तो क्या अपने आवास में सत्तापक्ष के विधायकों के मन टटोलने में कामयाब हुए CM हेमन्त सोरेन
मुख्यमंत्री आवास में सत्तापक्ष की हुई विशेष बैठक किसी विशेष प्रयोजन के लिए नहीं हुई थी, दरअसल यह बैठक राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने सत्तापक्ष के विधायकों के मन टटोलने के लिए की थी, कि अगर किसी कारणवश उनकी कुर्सी को खतरा उत्पन्न होता है, तो ऐसे में सत्तापक्ष के उनके सहयोगियों का उस वक्त उनके प्रति क्या रवैया होगा, हमें लगता है कि कल की बैठक के बाद हेमन्त सोरेन स्थिति को भांप लिये होंगे।
हालांकि राज्य का सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग अपने ढंग से कल की बैठक को यह कहकर मोड़ने की कोशिश की, कह दिया कि राज्य सरकार की योजनाओं को गांव-गांव, घर-घर तक पहुंचाने, जन-आकांक्षाओं के अनुरुप विकास कार्यों को गति देने के लिए यह बैठक बुलाई गई थी, एक अखबार ने कह दिया कि सत्तापक्ष के विधायकों को एक स्पेशल नंबर दिया जायेगा, जिससे वे सीधे मुख्यमंत्री से जुड़कर अपनी बात रखेंगे, पर ये मामला सही मायनों में है ही नहीं।
मुख्यमंत्री की खासियत रही है कि वे सत्तापक्ष के विधायकों से हमेशा दिल खोलकर मिलते रहे हैं और उनकी सुनते रहे हैं, लेकिन उनकी सुनी हुई बातें धरातल पर उतर गई, ऐसा मैंने किसी विधायक को आज तक सुनते नहीं देखा, अगर कोई खरखई में ये कह दें कि उनकी बात मान ली गई तो बात ही कुछ और है। कल ही मैंने एक झामुमो के विधायक से बात की, जो बैठक में मौजूद थे।
उनका साफ कहना था कि ये बैठक कुछ नहीं था, फालतू समय बीता, केवल समय बिताने के लिए मीटिंग बुलाई गई थी, उससे न तो किसी विधायक को मतलब था और न ही किसी को इससे कुछ फायदा था, इसका मतलब क्या है? मतलब साफ है कि विधायकों के चेहरे को पढ़ो, देखो आज के माहौल में इनके चेहरे क्या कह रहे हैं, क्योंकि आज के राजनीतिक माहौल में चेहरा पढ़ना ज्यादा जरुरी है, जो चेहरा पढ़ लिया, राजनीति में सफल हो गया और जिसने नहीं पढ़ा, गया काम से।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो हेमन्त सोरेन सरकार पर आनेवाले महीनों में विभिन्न कारणों को लेकर बहुत बड़ा आघात होना तय है, पर इस आघात से सरकार संभल जायेगी, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती, यही राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के भय का मूल कारण हैं, जो वे उपर से नहीं दिखाते, पर आसन्न भय से वे ग्रसित हैं, साथ ही उनके इर्द-गिर्द चक्कर काटनेवाले भी भयभीत है, क्योंकि हेमन्त से सत्ता का छिटकना और किसी अन्य की ताजपोशी हो जाने के बाद उनकी भी वहीं स्थिति रहेगी, इसकी संभावना न के बराबर है।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि हेमन्त सरकार को समर्थन दे रही कांग्रेस के अंदर जो विधायकों की एक बहुत बड़ी टीम हैं, वो भी इन दिनों गफलत में हैं, वो यह समझ नहीं पा रही कि उसका भविष्य कांग्रेस में हैं या आनेवाले समय में सत्ता को समर्थन करने में, इसी गफलत में वो कोई भी फैसला नहीं कर पा रही है।
अगर सत्ता का कोई नया समीकरण बैठा या झामुमो में ही भूचाल आ गया तो कांग्रेस के अंदर बैठे पूर्व से ही भाजपा की ओर जाने को लालायित विधायकों की बांछे खिलने जा रही है, ये आज न कल भाजपा में जायेंगे ही जायेंगे, क्योंकि इन्हें साफ लग रहा है कि कांग्रेस में उनकी आनेवाले समय में फिर से विधायक बनना संभव नहीं है, क्योंकि झारखण्ड में अब जब कभी चुनाव होंगे, झामुमो का तो नहीं, पर कांग्रेस का नुकसान होना तय है, राजद तो झारखण्ड में है ही नहीं, तो उसकी बात क्या करना?