिए विज्ञापन पर खर्च करेंगे और उन्हें ये भी पता नहीं होगा कि ऐसा करना एक सामाजिक बुराई है।
भाई राम सिंह वाह, आपको इस बात के लिए मैं दिल से बधाई देता हूं कि आप पहले प्रिंसिपल हुए जो अपना ही साक्षात्कार विज्ञापन के रूप में लोगों को परोस दिया। धन्य है वो डीपीएस (दिल्ली पब्लिक स्कूल) जिसके आप प्रिंसिंपल हैं और धन्य हैं वे छात्र-छात्राएं जो आपको अपना आदर्श भी मानते होंगे। धन्य है वो प्रभात खबर का वरीय संवाददाता राजेश झा भी, जिसने विज्ञापन के रूप में डीपीएस के प्रिंसिपल का साक्षात्कार ले लिया। नहीं तो, प्रभात खबर और डीपीएस का प्रिंसिपल दोनों छाती पर हाथ धर बताएं कि ‘एन इम्पैक्ट फीचर’ का मतलब क्या होता है? ऐसे मैं पाठकों को बता दूं कि अखबार में काम करनेवाले कई प्रमुख अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि यह शत् प्रतिशत विज्ञापन ही हैं।