अपनी बात

उधर CMO/IPRD से मिली धमकी और इधर झारखण्ड के सारे अखबार हुए दंडवत्, निकल गई हेकड़ी, आ गये सभी अपने औकात पर

मुख्यमंत्री कार्यालय कहिये या आईपीआरडी का फरमान कहिये, एक धमकी ने झारखण्ड के सारे अखबारों के संपादकों/प्रबंधकों व मालिकों को सांप सूंघा दिया, जो कल तक पीपी यानी प्रेम प्रकाश का नाम सीएम के करीबी लिखकर छापते थे, आज सब ने प्रेम प्रकाश को सिर्फ कारोबारी बताते हुए अपना पिंड छुड़ा लिया और राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के आगे अपना मस्तक सदा के लिए झूका लिया।

इसी बीच आज के ज्यादातर अखबारों के हेडलाइन्स को देखने के बाद मुख्यमंत्री कार्यालय ही नहीं, बल्कि आईपीआरडी झारखण्ड के बड़े उच्चाधिकारी भी प्रसन्न हैं, प्रसन्न हो भी क्यों नहीं, आखिर जो ताकत दिखानी थी, वो उन्होंने दिखा दिया और उस ताकत के बल पर पत्रकारिता करने का दंभ भरनेवाले सारे मठाधीशों की सारी मठाधीशी निकाल दी।

आश्चर्य तो यह भी देखने को मिला कि कल तक जो अखबार पंकज मिश्रा को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का विधायक प्रतिनिधि बताते थे, वे आज पंकज मिश्रा का समाचार तो दिये, पर वहां से भी विधायक प्रतिनिधि तक के शब्द को हटा दिया, मतलब इतना भय तो हमें लगता है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा लगाये गये आपातकाल के समय भी नहीं था, जितना भय आज दिखा, मतलब मुख्यमंत्री कार्यालय व आईपीआरडी (सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग) के भय के आगे झारखण्ड के अखबार अपनी औकात पर आ गये।

लोग बेकार ही भारत की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पर पत्रकार व पत्रकारिता पर दमन करने का आरोप लगाया करते हैं, जरा वर्तमान देखिये बिना किसी हरे-फिटकरी के झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाकर, सब की हेकड़ी निकाल दी, इशारों ही इशारों में कह दिया – पानी में रहकर मगर से वैर। रहना है झारखण्ड में ही न, विज्ञापन हमसे ही लेना है न, तो इतना याद रखो, जो हम कहें, वो करो, नहीं तो क्रांतिकारी बनने का शौक हैं, तो क्रांति कैसे धूल में मिलाया जाता है, वो जानते हैं।

तभी तो झारखण्ड में प्रकाशित होनेवाले सभी अखबार, आज दंडवत् हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय के समक्ष दंडवत् हैं। सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के आगे दंडवत् हैं। रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार संस्थान या किसी भी निजी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का कोर्स करनेवाले विद्यार्थियों आज का समाचार पढ़ो और विचार करो कि ये वही अखबार में काम करनेवाले लोग हैं।

जो कभी गेस्ट फैकल्टी के रूप में तुम्हारे यहां जाकर क्लास लेते हैं, जो तुम्हें पत्रकारिता का रहस्य बताते हैं, क्या ये लोग पत्रकारिता के गेस्ट फैक्लटी तो दूर, तुम्हारे सामने खड़े होने लायक है? मैं तो कहुंगा -नहीं, पर तुम्हारी बात तुम जानो। तुम्हारे यहां भी मठाधीश लोग है, जो निर्णय करते हैं, किन्हें बुलाना हैं और किन्हें नहीं बुलाना हैं, क्योंकि छपास की बीमारी तो उन्हें भी हैं।

जरा सोचिये, जहां ऐसे पत्रकार, ऐसी पत्रकारिता, ऐसे अखबार और ऐसे अखबार में काम करनेवाले लोग हो, भला वहां सत्यनिष्ठ पत्रकारिता चल पायेगी? ये दंडवत् करनेवाले लोग, रीढ़विहीन लोग क्या जनता के सवालों को उठायेंगे, क्या गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकार की तरह सीने पर गोली खायेंगे, ये तो एक मामूली संदेश से घबराकर किसी का भी पांव पकड़ने में सबसे आगे हैं।

हमें भी कभी-कभी हंसी आती है, इन नमूनों को देखकर और वह भी तब जब ये किसी पत्रकारिता विषय पर मूल्यों की बात कहते हुए, अपने लिए तालियां बटोरते हैं, हमें उस वक्त तालियां बजानेवालों और भाषण देनेवालों में कोई फर्क नहीं दिखता। ऐसे मैं आज राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को इस बात के लिए दिल से बधाई दूंगा कि उन्होंने राज्य में छपनेवाले उन सारे अखबारों के सम्मान को जनता के समक्ष नंगा कर दिया, जो कल तक अकड़कर चलते थे।